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वि० सं० ४८०-५२० वर्ष 1
[भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
कुछ अर्से के लिये आस पास के प्रदेशों में विहार कर वापिस खटकुप नगर पधार कर चतुमस कर दिया । शाहराजसी एवं धवल ने महा महोत्सव पूर्वक आगम भक्ति एवं हीरा पन्ना माणक मोतियों से ज्ञान पूजा कर महा प्रभाषिक श्री भगवतीजी सूत्र सूरिजी के कर कमलों में अर्पण किया और आपने उसको व्याख्यान में बांच कर श्री संघ को सुनाना प्रारम्भ कर दिया जिससे जैन जैनेतर श्रोताजन को बड़ा भारी आनन्द आया । सूरिजी के विराजने से केवल खटकु नगर को ही नहीं पर भासपास के जैनों को भी अच्छा लाभ मिला विशेष धवल को तो ज्ञान पढ़ने की इतनी सुविधा मिल गई कि कई असे से उनके दिल में रूची थी अतः सूरिजी के विराजने से उसने अच्छा लाभ उठाया इधर राजसी सूरिमी से परामर्श कर श्री सम्मेत शिखरजी के संघ की तैयारियां करने लग गया। खूब दूर-दूर प्रदेशों में आमन्त्रण पत्रिकाएं भिजवा दी । मरुधर से सम्मेतशिखरजी का संघ कभी कभी ही निकलता था अतः संघ का अच्छा उत्साह था ठीक समय पर खूब गहरी संख्या में संघ का शुभागमन हुआ जिसका राजसी ने सुन्दर स्वागत किया और सूरिजी का दिया हुआ शुभ मुहूर्त मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी को शाह राजसी के संघपतित्व एवं सूरिजी की अध्यक्षत्र में संघ ने प्रस्थान कर दिया जो आसपास में साधु साध्वियां थी वह शुरू संघ के साथ और भी आने वाले थे उनके लिये रास्ते में दो तीन ऐसे स्थान मुकर्रर कर दिये कि वहां आकर संघ में शामिल हो जाय । मार्ग में कई तीर्थ आये जिन्हों की यात्रा अष्टान्हिका एवं ध्वजमहोत्सव स्वामिवात्सल्य वगैरह शुभ कार्य करते हुए और इन कार्यों में पुष्कल द्रव्य व्यय करते हुए संघ श्री वीस तीर्थङ्गरों की निर्वाण भूमि सम्मेतशिखरजी पहुँच गया दूर से तीर्थ का दर्शन होते ही संघ ने अपना अहोभाग्य मनाया। बीस तीर्थङ्करों के चरण कमलों की स्पर्शना पूजा प्रभावना स्वामिवात्सल्य अष्टान्हिका एवं ध्वज महोत्सव औरह किया राजसी की ओर से द्रव्य की खले दिल से छ. थी क्यों न हो जिसके पास चित्रावल्ली हो और चित्त उदार हो फिर कभी ही किस बात की श्री संघ ने पूर्व के और भी करने योग्य तीर्थ थे उन सबकी यात्रा कर वापिस लौटा और क्रमशः रास्ते के तीर्थों की यात्रा कर पुनः खटकुप नगर की भोर आ रहा था वहां के श्री संघ ने संघ का अच्छा स्वागत कर वधाकर संघ को नगर प्रवेश करवाया। इस विराट संघ का केवल जैनों पर ही नहीं पर बड़े बड़े राजा महाराजा एवं जैनेतर जनता पर भी काफी प्रभाव पड़ा था जीर्णोद्धार और जीवदाय की ओर संघपति का अधिक लक्ष था और सहधर्मी भाइयों के लिये तो कहना ही क्या था संव लेकर वापिस भाने के बाद राजसी ने तीन दिन तक संघ और तमाम नगर के लिये जीमणवार कर सबको मिष्टान्नादि से तृप्त किये बाद पुरुषों को सोने की कंठियां और बहिनों को सोने का चूड़ा और वस्त्रादि की पहरामणि दी और याचकों को तो इत्ना द्रव्य दिया कि उनके घरों का दारिद्रय ईप करके चोरों की भांति नगर से ही नहीं पर देश से मुंह लेकर भाग गया शाह राजसी के पास रहने वाली लक्ष्मी और सरस्वती देवियों का स्वागत देखकर कीर्ति देवी कोषित हो अर्थात् ईषां कर भाग छूटी कि पद देश विदेश में घूमने एवं फिरने लगी।
शाह राजसी के द्वारा आरम्भ किया हुआ मंदिर खूब जोरों से तैयार हो रहा था मंदिर इतना विशाल था कि जिसके चौरासी देहारियां और कई रंग मण्डप बन रहे थे कारीगर और मजदूर बहुन संख्या में लगाये गये थे तथापि शिल्प कला का काम सुन्दर एवं विशेष होने के कारण अभी उसके लिये समय लगने की संभावना थी कुंकुंदाचार्य खटकुप नगर से विहार कर शंखपुर आशिका दुर्ग वगैरह ग्राम नगरों को पवित्र बनाते हुए नागपुर पधारे और वह चतुर्मास नागपुर में कर दिया नागपुर में जैनों की संख्या विशेष थी आप श्री के विराजने से जैनधर्म की खूब प्रभावना एवं जागृति हुई चतुर्मस के बाद कई मुमुक्षुओं ने सूरिजी के चरण कमल में भगवती जैन दीक्षा ग्रहण की तदनन्तर सरिजी मुग्धपुर, फलावृद्धि, हंसावली, पद्मावती, मेदिनीपुर, भवानीपुर और शाकम्भरी दि छोटे बड़े ग्रा मगरों में बिहारकर भव्य जीवों को धर्मोपदेश दिया जिससे धर्म का खूब ही उद्योन हुआ। शाह र जसी ने सकुटुम्ब सरिजी की सेवा में जाकर खटकुम्प नार पधारने की साग्रह विनती की अतः सूरिजो खटकुंप पधारे। और मन्दिरजो की देख-रेख को शाहराजसी ने प्रार्थना की कि पूज्यवर ! अब मन्दिरजी तैयार हने में हैं शेष काम रह जायगा तो मैं करवाता रहूँगा पर इसकी प्रतिष्ठा पूज्य के करकमलों से हो जाय तो मैं मेरे जीवन को सफल हुआ समझें? आचार्य ८८२
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