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वि० सं० ५२०-५५८ ]
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
९ कलिंगदेश - इसकी राजधानी प्राचीन समय कांचनपुर नगर में थी इस कलिंगदेश की सीमा सदैव एक सी नही रही थी किसी समय इस देश के साथ अंगदेश बंशदेश और कलिंगदेश एवं तीन देश एक समा के नीचे रहने से कलिंग को त्रिकलिंग भी कहा है । इस देश को चेदी के नाम से ही ओलखाया है अतः इस देश पर राज करने वाले चेदी बंशी भी कहलाते हैं इस बंसकी स्थापना करने वाला महामेघवाहन राजा करकंडु था, जिसका चरित्र श्रंगदेश का वर्णन में लिख दिया गया था कि राज करकंडु अंगदेश की चंपानगरी का राजा दधिवाहन की रानी पद्मावती का पुत्र था । और एक भविष्यवेता मुनि का भविष्य वाणी से ही आप कलिंगदेश के सिंहासन को प्राप्त किया था। इस बंश में श्रागे चलकर महामेघबाहन चक्रवर्ती राजा
बेल बड़ा ही नामी राजा हुआ था जिसका खुदवाया विशाद शिलालेख उडीसा प्रान्त की खएडगिरि पहाड़ी के हस्ती गुफा से मिला था जिसके लिये विद्वानों ने करीब एक शताब्दी के कठिन परिश्रम से पता लगाया कि यह शिलालेख राजा खारवेल का है और राजा खारवेल जैन राजा था इस विषय में हमने इस पुस्तक के पृष्ट ३५७ पर विस्तृत वर्णन कर दिया है पर वर्तमान विद्धानों के निश्चित किया समय और श्रीमान् शाह के दिये हुए समय में बड़ा भारी अंतर है विद्धानों का निर्णय किया हुआ समय तो हम ऊपर लिख आये हैं पर श्रीमान शाह का समय वंशावली के साथ यहाँ दे दिया जाता है जिससे पाठक नान सेकेंगे कि इन दोनों में कितना अंतर है ।
नं०
राजाओं के नाम
इ० सं० पूर्व समय
१.
२
३
४
५
६
७
८
९
कर कंडु
सुरथ
शोभनराय
चण्डराज
खेमराज
बुद्धराज
खारवेल
विकराय
मलिया केतु
99
९७४
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५५८
५३७
५०९
४९२
४७५
४३९
४२९
३९३
३७२
५३७
५०९
४९२
४७५
४३९
४२९
३९३
३७२
३६२
वर्ष
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२१
२८
१७
१७
३६
१०
३६
२१
१०
१० श्रांध देश - यह भारत का दक्षिण विभाग का देश है कारण विन्द्याचल पर्वत से भारत के दो विभाग होजाते हैं एक उत्तर भारत दूसरा दक्षिण भारत जिसमें उत्तर भारत के श्रावंती देश से मगद एवं काश्मीर गन्धार तक के देशों का हाल संक्षिप्त से हम ऊपर लिख आये हैं अब दक्षिण की ओर के देशों के लिए लिखा जारहा हैं जिसमें अधिक प्रसिद्ध माँ देश है इस प्रदेश पर सब से पहला राजा श्रीमुख का नाम श्राता है जो नन्दवंशी राजा महापद्मानन्द की शूद्राणी का पुत्र था उसने दक्षिण में जाकर अपना राज्य स्थापित किया था इनके वंशज इतवाहन एवं शतकरणी राजाओं के नाम से प्रसिद्ध थे राजा खारबेल
महाराज करकंडु को महामेघ बाहान की उपाधि थी और उसने कांचनपुर
नगर में भ० पार्श्वनाथ
का विशाल मन्दिर बनाया
था ।
कलिंग देश का राजवंश
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