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________________ वि० सं० ५२०–५५८ वर्षे ] [ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास ३५-प्राचार्यश्री सिध्दसूरीश्वरजी (षष्टम्) सिद्धाचार्य इहाभवद्विरहटे गौत्रे सुशोभायुत : । सम्मेतं विदधौ धनेन शिखिरं संघं तु कोट्यासुधीः । निर्वाणालय नाके चम विहितो दीक्षायुतो यःस्वयं । नित्यं जैनमतं प्रचार्य बहुधा रव्यातोऽसको जातवान् । ADS OD . (SEDIO चार्य सिद्धसूरीश्वरजी महाराज एक प्रभावोत्पादक सिद्धपुरुष आचार्य थे आपश्री ..अपने कार्य में बड़ेही सिद्धहस्त एवं जैनधर्म के प्रखर प्रचारक थे । आपश्री या वर्तमान जैन साहित्य एवं व्याकरण न्याय तर्क छन्द काव्य अलङ्कार ज्योतिष गणित और अष्टमहानिमित के पारगत थे आसन योग समाधी एवं स्वरोदय तथा @@ अनेक विद्या लब्धियों को आपने हस्तामलक की तरह कर रक्खी थी । आपश्रीजी HW जैसे ज्ञानके समुद्र थे वैसे ही ज्ञानदान करने में धन कुबेर भी थे यही कारण था कि स्वगच्छ परगच्छ के अलावे बहुत से जैनेतर विद्वान भी आपश्री की सेवा में रहकर रूचि पूर्वक ज्ञाना ध्ययन किया करते थे। शास्त्रार्थ में तो आपश्रीजी इतने निपुण थे कि कई राजा महागजाओं की सभाओं में वादियों को परास्त कर ऐसी धाक जमादीथी कि वे सिद्धसूरि का नाम श्रवणमात्र से दूरदूर भागते थे। आपके पूर्वजों से स्थापित की हुई शुद्धि की मशीन चलाने में तो आप चतुर ड्राइवर का ही काम करते थे, आपश्री का विहार क्षेत्र इतना विशाल था कि प्रत्येक प्रान्त में आपका विहार हुआ करता था श्रापने अनेक भावुकों को दीक्षा दी लाखों मांसमदिरा सेवियों को जैनधर्म में दीक्षित किये और भविष्य की प्रजा के लिये कई प्रन्थों की रचनाएं भी आपश्री ने की आचार्य सिद्धसूरि अपने समय के एक युगप्रवर्तक आचार्य हुए है आपका पुनीत जीवन पूर्णरहस्यमय एवं जनकल्याणार्थ ही हुआ था पट्टावलीकारों ने श्रापश्री का जीवन खूष विस्तार से लिखा है पर प्रन्थ बढ़ जाने के भय से मैं यहां पर केवल आपश्री के जीवन का संक्षिप्त दिग्दर्शन करवा देता हूँ। भारत के विभूति रूप वीरप्रसूत मेदपाट भूमि के भूषण चित्रकोट नामका रम्य एवं विशाल नगर था कवियों ने तो यहां तक ओपमा दे डाली है कि चित्रकोट सदैव स्वर्ग की ही स्पर्धा करता था परन्तु जहाँ अनेक प्रकार का रसवती-खादापदार्थ पैदाहोता हो व्यापार का केन्द्र हो और जहाँ के निवासी पर द्रव्यग्रहण करने में पंगु, पर रमणी देखने में प्रज्ञाचक्षु, पर निंदा करने में मूक और पर अपवाद सुनने में बेहरे हो वहाँ स्वर्ग क्या अधिकताइ रखता है कारण स्वर्ग में इन सब बातों का आस्तित्व विद्यमान है अतः चित्रकोट की वगवरी स्वर्ग स्यातही करसके ? वहां के प्रजाजन अच्छे लिखेपढ़े उद्योगी एवं परिश्रम जीवी अपना जीवन सुखशान्ति से व्यतीत कर रहे थे चित्रकोट की जनता के कल्याण के लिये उच्च २ शिखर व सोने के दंडकलस वाले जिनमन्दिर थे उनकी सेवा पूजा भक्ति करने वाले हजारों लाखोंभक्तलोग तनधन से सम्रद्धशाली बसते थे वे कई गजके मंत्री महामंत्री सैनापति वगैरह पद प्रतिष्ठित भी थे और अधिक लोग व्यापारी थे उनकाव्यापार केवल आचार्य श्री सिद्ध सरिका जीवन ] ८९५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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