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________________ [ आचार्य सिद्धरि का जीवन (घ) बीआबोल अनई लक्खारस कज्जल वज्जल (१) नई अंबारस । 'भोजराज ' मिसी निपाई, पानऊ फाटई मिसी न विजाई । (ङ) लाख टांक बीस मेल स्वाग टांक पांच मेल, नीर टांक दो सो लेई हांडी में चढ़ाइये । ज्यों लों आग दीजे त्योंलो ओर खार सब लीजे, लोदर खार बाल वाल, पीस के रखाइये || मीठा तेल दीप जाल काजल सो ले उतार, नोकी विधि पिछानी के ऐसे ही बनाइये ॥ चाहक चतुर नर, लिख के अनूप ग्रन्थ, बांब बांच बांच रिझ, रिझ भोज पाइये || (च) बोलस्य द्विगुणो गुन्दो गुदस्य द्विगुणा मषी । मदयेद् यात्रयुग्मंतु मषी वज्रसभाभवेत् ॥ "सोनेरी ( सुनहली ) रूपेरी स्याही " [ ओसवाल संवत् ६२० - ९५८ सोने की अथवा चांदी की स्याही बनाने के लिये सोनेरी रूपेरी बरक लेकर खरल में डालने चाहिये | फिर उसमें अत्यन्त स्वच्छ बिना धूल-कचरे का धव के गोंद का पानी डालकर खूब घोटना चाहिये जिससे बरक बंटाकर के चूर्णबत हो जावे । इस प्रकर हुए भूके में शक्कर का पानी डालकर खूब हिलाना चाहिये । जब भूका बराबर ठहर कर नीचे बैठ जावे तब ऊपर के पानी को धीरे २ बाहर फेंक देना चाहिये किन्तु पानी फेंकते हुए यह ध्यान अवश्य रखना चाहिये कि पानी के साथ सोने चांदी का भूका न निकल जाय । इस प्रकार तीन चार बार करने से गोंदा धोया जाकर सोना चांदी का भूका रह जावे उसे क्रमश: सोनेरी रूपेरी स्याही समझना । किसी को अनुभव के लिये थोड़ी सोनेरी रूपेरी ग्याही बनानी हो तो काच की रकाबी में धवके गोंद का पानी चोपड़ कर उस पर छूटे वरक डाल अंगुली से घोट कर उक्त प्रकारेण धोने से सोनेरी रूपेरी स्याही हो जायगी । लाल स्याही - अच्छे से अच्छा हिंगलू, जो गांगड़े जैसा हो और जिसमें पारे का अंश रहा हुआ हो उसको खरल में डाल कर शक्कर के पानी के साथ खूब घोटना चाहिये। पीछे हिंगलू के ठहर जाने पर जो पीला पड़ा हुआ पानी ऊपर तैर कर प्रजावे उसको शनैः शनैः बाहर फेंकना चाहिये। यहां भी पानी फेंकते हुए यह ध्यान रखना चाहिये कि पानी के साथ हिंगलू का अंश नहीं चला जावे । उसके बाद उसमें फिर से शक्कर का पानी डालकर घोटना और ठहरने के बाद ऊपर आये हुए पीले पानी को पूर्ववत् बाहिर फेंक देना । इस प्रकार जबतक पीलापन दृष्टिगोचर होता रहे तब करते रहना चाहिये । दस पंद्रह बार ऐसा करने से शुद्ध लाल सूर्ख दिंगल तैयार हो जायगा । फिर उक्त स्वच्छ हिंगल में शक्कर और गोंद का पानी डालते जाना और घोटते जाना चाहिये । बराबर एकरस होने के पश्चात् हिंगल तैयार हो जाता है । अष्टगंध: - १ अगर २ तगर ३ गोरोचन ४ कस्तरी ५ रक्त चंदन ६ चंदन ७ सिंदूर ८ केशर । इन आठ द्रव्यों के सम्मिश्रण से यह अष्टगंध स्याही बनती है । अथवा, कपूर २ कस्तूरी ३ गोरोचन ४ संघरफ ५ केसर ६ चंदन ७ अगर और ८ गेहूला इन आठ द्रव्यों के सम्मिश्रण भी श्रष्टगंध बते हैं । जैन श्रमणों और पुस्तक काल ] ९५१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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