SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 137
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वि० सं० ४४० - ४८० वर्ष ] [ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास जैन समाज का सबसे पहला कर्त्तव्य है कि ऐसे महान् उपकारी पुरुषों के उपकार को हमेशाँ स्मरण में रखे और सालोसाल उनकी जयन्तिया मनात्रे - वार्य श्री कसूरिजी महाराज अपनी वृद्धावस्था में उपकेशपुर के श्रेष्टिगोत्रीय शाह मंगला के संघपतित्व में प्रस्थान हुए श्रीशमुँजय के संघ में पधारे थे संघ श्रीशत्रुंजय पहुँचा उस समय रात्रि में देवी चायिका ने सूरिजी से प्रार्थना की कि पूज्यवर ! कहते बहुत दुख होता है पर कहे बिना भी रहा नहीं जाता है कि आपका आयुष्य अब सिर्फ ३३ दिन का रहा है अतः आप अपने पट्टपर योग्य मुनि को आचार्य बनाकर यहीं पर सलेखना करावे इत्यादि । सूरिजी ने कहा देवीजी आपने बड़ी भावी कृपा की हैं कि मुझे सावधान कर दिया है मैं आपका बड़ा भारी उपकार मानता हूँ । देवीने कहा पूज्यवर ! इसमें उपकार की क्या बात है यहतो मेरा कर्तव्य ही था जिसमें भी आप जैसे विश्वोपकारी महात्मा की जितनी सेवा की जाय उतनी ही कम हैं आपका और आप के पूर्वजों का मेरेपर जो उपकार हुआ है उसकी और देखाजाय तो उस कर्ज का व्याज भी मेरे से अदा नहीं होता है इत्यादि सूरिजी का अन्तिम 'धर्मलाभ' प्राप्त कर देवीतो अपने स्थान पर चली गई और सुबह उपकेशपुर के संघ एवं उपस्थित सकल श्रीसंघ के अध्यक्षस्व में महा पुनीत सिद्धगिरि की शीतल छाया में उपाध्याय राजहंस को अपने पट्टपर आचार्य बनाकर अपना सर्वाधि कार श्राचार्य देवगुप्तसूरि के सुपर्द कर दिया । अधिकार का अर्थ इतना ही था कि जो आचार्य रत्नप्रभसूर के पास दीक्षा लेते समय पन्नामय पार्श्वमूर्ति थी और वह परम्परा पट्टानुक्रम श्राचार्य की उपासना के लिये रहती थी कक्कसूरि ने नूतनाचार्य देवगुप्तसूरि को देदी तत्पश्चात् समय जान कर कक्कसूरि ने अनशन कर दिया और २७ दिन के अन्त में पांच परमेष्टीके ध्यानपूर्वक समाधि के साथ स्वर्गवास पधारगये । देवी सचायिका से श्री संघकों ज्ञात हुआ कि आचार्य श्री दूसरे ईशान देवलोक में महर्द्धिक दो सागरोपम की स्थिति वाले देवता हुए हैं । श्राचार्यश्री के स्वर्गवास का समय पट्टावली कारने वि० सं० ४८० चैत्रशुक्त चौदस का लिखा है अतः चैत्रशुक्ल चौदस का दिन हमारे लिये उन परमोपकारी आचार्य के स्मृति का दिन हैं। पट्टावलियों एवं वंशावलियों में आपके ४० वर्ष के शासन के शुभ कार्यों की विस्तार से नोंध की है पर मैं मेरे उद्देश्यानुसार यहाँ पर संक्षिप्त ही नामावली लिखदेता हूँ। १ - उपकेशपुर - २- माडव्यपुर ३ - क्षत्रीपुरा ४ -- के के के माणकपुर के ५- बेनापुर ६- राजपुर ७--- धनाड़ी ८--चरपट ९ - पाल्हिका आचार्यश्री के शासन में भावुकों की दीक्षाएँ श्रेष्टिगो शाह सूरिजी के पास बाप्प नागगौ मल्ल गौ० चरड़गौ ८७४ Jain Education International る २ के के भूरिगौ० सुघड़गौ० बोहरागौ० के लुंगगौत्र ० श्रदित्यनाग० $3 92 39 "" 33 93 39 59 देवाने जखड़ने जोगड़ाने भाखरने कल्हणने सारणने सहजपाल ने हरपालने देपालने 19 For Private & Personal Use Only " 19 93 93 22 " "3 दीक्षाल 19 " " "" "" 22 "" "" [ आचार्य श्री के शासन में भावुकों की दीक्षा www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy