SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 21
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वि० सं० ३१० - ३३६ वर्षे ] [ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास रही है इनसे बचना चाहो तो आओ जैनधर्म की शरण लो इत्यादि । सिन्ध के लोगों ने सोचा कि जब जीव के कल्याण का समय आता है तब स्वयं उनकी भावना बदल जाती है । हिरा खरगोश की शिकार करने वाले जीव की क्या भावना चढ़ गई है। सच कहा है कि 'कर्मे शूराने धर्मे शूरा' इस युक्ति को हमारे बावजी ने ठीक चरितार्थ करके बतला दी है इत्यादि । सूरिजी एवं कल्याणमूर्ति के कहने से सिन्ध के श्रावकों विश्वास हो गया कि सूरिजी सिन्ध में अवश्य पधारेंगे। वे वंदन कर वापिस लौट गये । सूरिजी ने कई अर्सा तक कच्छ में विहार किया बाद आपश्री ने सिन्ध की ओर प्रस्थान कर दिया जब इस बात की खुशखबरी सिन्ध में पहुँची तो उनके हर्ष का पार नहीं रहा। जब सूरिजी सिन्धवासियों धर्मोपदेश करते हुए वीरपुर पधार रहे थे तो राजा राहूप तथा शाह गोसल और उनके सब परिवार ने सूरिजी का स्वागत बड़े ही धामधूम से किया। क्यों नहीं करे एक तो थे नगर के राजा, दूसरे बन आये माहुली ने अपने पुत्र धरण को देखा तो उसके हर्ष के अश्रु बहने लग गये । सूरिजी भले ही साधु एवं ज्ञानी थे। शायद उनको अपने माता पितादि कुटुम्ब का स्नेह न होगा पर वे तो थे संसारी उनको स्नेह आये बगैर कैसे रह सकता । देवानन्द ने भगवान् महावीर को देखा तो उनके स्तनों से दूध टपकने लग गया। माता राहुली ने अपने बेटे को खूब कहा पर सबका चित बड़ा ही प्रसन्न था एक माई का सुपूत जगत का पूज्य बन कर आया है। सूरिजी का व्याख्यान खूब छटादार होने लगा । जब सूरिजी वैराग्य के विषय को व्याख्यान में चर्चते थे तो लोगों को बड़ा भारी भय उत्पन्न होता था कि न जाने सूरिजी फिर कितनों को साधु बना देंगे। क्योंकि सूरिजी जब संसार के दुखों का चित्र खींच कर बतलाते थे तब लोगों के रूवाटे खड़े हो जाते हैं, और यही भावना होती थी कि इस दुःखमय संसार का त्याग ही कर दिया जाय । पर संसार छोड़ना कोई हँसी मजाक की बात नहीं था जिसके कर्मों का क्षयोपशम हुआ हो वही संसार छोड़ दीक्षा ले सकता है । तथापि सूरिजी ने चार पांच मुमुक्षुओं पर जादू डाल ही दिया पर बनाव ऐसा बना कि दीक्षा लेने वाले तो चार मनुष्य थे पर अन्तिम हजामत बनाने के लिये नाई पांच आगये । जब चार तो चारों की हजामत बनाने लगे तब एक बड़ी ही चिन्ता में उदास होकर बैठा था किसीने पूंछा खवास तू उदास क्यों है ? उसने कहा सेठ साहिब मैं बुलाया हुआ बड़ी आशा करके आया था कि दीक्षा लेने बालों की हजामत करने पर कुछ प्राप्ति होगी पर मेरी तकदीर ही फूटी हुई है । इसपर सेठजी को दया आई और पगड़ी उतार कर कहा कि ले मैं दीक्षा लेता हूँ तू मेरी हजामत बना दे । अहाहा ? कैसे घुर्मी सेठजी कि नाई की दया के लिये आप दीक्षा लेने को तैयार होगये । बस, सूरिजी ने महा महोत्सव पूर्वक पांचों भावुकों को दीक्षा देदी। तदनन्तर राजा राहूप के बनाये पार्श्वनाथ के मन्दिर की प्रतिष्ठा करवाई पश्चात् सूरिजी ने विहार का विचार किया पर माता राहुली ने सूरिजी से कहा कि मैं अब वृद्धावस्था म हूँ न जाने कब चल पड़गी । अतः यह चतुर्मास यहाँ करके हमारा उद्धार करावें । इसी प्रकार शाह गोशल ग्रह प्रार्थना की जिसको सूरिजी ने स्वीकार करली और वह चतुर्मास वीरपुर में करने का निश्चय कर लिया । वस, फिर तो था ही क्या वीरपुर के लोगों के मनोरथ सफल हो गये । माता राहुली ने महामहोत्सव करके सूरिजी से श्रीभगवती सूत्र व्याख्यान में बचाया शाह गोशल इस पवित्र कार्य में नौलक्ष रुपये व्यय किया । माता राहुली ने ३६००० सुवर्ण मुद्रिकाओं से श्री भगवतीजी सूत्र के ३६००० प्रश्नों की पूजा की। इसी प्रकार नागरिक लोगों नें भी आगम पूजा कर ७५८ Jain Education International For Private & Personal Use Only [ सूरिजी का वीरपुर में व्याख्यान www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy