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आचार्य सिद्धसरि का जीवन ]
[ओसवाल सं० ९२०-९५८
"सिरि दुसमा काल समण संघ थुर्य" (दुषमा काल श्री श्रमण संघ स्तोत्रम् )
[कर्ता-श्री धर्मघोष सूरिः] वीरजिण भुवण विस्सुअ पवयण गयणिकदिणमणि समाणो ।
वन्त सुअनिहाणे थुणामि सूरि जुगप्पहाणे ॥ १ ॥ वीस तिवीस टनवई अडसयरी पञ्चसयरी गुण नवई। सउ सगसी पणनउइ सगसी छयस्सरी अडसयरी२ चउनवइ अठ तिअ सग चउ पन्नुरुत्तरसयं । तित्तिससयं सउ पणनउई नवनवई चत्त तेवीसुदय मरी॥३ अह उदयाणं पढमे,जुगपवरे पणिवयामि तेवीसं। सिरिसुहम्म वयर पडिवय हरिस्सयं नंदिमित्तं च ॥४॥ सिरि सूरसेण रविमित्त सिरिपहं मणिरहं च जसमित्तं। धणसिंहं सच्चमित्त धम्मिल्लं सिरिविजयाणंदं५ वंदामि सुमंगल धम्मसिंह जयदेवसरि सूरदिन्नं । वइसाहं कोडिलं माहुर वणिपुत्त सिरिदत्तं ॥६॥ उदयांतिम मूरी पुसमित्त मरहमित्त वइसाहं । वंदे सुकीत्ति थावर रहसुअ जयमंगलमुणिदं ॥७॥ सिद्धत्थं ईसाणं रहमित्त भरणिमित्तं ददमित्त । सिरिसंगयमित्त सिरिधरं च मागह ममरसूगि८॥ सिरि रेवइमित्त कित्तिमित्त सुरमित्त फग्गुमित्त चाकल्लाण देवमित्तं णमामि दुप्पसह मुणिवसहह वंदे सुहम्मं जंबू पभवं सिज्जंभवं च जसभदं । संभूय विजय सिरिभद्द-बाहु सिरिथूलभद्दच १० महगिरि सुहत्थि गुणसुंदरं च सामज्ज खंदिलायरिउ। रेवइमित्त धम्मं च भइगुत्त सिरिगुत्त॥११॥ सिरिवयरमजरक्खि अमरिं पणामामि पूसमित्त च। इअ सत्तकोडिनामे पढ़ममुदए वीस जुग पवरे॥१२॥ बीए तिवीस वइरं च नागहत्थि च रेवइमित्त । सीहं नागज्जुणं भूइदिन्नियं कालय वंदे ॥१३॥ सिरिसच्चमित हारिलं जिणभदं वंदिमो उमासाई ! पुसमित्त संभूई मादर संभृइ थम्मरिसिं ॥१४॥ जिग फग्गुमित्तं धम्मधोसंच विणयमितं च। सिरि सीलमितरेवइमित्तं सूरि सुमिणमित्तंहरिमित्तं१५ इय सब्बोदय जुगपवर सूरिणो चरणसंजूए वंदे । चउतर दुसहस्सा दुप्पसहते सुहम्माइ ॥ १६ ॥ इय सुहम्म जंबू तब्भवसिद्धा एगावयारिणो सेसा । सड्ढ्दुजोअणमझे जयंतु दुभिक्खडमरहरा ॥१७ जुगपवर सरिस सूरी दुरीकय भबियमोह तमपसरे । वंदामि सोल सुत्तर इगदस लक्खे सहस्सेय ॥१८॥ पंचमअरम्मि पणवन्नलक्ख पणनन्न सहस कोडीणं । पंचसयकोडिपन्ना नमामि सुचरण सयलसूरी१९ तह सतरिकोडिलक्खा नवकोडिसय बारकोडियं । छप्पन लक्ख बत्तीस सहस्स एगूण दुन्निसया॥२०॥ तहसोल कोडिलक्खा,तियकोडिसहस्सा तिन्निकोडिसया। सतरस कोडिचुलसी लक्खा सुसावगाणं तु २१ पणतीसकोडिलक्खा सुसाविया कोडिसहस्स बाणउई । पणकोडिसया बतीस कोडि तह बारम्भहिया२२ एवं देविंदनयं सिरिविजयाणंद धन्मकीतिपयं । बीरजिण पवयण ठिई दूसमसंघ णमह निच ॥२३॥
॥ इय दुसमा काल सिरि समण संघ थुयं ॥ दुषभ काल श्री श्रमणसंघ स्तोत्र ]
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