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आचार्य सिद्धसूरि का जीवन ]
[ओसवाल सं० ९२०-९५८
लिपि और लेखक के आदर्श गुणः-- अक्षराणि समशीर्षाणि वर्तुलानि धनानिच । परस्पर मलग्नानि यो लिखेत् सहि लेखकः ॥१॥ समानि शमशीर्षाणि वर्तुलानि धनानि च । मात्रासु प्रति बद्धानि यो जानाति स लेखकः ॥२॥ शीर्षोपेतान् सुसंपूर्णान शुभश्रोणिगतान् समान। अक्षरान् वै लिखेद् यस्तु लेखकः स वरः स्मृतः ॥ ३ ॥ सर्वदेशाक्षराभिज्ञः सर्व भाषार्विविशारदः । लेखकः कथितो राज्ञः सर्वाधिकरणेषु वै ॥ ४ ॥ मेधावी वाकाटु/रो लघुहस्तो जितेन्द्रियः । परशास्त्र परिज्ञाता एष लेखक उच्यते ॥५॥
लेखक के दोषः-- इलिया य मसिमग्गा य लेहिणी खरडियं चतलव । धिद्धित्ति कूड लेहय ! अज्ज विलेहत्तणे तण्हा,, पिहुलं मसि भायणयं अत्थि मसी वित्थयं सितलवट्ट । अम्हारिसाण कज्जे तए लेहय ! लेहिणी भग्गा" मसिगहिऊण न जाणसि लेहणगहणेण मुद्ध ! कलिओसि ओसरसु कूडलेहय ! सुललिये पत्त विणासेसि,, ____ जो लेखक स्याही ढोलता हो, लेखनी तोड़ता हो, आसपास की जमीन बिगाड़ता हो, खड़िया का बड़ा मुंह होने पर भी जो उसमें डालते हुए लेखनी को तोड़ डालता हो, कलम पकड़ना व दवात में पद्धति. सर डालना न जानता हो फिर भी, लेखनी लेकर लिखने बैठ जाते हो तो उसे कूट लेखक अर्थात् अपलक्षण वाला लेखक जानना । वह लेखक तो केवल सुंदर पानों को बिगाड़ने वाला ही है।
लिपि लेखन प्रकारः लिपि दो प्रकार से लिखी जाती है १ अप्र मात्रा २ पड़ी मात्रा । श्रम मात्रा-परमेश्वर । पड़ी मात्रा-पगमश्वर ।
लेखक-जैप जैन श्रमणों ने पुस्तकें लिखी है वैसे कायस्थ, ब्राह्मण, वगैरह वेतनदारों ने भी लिखी है। उनका वेतन श्रावकों ने देकर अपना नाम अमर किया है । यथाः--
श्री कायस्थ विशालवंश गगनादित्योऽत्र जानामिधः । संजातः सचिवाग्रणीगुरुयशाः श्रीस्तम्भनतीर्थे पुरे ॥ तत्सनुर्लिखन क्रियैककुशलो भीमाभिधो मंत्रीराट् ।
तेनायं लिखितो बुधावलिमनः प्रीतिप्रदः पुस्तकः ॥ श्रीसूयघडांग प्रशस्ति. अणहिल पाटक नगरे, सौर्णिक नेमिचन्द्र सत्कायाम् । बर पौषध शालायाँ राजे जयसिंह भूपस्य" ( पाक्षिक सूत्र टीका यशोदेवीय ११८० वर्षेकृत ) "अणहिल पाटक नगरे, श्रीमज्जयसिंहदेव नृप राज्ये । आशधर सौवर्णि वसतौ विहित"
(बन्ध स्वामित्व हरिभद्रीय कृतिः) "अलि वाडपुरम्मी, सिरि कन्न नराहिबम्मि विजयन्ते । दोहट्टिकारियाए वसहीए संठिए पांच"
( महावीर चरित्र प्राकृत ११४१ वर्षकृतम् ) । "श्रीमदणहिल पाटक नगरे, केशीय वीर जिन भुवने। रचियतमदः, श्री जयसिंह देव नृपतेश्च सौगज्जे"
( नवतत्व भाष्य विवरण यशोदेवीय ११७४ वर्षे ) जैन श्रमणों के प्रस्तक लेखन काल ]
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