________________
वि० सं० ३५७-३७० वर्ष ।
[भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
५-रानपुर के बीरहट गौत्र , माना ने पार्श्वनाथ ६-शिवपुरी के कुलभद्र गौत्र , धन्ना ने शान्तिनाथ ७-ठाणापर के श्रेष्टि गौ० , धाकड़ ने महावीर ८-कुंतिनगरी के चरड़ गौ० , भाखर ने , ९-चक्रपुर के लुंग गौ० , नाढ़ा ने पार्श्व० १०-चंद्रपर के मल्ल गौ० , __दाहड़ ने ११-चरपटपुर
बीरम ने सुपार्श्व १२-धंगाणी के लघुश्रेष्टि गौ० ,, उतावलिया ने शान्ति १३--उच्चकोट के कनोजिया गौ०,, पोपा ने आदीश्वर ९ १४--कीराटकुंप के डिडु गौ० , गोमा ने चंद्र प्रभु १५---रामपुर के कुंमट गौ० , जैता ने विमल १६--रत्नपुर के चोरलिया ,
फुवा ने धर्म १७--रेणुकोट के प्राग्वट वंशी , भिखा ने महावीर १८--वीरपुर के " "
वीराव ने , १९-- भद्रावती
बड़वीर ने २०-दान्तीपुर के ,
चांचग ने पार्ष २१-करमाव के श्रीश्रीमाल गौर, रुपा ने २२-सालणी __ के श्रीमाल वंशी , बनारस ने २३-जाजुपुर के बत
तारा ने २४-मालपुरा के बोहरा गौ० ,, थेरू ने ऋषभ २५-राहोल के वाप्य नाग० , दाहड़ ने नेमिनाथ २६-गुड़नगर के श्रेष्टि गौ० , जेसल ने पार्श्व. २७-उकारपुर के , , नागड़ ने महावीर २८-माड़वगढ़ के लघु श्रेष्टि गौ०, श्रादू ने ,
इनके अलावा भी कई प्रान्तों में नगर देरासर एवं घर देरासर की बहुत प्रतिष्टाए हुई थी। यहां पर केवल एकेक मन्दिर का नाम लिखा है पर पट्टावलियों वंशावलियों में एकेक मन्दिर के लिये अनेक मूर्तियों की अञ्जनसिलाका करवाइ का उल्लेख भी मिला है ग्रन्थ बढ़जाने के भय से यहां संक्षित से ही लिखा है। श्री श्रीमाल गौत्र के भूषण देवगुप्त सूरि था नाम ।
सुविहित आप थे पूर्वधर धर्म प्रचार करना था काम ॥ जैनेत्तरों को जैन बनाकर, नाम कमाल कमाया था ।
मन्दिरों की प्रतिष्ठा करवाई, ज्ञानकों खूब बढ़ाया था ॥ इति श्री पार्श्वनाथ भगवान् के २९ पट्टधर आचार्य देवगुप्त सूरि प्रभाविक आचार्य हुए
[ आचार्य देवगुप्तपरि का जीवन
Arra
७९० Jain Educe international
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org