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________________ आचार्य ककसूरि का जीवन ] । ओसवाल सं०११७८-१२३७ अठारहवीं तथा अठारहवीं के पूर्व सतरहवीं और सतरहवीं के पूर्व सोलहवीं शताब्दी महाजनों के लिये तन, जन तथा धन के लिये कैसी थी। इसी प्रकार एक-एक शताब्दी पूर्व का इतिहास देखते जाइये । श्रापको महाजनों की ऋद्धि एवं समृद्धि का पता लग जायगा। इतने पर भी दरिद्रता के साम्राज्य में फंसे हुए व्यक्तियों की समझ में नहीं आए तो कर्मों की गहन गति पर ही संतोष करना पड़ता है। महाजन संध का समय विक्रम पूर्व कई शताब्दियों से ही प्रारम्भ हो जाता है अर्थात् भगवान महावीर के समय के आस पास का ही समय महाजन संघ का समय था और उस समय के आस पास में भारत कैसा समृद्धिशाली था जिसके लिये कतिपय उदाहरण निम्नलिखित हैं। (१) भगवान महावीर के समय राजा श्रणिक की रानी धारणी जो मेघकुंवर की माता थी जिसका शयनगृह का तला पांच प्रकार के रत्नों से जड़ा हुआ था। (२) राजा श्रणिक ने कलिंग की खण्डगिरी पहाड़ी पर जैन मन्दिर बनवा कर सुवर्णमय मूर्ति की प्रतिष्ठा करवाई थी तथा सदा १०८ सुवर्ण के चावलों का स्वस्तिक करता था उनके पास कितना सुवर्ण होगा। (३) सेठ शालिभद्र के घर की जवाहिरात मनुष्य गिन नहीं सकता था। एक समय तो उसने यहाँ तक भी कह दिया था कि राजा श्रेणिक अपने घर पर आया है तो उसको सस्ता या महँगा खरीद कर भंडार में डाल दो । अर्थात् सुख साहिबी में उसे यह भी पता नहीं कि राजा क्या वस्तु है ? (४) नंदराजाओं ने अपने द्रव्य को भूमि में दबवा कर उनके ऊपर पांच स्तुप बनवाये थे। जिसको शृंगवंशी राजा पुष्पमित्र ने खुदवा कर द्रव्य निकाल लिया था। वह अपार द्रव्य था । (५) चंद्रगुप्त मौर्य ने पीत सुवर्ण नहीं पर श्वेत सुवर्ण की मूर्ति बनवाई थी जिसको सम्राट सम्प्रति ने अर्जुनपुरी (गंगाणीग्राम ) के मन्दिर में प्रतिष्ठा करवाई थी। (६) महाजन संघ को देवी ने वरदान दिया था कि "उपकेशे बहुल्यं द्रव्यम्" । (७) सम्राट सम्प्रति ने सवालक्ष नये मन्दिर और सवा करोड़ मूर्तियों की प्रतिष्ठा कराई थी। (८) महाजन संघ का इतिहास बतला रही है कि इन महाजनों ने सवर्णमय बड़ी २ मूर्तियों को बना कर प्रतिष्ठा करवाई थी तब कई एकों ने हीग पन्ना माणक स्फटिक रत्नों की मूर्तियां बनवाई थीऔर कई स्थानों पर अद्यावधि विद्यमान भी है जो विधर्मियों की लूट से बच गई थी। (९) महाजन संघ के पास के द्रव्य का हिसाब तो बृहस्पति भी नहीं लगा सकता था वे शाह ख्याति में लिखे हुये कार्य किये हों उसमें शंका करना महाजनसंघ के उस समय के इतिहास के अनभिज्ञों लोगों का ही कार्य है। ___ इतना विवेचन करने के पश्चात् अब हम प्रस्तुत शाह ख्याति पर कुछ ऐतिहासिक प्रकाश डालने का प्रयत्न करेंगे कि इसमें थोड़ा बहुत ऐतिहासिक तथ्य है या नहीं ? ऐतिहासिक दृष्टि से ७४|| शाह की ख्याति में प्रत्येक शाह के लिये कम से कम पाँव पाँच वातों पर विचार किया जाय । यथा शाह का नाम २ शाह की जाति ३ शाह के नगर ४ समय और उनके किये हुये ५ शुभ कार्य । जिसमें नाम के लिये तो बहुत से नाम ऐतिहासिकहैं जैसे:-शाहसोमा, शाइसारंग, शाहदेशल, शाह सामंत, शाहविमल, शाहवस्तुपालतेजपाल शाहगोशल, शाहसभरा, शाहपेथा, शाहपेथड़, शाहपुनड़, शाह पाता, शाहरावल, शाहरावण, शाहराणा, शाहखेमा, शाहभोमा, शाहमीमा, शाहभैसा, शाहगधा, शाहलूना, शाहथेरुक, शाहधवल, शाहधरण, शाहकल्याण, प्राचीन समय के कई उदाहरण १२७७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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