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________________ वि० सं० ३५७ – ३७० वर्ष ] [ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास का भी सहयोग था उन्होंने समय २ पर अपने नगर में सभाओं करके धर्म प्रचार के लिये जनता को खुब उत्तेजित की थी सभा एक धर्म प्रचार एवं संगठन का मुख्य साधन है इस से अनेक साधु साध्वियों, श्रावक और श्राविकाएं का आपस में मिलना समागम होना बिचार सलाह करना एक दूसरे को मदद करना जिससे धर्म प्रचारकों का उत्साह में वृद्धि होती है ? और वे अपना पैर धर्म प्रचार में आगे बढ़ा सकते थे उपकेशपुर, चन्द्रावती, कोरंटपुर, पाल्हिक आदि स्थानों में कई बार संघ सभा हुई थी और उसमें अच्छी सफलता भी मिली इत्यादि सूरिजी ने अपनी ओजस्वी वाणी द्वारा उपदेश दिया जिसको सुनकर उपस्थित लोगों की भावना हुई कि अपने वहाँ भी एक ऐसी सभा की जाय कि चतुर्विध श्रीसंघ को श्रामन्त्रण कर बुलाया जाय जिससे सूरिजी महाराज के कथानुसार धर्म प्रचार का कार्य सुविधा से हो सके इत्यादि उस समय तो यह बिचार २ ही रहा व्याख्यान समाप्त हो गया और सभा विसर्जन हो गई । परन्तु मंत्री ठाकुरसीजी के हृदय में सूरिजी व्याख्यान घर कर लिया उनकों चैन कहाँ था भोजन करने के बाद पन्द्रह बीस मातम्बरों को लेकर मंत्री सूरिजी के पास लाया और सूरिजी से प्रार्थना की कि पूज्याराध्य । यहाँ का श्रीसंघ यहाँ पर एक संघ सभ करना चहाता है ! अतः यह कार्य किस पद्धति से किया जाय जिसका रास्ता कृपा कर बतावें ? सूरिजी ने फरमाया मंत्रीश्वर यह कार्य साधारण नहीं पर शासन का बिशेष कार्य है इससे धर्मप्रचार की महान् रहस्य रहा हुआ है ? पूर्व जमाने में धर्म प्रचार की इतनी सफलता मिली वह इस प्रकार के कार्य से ही मिली थी पर आप पहले इस बात को सोच लीजिये कि इस कार्य में जैसे पुष्कल द्रव्यकी आवश्यकता है वैसे श्राग न्तुओं के स्वागत के लिये कार्य कर्ताओं की भी आवश्यकता है। साथ में यह भी है कि बिना कष्ट लाभ भी नहीं मिलता है जितना अधिक कष्ट है उतना अधिक लाभ है । मंत्रीश्वर ने कहा पूज्यवर ! आप लोगों की कृपा से इन दोनों कामों में यहां के संघ को किसी प्रकार का विचार करने की आवश्यकता ही नहीं है। कारण यहां का संगठन अच्छा है कार्य करने में सब लोग उत्साही है और द्रव्य के लिये तो यदि संघ आज्ञा दीरावे तो एक आदमी सब जुम्मा ले सकता है। इतना ही क्या पर यदि श्री संघ की कृपा मेरे उपर हो जाय तो मैं मेरा अहोभाग्य समझ कर इस कार्य मे जितना द्रव्य खर्च हो उसको मैं एकला उठा लूंगा। पास में बैठे हुए सज्जनों में से शाह रघुवीर ने कह पूज्यवर ! मंत्रीश्वर बड़े ही भाग्यशाली है संघ के प्रत्येक कार्य में आप अप्रेश्वर होकर भाग लिया करते है पर इस पुनीत कार्य का लाभ तो यथाशक्ति सकल संघ को ही मिलना चाहिये । सूरिजी ने उन सब की बातें सुन कर बड़ी प्रसन्नता पूर्वक कहा कि मुझे उम्मेद नहीं थी कि यहां संघ में इतना उत्साह है खैर आपके कार्य में अवश्य सफलता मिलेगी । सूरिजी का आशीर्वाद मिलगया पि मी किस बात की थी संघ श्रमेश्वर सूरीजी को वन्दन कर वहां से चले गये और किसी स्थान पर एक हो इस कार्य के लिये एक ऐसी स्कीम बनाली कि कार्य ठीक व्यवस्थित रूप से हो सके क्यों न हो वे लो राजतंत्र चलाने में कुशल और व्यापार करने में दीर्घ दृष्टि बाज़े थे उनके लिये यह कार्य कौन सा कठिन था मंत्रीश्वर वगैरह सूरिजी के पास आकर सभा के लिये दिन निश्चय करने की प्रार्थना की उस सूरिजी ने फरमाया कि ऐसा समय रखना चाहिये कि जिसमें नजदीक और दूर से सब मुनि श्र कारण यह सभा ही खास मुनियों के लिये ही की जाती है और धर्म प्रचार के लिये मुनियों का उत्स बढ़ाना है । मेरे ख्याल से पोष वदी १० भगवान पार्श्वनाथ का जन्म कल्याणक है । अतः वही दिन सभा I ७८४ Jain Education International [चित्रकोट में भ्रमण सभा का आयोज For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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