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________________ प्राचार्य कक्कसूरि का जीवन ] [ ओसवाल संवत् ८४०-८८० .... " महावीर १३-श्रीनगर के चरडगौ० , नाराके बनाये महावीर मं. १४-दुर्गापुर के भाद्रगौ , गोल्हाके १५-- हाँसीपुर के लगगौ० , सुखाके १६--कुंन्तिनगरी के करणाटगौ० , बागाके नेमिनाथ १७-सौपारपटन के कुलहटगौ० , भैरूके शान्तिनाथ १८-चन्द्रावती के विरहटगी० , विजाके संभवनाथ १९-धोलपुर के मोरक्षगौ० ,, नवलाके शीतलनाथ २०-भादलिर के बलाहगौ० , पोकरके २१-घघनेर के प्रागवटवंशी , नोंधणके २२-बालापुर के प्राग्वट , , ताल्हाके पद्मनाभादि २३-चम्पार के प्राग्वट , करमणके , सीमंधर २४-चंदेरी के श्रीश्रीमाल , मदाके , महावीर इनके अलावा भी आपके श्राज्ञावर्ती मुनियों ने भी बहुत मन्दिरों की प्रतिष्टाए करवाई थी उस समय जनता की मन्दिर मूर्तियों पर अटल श्रद्धा एवं अलोकिक भक्ति थी। पट्ट तेतीसवे कक्कसरि आदित्य नाग प्रभो बढ़ाई थी कुकुंद आचार्य बनके गच्छ में शाखा दोय बनाई थी ___अर्बुदाचल जाते श्रीसंघ के जीवन आप बचाये थे सोमाशाह के बंधन टूटे, सहायक आप कहलाये थे इति भगवान् पार्श्वनाथ के ३३ वें पट्टधर आचार्य कक्कसूरि महान् प्रतिभाशाली प्राचार्य हुए दर _आचार्य श्री के शासन में म० मू० प्रतिष्टाए ] Jain Education International For Private & Personal Use Only ८७७ www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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