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आचार्य सिद्धसूरि का जीवन ]
[ ओसवाल सं० ९२०-९५८
स्मिक कुछ भी नहीं कहा जाता है पर यह अनुमान किया जा सकता है कि जिसके पाड़ोस में काशी देश का राजकुमार पार्श्वनाथ ने दीक्षा लेकर तीर्थङ्कर पद को प्राप्त किया था तो उनके उपदेश का प्रभाव कौशल राजा ओं पर अवश्य हुआ होगा अत: वे भी जैन धर्मोपासक ही होगा कौशल नरेशों की वंशावली निम्नलिखित है
राजावली समय इ० सं० पूर्व | वर्ष
०
राजावृत-बंक
७९०
"रत्नजय
६९०
, दिवसेन
६९०
६४०
,, संजय
६४०
५८५
, प्रसेनजित
५८५
५२६
कौशल देश एक समय जैनों के तीर्थ धाम कहलाता था और खूष दूर दूर से लोग यात्रार्थ आया करते थे दूसरा व्यापार के लिए भी यह देश बहुत प्रसिद्ध था अतः जैन साहित्य में कौशल का भी अच्छा स्थान है।
, विदुरथ
५२६
, कुसुलिक "सुरथ , सुमित्र
४७०
४६०
४६०
४५०
प्रस्तुत कौशलदेश की राजधानी के समय समयान्तर का नाम रहे हैं कुस्थल के अलावा अयोध्या अवस्ति नाम भी रहे हैं वर्तमान में सहेट महेट का किल्ला के नाम से प्रसिद्ध है इसका इतिहास यत्र तत्र का स्थानों पर छापा गया है पर उन सबको एक स्थान संकलित करने की आवश्यकता है। वहाँ की भूमि खोद काम से कई स्मारक चिन्ह प्राप्त हुए हैं जिसमें कई ई० सं० पूर्व के हैं तथा अभी कई शताब्दियों की मूर्तियाँ भी मिली हैं उसमें पाँव मूर्तियों पर शिलालेख है जिसमें निम्न लिखित संवत् है:जैन तीर्थकरों की मूर्तियाँ
जैन राजाओं के नाम १ म० विमलनाथ की मृति सं० ११२३
१ मयूरध्वज सं० ९०० २ म० , ११८२
२ हंसध्वज सं० ९२५ ३ म० नेमिनाथ की मूर्ति सं० ११२५
३ मकरध्वज सं० ९५० ४ स्पष्ट नहीं मालुम हुआ सं० १११२
४ सुधानध्वज सं० ९७५ ५ भ० ऋषभदेव की मूर्ति सं० ११२४
५ सुहरीलध्वज सं० १००० ... यह नामावली जैन सत्य प्रकाश वर्ष ७ अंक ४ से लिखी गई है। भूगर्भ से मिली हुई मूर्तियां
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