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________________ आचार्य सिद्धसूरि का जीवन ] [ ओसवाल सं० ९२०-९५८ प्राचार्य उमास्वाति-नाम के दो प्राचार्य हुए हैं। एक आर्य महागिरि के शिष्य बलिस्पह और बलिस्सह के शिष्य उमास्वाति । दूसरे युगप्रधान पट्टावली के दूसरे उदय के आठवें आचार्य उमास्वाति जो आर्य जिनभद्र के बाद और पुष्पमित्र के पहिले हुए हैं। यहां पर तो बलिस्सह के शिष्य उमास्वाति के लिए ही लिखा गया है । पट्टावली में आपका समय नहीं बताया गया है तथापि, आर्थ महागिरि का समय वीरात् २१५ से.४५ तक का है तब आपके शिष्य श्यामाचार्य का समय वोरात् ३३५ से ३७६ का लिखा है । २४५ से ३३६ के बीच ९० वर्ष का अन्तर है। और इसी बीच बलिस्सह एवं उपास्वाति नाम के दो आचार्य हुए हैं। यदि ४५ बर्ष का समय बलिस्सह का मान लिया जाय तो २९० बजिस्सह और ३३५ तक उमास्वाति का समय माना जा सकता है। यह तो केवल मेरा अनुमान है पर इतना तो निश्चय है कि वीर नि० २४५ से ३३५ तक में दो आचार्य हुए हैं। श्यामाचार्य:---श्राप आचार्य गुण सुन्दर के बाद और स्कांदिलाचार्य के पूर्व युगप्रधानाचार्य हुए । आपका समय वीर नि. ३३५ से ३७६ तक का है । श्रापका अपर नाम कालकाचार्य भी है। आचार्य विमलमूरि- आपने विक्रम सं० ६० में "पउम चरिय" पदम चरित्र की रचना की थी। आचार्य सुस्थी और सुप्रतिवुद्ध ---आप दोनों प्राचार्य आर्य सुइस्ति के पट्टधर थे । आपका समय भी पट्टावलीकारों ने नहीं लिखा है किन्तु कलिंगपति राजा खारवल के जीवन में लिखा है कि उसने अपने राज्य के बारहव वर्ष में मगध पर आक्रमण किया व कलिंग से नन्द राजा के द्वारा ले जाई गई जिनप्रतिमा को पुनः लाकार आर्य सुप्रतिबद्ध के द्वारा प्रतिष्ठा करवाई। अस्तु गजा,खारवल का समय वीर नि० ३३० से ३६७ तक का है इससे यह कहा जा सकता है कि वीर नि० ३६७ में आर्य सुप्रतिबुद्ध विद्यमान थे । आर्य सुहस्ति का समय वीर नि० २९१ का है इससे, आर्य सुस्थी का समय वीर नि. २९२ से प्रारम्भ होता है । जैसे स्थुलभद्र के पट्टधर दो श्राचार्य हुए और सुस्थी के गच्छ नायक हो जाने के बाद सुप्रतिबुद्ध नायक हुए इन्होंने ३६६ में मूर्ति की प्रातिष्ठा करवाई हो तो आर्य सुस्थी और सुप्रतिबुद्ध का समय बीर नि० २९२ से ३६६ तक का माना युक्तियुक्त ही है । आचार्य इन्द्रदिन्न-श्राप आर्य सुस्थी और सुप्रतिबुद्ध के पट्टधर थे। आर्यदिन्न-श्राप आर्य दिन के पट्टधर थे। आर्य सिंहगिरिः-आप आर्य दिन्न के पट्टधर थे। आर्य वज्र-आप आर्य सिंहगिरि के पट्टधर थे और आपका समय वीर निर्वाण सं० ५४८ से ५८४ तक बतलाया जाता है। __आचार्य बन के पूर्व और आर्य सुप्रतिबृद्ध के बाद में १८२ वर्षों में उक्त तीन आचार्य हुए पर यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है कि कौन से आचार्य कितने वर्षों तक आचार्य पद पर रहे। ___ आर्य समिति और धनगिरि-इन दोनों का समय आर्य सिंहगिरि और आर्य वन के समय के अंतर्गत ही है। आचार्यों का समय निर्णय ] ९३९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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