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आचार्य ककसूरि का जीवन ]
[ओसवाल सं० १०६०-१०८०
भय में प्रतिक्रमण करने को जाया करती थी। खेमा भी साथ जाता था एक दिन खेमा दरवाजे पर बैठा था इधर महिला समुदायकों गुरुणीजी अत्यन्त उच्च स्वर से प्रतिक्रमण करवा रही थी। साथ्वीजी का सच्चारण स्पष्ट और मधुर था। साध्वी के प्रत्येक शब्द खेमा को बहुत ही कर्ण प्रिय लगे । ज्यों ज्यों साध्वी भी प्रतिक्रमण करवाती गई त्यो त्यों वह ७ वर्ष की अल्पवय में एक वक्त के श्रवण मात्र से खेमा कण्ठस्थ कर लेता गया। बाद में वह भी अपनी माता के साथ में प्रतिक्रमण के समान होने पर पुनः अपने घर लौट आया। दूसरे दिन प्रतिक्रमण के समय कुछ २ वर्षा प्रारम्भ होगई थी फिर भी नित्य नियम में निष्ठ सेठानी ने अपने पुत्र खेमा को कहा-खेमा ! प्रतिक्रमण करने उपाश्रय में चलना है ? खेमा ने कहा मां इस वर्षा में उपाश्रय में जाकर क्या करोगी? लो मैं यहां पर ही श्रापको प्रतिक्रमण करवा देता हूँ। माता ने खेमा की बाल चालता को देख कर उसकी बात को यों ही हंसी में उड़ादी और हंसते २ कहने लगी जा जल्दी गुरणीजी को सूचना देया कि आज वर्षा आ रही है मा नहीं आवेगी क्यों कि गुरुणीजी मेरी गह देखते होंगे। पर वर्ष के कारण मेरे प्रक्रिमण तो श्राज यों ही रह जायगा । खेमा ने फिर से कहा मां ! आप निश्चिन्त रहो मैं सत्य कहता हूँ कि आपको यह पर ही निर्विघ्न प्रतिक्रमण क्रिया सहित करवा दूंगा। माता को नेमा की बोली पर व स्वाभाविक वाचालता पर कुछ हंसी तो आगई पर पुत्र के आग्रह से वह सामायिक लेकर पैठ गई । सातवर्ष के बच्चे खेमा ने गुरुणीजी के मुख से जैसा प्रतिक्रमण सुना था वैसा का वैसा माता को करवा दिया । माता के आश्चर्य का ठिकाना न रहा । उसने बड़ी प्रसन्नता से पूछा-खेमा ! तूं ने यह प्रति. क्रमण कहां कब व किससे सीखा ? खेमाने कहा-मां! कल मैं तेरे साथ उपाश्रय में गया था और गुरुणी जी ने प्रतिक्रमण करवाया बस मैं ने भी याद कर लिया । माता सरजू भद्रिक परिमाणी वाचाल बालक पर तुष्ट होती हुई देवी के वचनों का स्मरण करने लगी की खेमा कहीं दीक्षा न ले ले १ इसके लिये मुझे पहले से ही ठीक प्रबन्ध कर लेना चाहिये।
सेठानी दूसरे दिन वंदन करने उपाश्रय में गई। गुरुणीजी ने उसे उपालम्भ दिया-सरज ! हमने तेरी कितनी राह देखी । कल तू ने प्रतिक्रमण नहीं किया ? सरजू ने कहा-गुरुणीजी ! कल वर्षा आरही थी अतः मैंने घर पर ही प्रतिक्रमण कर लिया। गुरुणी जी --परन्तु घर पर प्रतिक्रमण तुमको करवाया किसने । सेठानी - खेगा ने ! गुरूर्ण जी-क्या कहते हो ? खेमा जैसे नादान बालक को प्रतिक्रमण आता है ? स्ठानी-हां आता है ! कल ही आपश्री के मुखारविंद सुना था। गुरुणीजी-वह कैसे ! सेठानी-आपने कल हम सब को उच्चस्वर में बोलते हुए प्रतिक्रमण करवाया था बस खेमा तो आपश्री के मुख से सुनता २ ही कण्ठस्थ करता गया । साध्वी सरजू की बात को सुन कर श्राश्चर्य विभोर हो गई। बस वहां से जल्दी ही उपाध्याय श्री राजकुशल जी म. के उपाश्रय में आकर साध्वी ने अथ से इति तक खेमा का साग वृत्तान्त एवं बुद्धिकुशलता उपाध्यायजी को कह सुनायी।
साधीजी के जाने के बाद शाह सलखण, अपने पुत्र खेमा को लेकर उपाध्यायजी को वंदन करने के लिये उपाश्रय में पाये । वंदन करने के पश्चात् उपाध्यायजी ने पूछा-खेमा ! तुझे प्रतिक्रमण प्राता है ? नेमा के बोलने के पहले ही सलखण बोल उठे - नहीं गुरुमहाराज, अभी तक खेमा को प्रतिक्रमण नहीं करवाया । उपाण्यायजी ने कहा-नहीं मैं तो खेमा को पूछता हूँ । खेमा ने कहा-हां गुरुदेव आरकी कृपा से मुझे प्रतिक्रमण आता है। गुरुजी-क्या कल त ने तेरी मां को प्रतिक्रमण करवाया ? खेमा-जी हां !
पालक खेमा की स्मरण शक्ति
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