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________________ आचार्य सिद्धसूरि का जीवन ] [ ओसवाल संवत् १२०-९५८ में इतना उत्साह एवं हर्ष छा गया था कि जिसका तुच्छ लेखनी द्वारा वर्णन ही नहीं किया जा सकता कारण एक तो सूरिजी का पधारना दूसरा मुनि शेखरहंस साथ में जोकि चन्द्रावती नगरी का कोट्याधीश सेठ सालग के नाम से मशहूर था । चन्द्रावती नगरी के श्रीसंघ और विशेष में सेठ सांगण ने नगर-प्रबेश का इस कदर से महोत्सव किया कि जिसमें उन्होंने सवालक्षद्रव्य व्यय कर डाला । इससे पाठक समझ सकते है कि उस समय की जनता के हृदय में धर्म भावना कहाँ तक बड़ी हुई थी। आचार्य सिद्धसूरि का धारावाही व्याख्यान हमेशा होता था, जिसमें दार्शनिक तात्विक आध्यात्मिक विषय के साथ में अधिक जोर त्याग वैराग्य पर दिया जाता था जिसका प्रभाव जनता पर इस कदर पड़ता था कि वे क्षणिक संसार से विरक्त बन सूरिजी के चरणों में दीक्षा ले अपना कल्याण करने की भावना किया करते थे सूरिजी के व्याख्यान का लाभ केवल साधारण जनता ही नहीं लेती थी पर वहां के राजा एवं राजकर्मचारीगण भी उपस्थित होते थे और वे सूरिजी के व्याख्यान की सदैव भूरि भूरि प्रशंसा भी किया करते थे। ___ सेठ सालग के द्वारा प्रारंभ किया गया बावन देहरी वाला विशाल मन्दिर तैयार होने आया अतः सेठ सांगण ने सूरिजी से प्रार्थना की कि पूज्यवर ! पूज्य पिताजी का प्रारम्भ किया मन्दिर तैयार हो गया है अतः इसकी प्रतिष्ठा करवा कर हम लोगों को कृतार्थ बनावें हमें विशेष हर्ष इस बात का है कि इस समय हमारे पूज्य पिताजी (शेखर हंस मुनि) आपकी सेवा में यहां विद्यमान हैं और यह हमारा अहोभाग्य है कि इनके हाथों से प्रारम्भ किये हुए मन्दिर की इनके ही हाथों से प्रतिष्ठा हो जाय ? सूरिजी ने कहां सांगण तुम्हारे पिता तो भाग्यशाली हैं ही पर तू भी बड़ा ही पुण्यशाली है कि पिता का आरम्भ किया कार्य बड़े ही उदार दिल से सम्पूर्ण करवा कर प्रतिष्ठा करवा रहा है । सांगण ! मन्दिर बनाना यह साधारण कार्य नहीं है यह एक विशेष कार्य है शास्त्रकारों ने कहा है कि मंदिर बनाने वाला बारहवां स्वर्ग तक पहुँच कर शीघ्र ही मोक्ष प्राप्त कर लेता है कारण एक महानुभाव के बनाये मन्दिर से अनेक भव्य अपना कल्याण कर सकते हैं जैसे एक मनुष्य कूप बनाता है उस समय उसको कई प्रकार के कष्ट उठाने पड़ते हैं पर जब कूप में पानी निकल पाता है तब उसका सब कष्ट दूर हो जाता है, थकावट उतर जाती है और उस कूवे का पानी हजारों लोग पीकर अपनी तृषा रूपी आत्मा को शांत करते हैं, इतना ही क्यों पर कुवा बनाने वाले को आशीर्वाद भी दिया करते हैं इसी प्रकार मंदिर को भी समझ लीजिये कि मन्दिर बनाने में जल पत्थर चूना वगैरह लगते हैं पर जब भगवान की मूर्ति तख्त निशान होती है तब वे सब आरम्भ एक क्षण की भावना से विशुद्ध बना देते हैं और जहां तक वह मंदिर विद्यमान रहता है हजारों लाखों और करोड़ों भावुक उस मन्दिर से भी अपनी आत्मा का कल्याण कर सकता है इसलिये मंदिर बनाने वाला शीघ्र मोक्ष प्राप्त कर सकता है यदि तुम्हारी भावना है तो धर्मकार्य में विलम्ब नहीं करना। संठ सांगण ने कहा पूज्यवर ! आप इस कार्य के लिये शुभ मुहूर्त दिरावे इतना ही विलम्ब है शेष सब कार्य तैयार हैं सूरिजी ने माघ शुक्ला पंचमी का मुहूर्त दे दिया जिसको सेठ सांगण ने बड़े ही हर्ष के साथ बधा कर ले लिया और करने लगा प्रतिष्ठा की तैयारियां सेठ सांगण को बड़ा ही उत्साह था उसने नजदीक और दूर दूर प्रदेशों में आमंत्रण पत्रिकाएं भिजवा दी। उस समय का चन्द्रावती एक समृद्धशाली नगरी थी । राजा प्रजा प्रायः जैनधर्मोपासक थे आस पास के प्रदेशों में भी जैनों का ही साम्राज्य था और सेठ सालग के प्र० मन्दिर की प्रतिष्ठा ६०८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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