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आचार्य सिद्धसूरि का जीवन
[ ओसवाल सं० १२०-६५८
११-हाना-इसके शासन में एक श्रमण सभा हुई थी। १२-करणदेव-इसने भ० पार्श्वनाथ का मन्दिर बनाया था। १३-महीपाल-इसने दुकाल में पुष्कल द्रव्य व्यय कर शत्रुकार दिया था। १४-दे दो-इसने तीर्थों का संघ निकाल यात्रा की थी। १५- कानड़-इसने सूरिजी के प्रवेश महोत्सव में नौ लाख द्रव्य खर्च किया । १६ -- लाखो-राव लाखा के पुत्र पुनड़ ने बड़े ही समारोह से दीक्षा ली थी। १७-धुहड़-इसने बारह व्रत एवं चतुर्थ व्रत प्रहण किया था। १८-राजल-राव राजल बड़ा ही वीर शासक था । १९-मुकन्द-इसने जैन धर्म की अच्छी प्रभावना की थी।
भीनमाल के राजाओं की वंशावली १-राजा जयसेन-स्वयं प्रभसूरि के उपदेश से जैन बना । २-राजा भीमसेन - ब्राह्मणों का पक्षकार वाममार्गी रहा । ३-अजितसेन-( युवराजपद के समय इसका नाम श्री पूँज था) ४-शत्रुसेन-इसने शिव मन्दिर बनाया था। ५-कुम्भसेन--यह जैन श्रमणा से द्वष रखता था । ६-शिवसेन-इसने एक वृहद यज्ञ करवाया था। ७-पृथुसेन-इसके शासन में जैन और ब्राह्मणों के बीच शास्त्रार्थ हुआ था। ८- गंगसेन- इसने आचार्य के उपदेश से जैन धर्म स्वीकार किया। ९-रणमल्ल-इसने शत्रुजय का संघ निकाला। १०-जगमाल - इसने श्रीमाल में भ० महावीर का मन्दिर बनाया। ११-सारंगदेव-इसने पुनः ब्राह्मणों को स्थान दिया था। १२-चणोट-यह राजा कट्टर जैनधर्मी था और जैन धर्म का ख़ब प्रचार किया। १३-जोगड़-इसने तीर्थों का विराट संघ निकाला । १४-कानड़-इसके शासन में विदेशिया का हमला श्रीमालपुर पर हुए १५-रावल-इसने भ० महावीर का मन्दिर बनाया १६-दोहड़-इसने श्राबुदाचल का संघ निकाल यात्रा की थी १७-अजितदेव-इनके समय चन्द्रावती के राजा गुणसेन के साथ लड़ाई हुई १८-मुजल-यह बड़ा ही वीर राजा था और जैनधर्म का कट्टर अनुयायी भी था १९-मालदेव२०-भीमदेव२१-जुंजार-इसके समय गुजरो ने भीलमाल पर आक्रमण कर राज छीन लिया बाद गुजरों ने
राज किया
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मीशमाल का राजवंश
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