SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 539
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वि० सं० ७७८ से ८३७ ] [भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास केवल ६ द्रम्भ (टका) थे जिससे घृत लाकर संघ के पड़ाव में बेचता था जिससे उसको एक रुपया एक द्रम्म पैदास हुई उनमें एक रुपया का केसर धूप पुष्प वगैरह लेकर प्रभु की उत्साहपूर्वक पूजा की शेष १ द्रम्म बचा वह पहले ६ के साथ मिला कर सात द्रम्म बड़े ही जाबता से बांध लिये वे उनके लिये सात लक्ष जितने थे दालिद्र के तो ऐसा ही होता है। मन्त्री को देखने के लिये वह दालिद्र वणक उनके तंबू के दरवाजा पर आकर खड़ा हुआ छेन्द्रों से अन्दर बैठा हुआ मन्त्री उसके देखने में आया तो उसने पूर्व संचित पुण्य पाप के फलों पर विचार किया कि कहां तो मेरे पाप जो कि पूरी रोटी भी नहीं और कहां इसका पुन्य कि राज साही ठाठ साधारण राजा जागीरदार भी इसकी सेवा में खड़े रहते हैं फिर भी यह दादा के मन्दिर का जीर्णोद्धार कर पुण्य का संचय करते हैं इत्यादि विचार करता था इतने में चपड़ासी आकर उस मैले कपड़े वाले को वहां से हटा दिया जिसको मंत्री देखता था उसने बाद मंत्री अपने पास बुला कर उस दालिद्रसे सब हाल पूछा उसने एक रुपया के पुष्पादि से पूजा करने का हाल सुनाया अतः मन्त्री ने अपना साधर्मी भाई समझ कर आसन पर बैटाया इतने में जीर्णोद्धार की टीप लेकर कई सेठिये आये और सलाह करने लगे मन्त्री दालिद्र कों पूछा कि तुम्हारे भी कुछ कहने का है। उसने कहा कि ७ द्रम्म मेरा लगादो तो मैं कृतार्थ हो सकूँ । इसको देख मन्त्री ने बड़ा ही श्राश्चर्य किया कि इसने बड़ी उदारता की अपने पास का सब का सब द्रव्य दे दिया यह तो मेरा साधर्मी भाई है अतः आदमी को कह कर भंडार से तीन बढ़िया रेशमी वस्त्र और ५०० द्रव्य मंगा कर उसको इनाम में देने लगे। इस पर वह गरीब श्रावक गुस्सा कर बोला कि क्या आप धनवान इसलिये हुये हैं कि गरीबों के पुण्य को मूल्य दे खरीद कर उनको परभव में भी गरीब ही रखना। मन्त्री सुन कर आश्चर्य में डूब गया और उसको अपने से भी अधिक धर्मज्ञ समझ कर धन्यवाद दिया जब वह गरीब अपने घर पर गया और औरत को सब हाल कहा पर औरत थी क्लेश प्रिय किन्तु न जाने उसको उसदिन सद्बुद्धि कहांसे आई कि पतिसे सहमत होकर सुकृत का अनुमोदन किया बाद पतिसे कहा कि अपनी गाय बार बार खूटा उखेड़ कर भाग जाती है अतः खूटा को भूमि में कोसदो ? बस पति ने हाथ में कदाली लेकर भूमि खोदने लगा कि अंदर से ४००० सुवर्ण मुद्रिकाए निकली गरीब वणिक ने अपनी स्त्री को ले जा कर द्रव्य बताया तो उसने भी खुश होकर कहा कि यह आदीश्वर बाबा की पूजा का फल है अतः यह द्रव्य अपने नहीं रखना तब वणिकने मंत्री को अपने घर पर लेजा कर कहा कि इस द्रव्य को प्रहण करो ? मन्त्री ने कहा हमारे काम का नहीं तेरे भाग्य का है अतः तूही काम में ले पर वणिक तो मंत्री को कहता ही रहा इसमें दिन पुरा हो गया रात्रि में कपिद यक्ष ने आकर वणिक को कहा मैंने तेरी भक्ति से प्रसन्न होकर यह द्रव्य दिखाया है यह तेरे ही तकदीर का है दूसरे दिन दम्पति ने तीर्थ पर आकर खूब उत्साह से प्रभु पूजा की इत्यादि खैर । ___ मन्त्री का कार्य सम्पूर्ण हुआ कि सं० १२१३ में प्राचार्य हेमचन्द्रसूरि के हाथों से प्रतिष्ठा करवा कर पिता की प्रतिज्ञा को पूर्ण की । राजाकुमारपाल ने कुमार बिहार बना कर चिन्तामणि पार्श्वनाथ की मूर्ति की तथा ३२ अन्य मन्दिरों की हेमाचार्य से प्रतिष्ठा करवाई राजा ने अपने राज में सात दुर्व्यसन को दूर किया अपुत्रियों का द्रव्य नहीं लेने की प्रतिज्ञा की। ____कल्याण कटक के राजा की गुजरात पर चढ़ाई करने की खबर कुमारपाल को मिली तो गुरु को १२६८ मंत्री वाग्वट का तीर्थ उद्धार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy