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________________ आचार्य कक्कसूरि का जीवन ] [ओसवाल सं० ११७८-१२३७ ४०-शत्रुजय तीर्थ के लिये संघ निकाला वहुत्तर लक्ष में ध्वजा चढ़ाई पाँच २ मुहरे पहरावणी में दी। ४१-सातवार चौरासी को आगणे बुलाय भोजन करवा सर्व तीर्थों की यात्रार्थ संघ निकाला समुद्र तक __ साधर्मो भाइयों को एक २ मुहर पहिरावणी में दी । ४२-संघ निकाला मंदिर बनाये ८४०० मूर्तियों की अंजन सलाका करवा कर प्रतिष्ठा करवाई। ४३-पांच वार दुकाल को सुकाल बनाया सातबार तीर्थ का संघ निकाला सात सात मुहरों की लहण की। ४४-सर्व तीर्थों की यात्रार्थ संघ निकाला चार बार चौरासी घर पर बुलाइ एक एक मुहर लहण में दी। ४५-पाँच वार दुकाल को सुकाल बनाया यात्रार्थ संघ निकाला । सघ पूजा कर पहरामणी दी। ४६-आपको पारस मिल जाने से घर सोने से भर गया १०८ सुवर्ण की मूर्ति सोने के थाल प्र. में दी। ४७- सर्व तीर्थों की यात्रार्थ संघ निकाला ध्वजा चढ़ाई माला पहरी संघ पूजा मोतियों की कंठिया पहरा. मणी में देकर जैन शासन को प्रभावना की। ४८--राजा को खुश कर हिंसा बंद करवाई दुकाल में अन्न दिया धर्म प्रचार में वीस करोड़ धन व्यय किया सिंध के जैनों को. म्लच्छों ने पकड़ कैद कर दिया तब आपने १८ पाट सोने के देकर छुड़ाया देवी की कृपा से अक्षय निधान मिला-सघ पूजा की। ४९-शत्रुजय तीर्थका सङ्घ तीर्थ पर माला की बोली एक करोड़ द्रव्य खर्च कर माला पहरी सङ्घ पूजादि कार्य । ५०-आठ प्राचार्यों को पदवी दिलाई संघपूजा की जिसमें दश करोड़ द्रव्य व्यय किया। ५१- सर्व तीर्थों की यात्रार्थ संघ निकाला म्लेच्छ के बंदी को छुड़ाया बीस करोड़ द्रव्य ---संघ पूजा की । ५२-चारबार चौरासी बुलाई शत्रुजय का संघ निकाला आठ आठ सोना मुहरें सर्वत्र पहरामणी में दी। ५३-आपके पास रसकुपिका थी जिससे पुष्कल सोना बनाया। सोने का घर देरासर रत्न की मूर्ति संघ पूजा । सिवाय गुरु के शिर न झुकाने से राजा ने वेड़ियां डाल कारागृह में बन्द कर दिया पर गुरू इष्ट से बेड़िया स्वयं टूट पडी । मन्दिर बनाया साधर्मियों को पहरामणी दी। ५४-तीन दुकाल में अन्नदान चौरासी देहरी वाला मंदिर बनाकर प्र० कराई संघ में पाँच २ मुहरें दी। ५५-सर्व तीर्थों की यात्रा तीनवार पृथ्वी प्रदक्षिणा दी संघ पूजा कर समुद्र तक लहण दी। ५६-सम्मेत शिखरजी की यात्रार्थ संघ निकाल पूर्व की सब यात्रायें की साधर्मी भाइयों को सोने का माला अर्पण की। संघ पूजा करके पहरामणी दी। ५७-गिरनार पर श्वे० दि० के चार संध आये एक करोड़ द्रव्य व्यय कर शाह पदवी प्राप्त की संघ पूजा में करोड़ द्रव्य व्यय किया। ५८-सर्व तीर्थों की यात्रार्थ संघ निकाला संघपूजा स्वामिवात्सल्य कर दो दो मुहरें पहरामणी में दी। ५९-चार बड़े यज्ञ किये चौरासी मंदिर बनाकर १०००० मूर्तियों की अंजनसलाका करवाई ५ करोड़ द्रव्य व्यय किया। संघ पूजा कर पहरामणी भी दी। ६०-चौरासी न्यात को घर पर बुलाकर भोजन वस्त्र पाँच पाँच मुहरें लहण में दी। ६१-सम्मेतशिखर की यात्राथ संघ निकाल पूर्व की यात्रा स्वामिवात्सल्य संघपूजा पहरावणी में सुवर्ण । ६२-जैन मंदिर बनाकर सुवर्ण के तीन कलश ध्वज दंड चढ़ाकर प्रतिष्ठा संघपूजा पहिगमणी में मुद्रिकाएं । ६३ -- पूर्व के सव तीर्थों की यात्रार्थ संघ । अष्टापद के मंदिर में सुवर्ण मूर्ति की प्रतिष्ठा करवाई। ७४॥ शाों की ख्याति १२९५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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