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________________ वि० सं० ७७८-८३७ ] [ भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास ६४ - तीन दुकाल में अन्न घास दिया ८४ देहरी का मंदिर मूलनायक की सुवर्णमय मूर्ति बनाकर प्र० करवाई । ६५ - शत्रु जय गिरनार की यात्रार्थ संघ निकाला मार्ग में ८४ मंदिरों की नींव डरवाई वापिस आकर संघ भोज देकर संघ पूजा की । लड्डू के अन्दर एक एक स्वर्ण मुहर प्रभावना में दी । ६६ - दुष्काल में गरीबों को ही नहीं पर राजा महाराजाओं को अन्न वस्त्र पशुओं को घास दी विशाल मंदिर बनाकर सुवर्णमय मूर्ति की प्रतिष्ठा करवाई संघ को पहरामणी दी । ६७ - आचार्यों को सूरिपद दिलाया ४५ आगम लिखा कर अर्पण किये संघपूजा की पहरामणी दी । ६८ - तीर्थों का संघ निकाल सर्वत्र यात्रा की तीर्थ पर नौलक्ष मूल्य का हार अर्पण किया संघपूजा | ६९ - बीस बार यात्रा कर बीस मंदिर करवाया संघ को घर श्रांगण बुलाकर पूजाकर लक्ष्ण दी । ७० -- यात्रा करते हुये पृथ्वी प्रदक्षिणा दी सर्वत्र साधर्मियों के घर प्रति एकेक मुहर की लक्ष्ण दी । ७१ - सात बड़े यज्ञ किये सात मंदिर बनाये सात वार संघ निकाल यात्रा की पहरामणीभी दी। ७२ – सम्मेतशिखर की यात्रार्थ संघ निकाल चतुर्विधश्रीसंघ को पूर्व की यात्रा करवाई समुद्र तक एक एक मुहर की लहण दी संघपूजा कर पाँच २ मुहरों की पहरामणी दी । ७३–ग्लेच्छों ने गरीबों को कारागृह कर दिये करोड़ों द्रव्य देकर मुक्त करवाये बावन जिनालय का मंदिर बनाकर प्रतिष्ठा करवाई संघ पूजा कर पाँच २ मुहरें प्रभावना में दीं। ७४ - आपके पास चित्रावल्जी थी जिससे आपका घर द्रव्य से भर गया आपने जनोपयोगी कार्यों में एवं धार्मिक कार्यों में पुष्कल द्रव्य व्यय कर पुन्योपार्जन किया ७ वार संघ पूजा की। ७५ - शत्रु जय गिरनार की यात्रार्थ संघ निकाला संघ पूजा एक एक मुहर पहरावणी में दी । ७६ – बावन मंदिर बावन तालाब कुए बावन मुसाफिरगृह बनाये सात बार संघ निकाले संघ पूजा वस्त्राभूषण और पाँच २ सुवर्ण मुद्रिकाएं पहरामणी में दीं। ७७ - ग्यारह श्राचार्यों को सूरिपद दिराया जिसका महोत्सव एवं साधर्मी भाइयों को पहरामणी दी तथा प्रत्येक आचार्य को ४५-४५ आगम लिखवा कर भेंट किये । ७८ - सम्मेद शिखरजी तीर्थ की यात्रार्थ संघ निकाले पूर्व के तमाम तीर्थों की यात्रा की वापिस आकर स्वामिवात्सल्य कर संघ पूजा कर एक एक मुहर पहरामणी में दी । ७९—जनसंहारक भयंकर दुष्काल में बिना भेदभाव खुले दिल से सर्वत्र दानशालाएं खुलवाकर अन्नवस्त्र घास दी । सात मन्दिर सात तालाब बनाये प्रतिष्ठा में संघ पूजा कर सात २ सुवर्ण सोपारियां संघ को पहरामणी में दीं। ८० - यात्रार्थ संघ निकाल कर सर्वत्र पृथ्वी प्रदक्षिणा देकर साधर्मी भाइयों को एक एक मुहर प्रभावना के तौर पर दी और स्वामिवात्सल्य कर संघ पूजा की । ८१ - बावन जिनालय बनाकर मूलनायक भ० महावीर की ९६ अंगुल सुवर्णमय मूर्ति बनाई जिसके नेत्रों के स्थान दो मणि लगाई जो रात्रि को दिन बना देती थीं संघ पूजा भी की । ८२-पांच वार तीर्थों का संघ, ८४ मंदिर प्रतिष्ठा में पांच २ मुहरें पहरामणी में । ८३ - जैनागमों की एक एक पेटी प्रत्येक प्राचार्य को दी संघ पूजा और पहरामणी दी । ८४ - तीन दुकालों में अन्नघास दिये सात यज्ञ किये। संघ पूजा कर पहरामणी दी । १२९६ Jain Education International For Private & Personal Use Only ७४ || शाहों की ख्याति www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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