SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 51
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वि० सं० ३५७ - ३७० वर्ष ] ३--स्तम्भनपुर ४ - देवपुर ५- भरोंच ६ - वाइली ७ - करणावती ८- सत्यपुर ९- नन्दपुर १०- ब्रह्मणपुर के ११ - शिवपुरी के १२ - वर्द्धमानपुर के के १३ - प्रतिष्टनपुर १४ -- उजैन १५ -- महेश्वरी १६--खण्डपुर १७ -- करकोली १८--इसपुर १९-२ -- हँसावली -- कुञ्चपुर २० २१--मुग्धपुर २२ -- डिडूनगर २३ -- जंगालु २४ - पाल्हिका २५--करजोड़ा २६-- मादडी २७-- नारदपुरी के के के ७८८ Jain Education International के के बापना गौ० श्रेष्टि गो० એંદિ गौ० भूरि गौ० नाग० गौ० भाद्र गौ० कनोजिया गौ० चिंचट गौ० कुमट गो० fsfe गौ० ब्राह्मण० प्राग्वट० प्राग्वट० तप्त भट्ट० बाप्पनाग ० आदित्य ० गौ० सुचंति गौ० चोरलिया ० चरड़गी ० मल्लगौ० कुलछट ० arrerito प्राग्वटव० श्रीमालवंशी १ - उपकेशपुर से भाद्र गौत्रीय शाह २ - भिन्नमाल का प्राग्वट ३ - भावड़ी से बाप्पनाग० ४ - शंखपुर से श्रेष्ट गौ० "" 39 12 शाह 27 99 "" 93 35 "" " "" "" 39 "" 99 99 "3 [ भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास सूरि दीक्षा ली 33 25 "" "" "" "" "" 39 33 दानाने चन्द्राने डुगर देपालने देदाने चूड़ाने चतराने खेमाने डावरने कुम्भाने कल्हण यशोदेव ने भालाने नागदेव धन्नाने धर्मसीने रूपसीने गेंदाने जैताने जैमलने रूपनाथने जाने नन्दाने नों ने देशलने "3 For Private & Personal Use Only "" 39 "" 35 "" 35 "" 33 37 33 39 "" 99 39 " , "" 29 19 39 "" "3 22 "" 33 "" 35 "" "" 33 "" 39 " 99 39 "" "" 39 "" श्री श्रीमालगौ० "" 53 इनके अलावा अन्य प्रान्तों में तथा बहुतसी बहिनों ने भी संसार को असार समझ कर आचार्यश्री या आपके श्राज्ञा वृत्ति मुनि एवं साध्वियों के पास दीक्षा महन कर स्वात्मा के साथ परात्मा का कल्याण किया सूरिजी महाराज के शासन में तीर्थों के संघादि सद कार्य जगा ने श्री शत्रु जय का संघ निकाला पद्मा ने हाप्पा ने काना ने 39 33 "" " " 22 "" 19 " 99 "1 99 [ सूरिजी के शासन में तीर्थों के संघ www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy