________________
आचार्य देवसिद्धसूरि का जीवन ]
[ ओसवाल सं० ११२४-११७:
गृह में गया और उसके साथ एक ही शैय्या पर सो गया किन्तु विजयकुवर, विजयकुवरी के दृष्टान्त को स्मरण में रख उसने अपनी प्रतिज्ञा में किश्चित् भी बाधा नहीं उपस्थित होने दी। करण की पत्नी ने भी प्रथम संयोग में लज्जावश कुछभी नहीं कहाकि थोड़े दिनों के पश्चात् वह अपने पित्गृह को में चली गई। जब चार मास के पश्चात् वह पुनः अपने सुसराल में आई और करण की आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत पालने की कठोर, हृदय विदारक प्रतिज्ञा को सुनी तो उसने अपने पतिदेव से प्रार्थना की कि-पूज्यवर ! यदि आपकी प्रारम्भ से ही ब्रह्मचर्य व्रत पालने की इच्छा थी तब शादी ही क्यों की ? ___ करण-मेरी इच्छा तो बिलकुल ही नहीं थी परन्तु कुटुम्ब वालों ने जबर्दस्ती शादी करवादी
पत्नी-कुटुम्ब वालों ने तो जरूर ऐसा किया होगा पर जब आप स्वयं दृढ़ निश्चय कर चुके थे फिर शादी करने का क्या कारण था ?
करण-मेरी इच्छा यह भी थी कि यदि मेरे कारण किसी दूसरे जीव का उद्धार होने का हो तो कौन कह सकता है ?
पत्नी-दूसरा जीव तो मैं ही हूँ न ? करण-हां आप ही हैं। पत्नी--तो क्या आप मेरा कल्याण करना चाहते हैं ?
करण-तब ही तो संयोग मिला है । क्या आपने विजयकुवर विजयकुवरी का व्याख्यान नहीं सुन है कि उन दोनों ने एक ही शैय्या पर सोकर के भी अखण्ड ब्रह्मचर्यव्रत पाला था ?
पत्नी-तो क्या आप विजयकुंवर बनना चाहते हैं ?
करण-विजयकुंवर तो महापुरुष थे। उनके समय संहनन, शक्ति वगैरह कुछ और ही थी और आज के समय की संहनन शक्ति कुछ और ही है ।
पत्नी -जब संहनन वगैरह वे नहीं हैं तो आप मुझे विजयकुंवरी कैसे बना सकेंगे ? मेरी इच्छा रुक नहीं सकेगी तो आप मुझे ऐसा कौनसा सुखमय मार्ग बतलाओगे ?
करण-यह मुझे स्वप्न में भी उम्मेद नहीं है कि मैं ब्रह्मचर्य व्रत पालूं और आप किसी दूसरे मार्ग का मन से भी अनुसरण करें । प्रत्येक प्राणी में अपने खानदान का खून और श्रात्मीय गौरव हुआ करता है अतः मुझे विश्वास है कि मेरे साथ आप भी ब्रह्मचर्य पालेंगी ही।
पत्नी-पर काम देव तो एक दुर्जय पिशाच है मेरी जैसी अबला उसको कैसे जीत सकेगी ? श्राप जरा विचार तो करिये ?
करण-पुरुषों की अपेक्षा इस कार्य में अबला-अबला नहीं किन्तु सबला होती हैं । द्रोपदी, मदन रेखा का चरित्र आपने नहीं सुना है ? वे भी आपके जैसी अबलाएं ही थी पर मौका श्राने पर उन सतियों ने अबला जन्य निर्बलता को तिलान्जली दे पुरुषों को भी लजित करने वाले सबलाओं के कार्य किये ।
आपने सुना होगा कि शास्त्रकारों ने काम भोग को मलमूत्र की उपमा देकर काम भोगों को तिर. स्कार किया है । इसको सर्वथा हेय बता कर इसके भोगने वाले को अनंत संसारी बताया है । विचारने जैसी बात है कि इस मनुष्य भव की अल्प आयु में या किन्चित विषय सुख में देवतासम्बन्धी या मोक्ष के अक्षय सुख को हार जाना हमारी अज्ञानता नहीं तो और क्या है ? यदि इस क्षणिक अवस्था को हमने धर्माराधन में ब्रह्मचर्य के विषय दम्पतिका संवाद
११११
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org