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________________ वि० सं० ४४०-४८० वर्ष । [ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास ही रहे थे कारण आपश्री का विश्वास कुकुदाचार्य पर था और उन्होंने गच्छ की सार सभाल भी अच्छी तरह से की थी पर सब तो सब व्यवस्था आपको ही करनी पड़ेगी ठीक समय पर उपकेशगच्छ कोरंटगच्छ वीर सन्तानियों में चन्द्र नागेन्द्र निवृति विद्याधर कुन के तथा अन्य भी आसपास में विहार करने वाले मुनिगण खूब गहरी तादाद में आये क्योंकि उस समय मुनियों की संख्या भी हजारों की थी पर कुकुदाचार्य के पद धर अपने कई साधुओं को लेकर पूर्व की और यात्रार्थ प्रस्थान कर दिया था। शेष रहे हुए मुनि चन्द्रावती आ भी गये थे इसी प्रकार भिन्नमाल का संघ भी स्वल्प संख्या में ही आया था सूरिजी और चन्द्रावती का संघ समझ गया कि इसमें अधिक कारण भिन्नमाल संघ का ही है खैर। ठीक समय पर सभा हुई जिसमें अन्योन्या मुनियों के व्याख्यान के पश्चात् आचार्य का सूरि का व्याख्यान हुआ जिसमें आपने आचार्य स्वयंप्रभसूरि रत्नप्रभसूरि के समय का इतिहास बड़े ही महत्व पूर्ण एवं मार्मिक शब्दों में कह कर यह बतलाया कि लन महापुरुषों ने हजारों कठनाइयों को सहन कर अनेक प्रदेशों में धर्म के बीज बोये और पिछले आचार्यों ने जलसिंचन किया जिससे महाजन संघ रूपी एक कल्पवृक्ष आज फला फूल एवं हरावर विद्यमान है इसमें मुख्यकारण प्रेमस्नेह ऐक्यता का ही है आचार्य रत्नप्रभसूरि के समय पार्श्वनाथ संतानियों की दो शाखाए हो गई थी जो उपकेशगच्छ और कोरंटगच्छ के माम से कहलाई जाती थी बाद में पूर्व प्रदेश में विहार करने वाले महावीर संतानियों का भी श्रावति लाट सौराष्ट एवं मरूधर में प्रधार ना हुआ पर इन सब गच्छों में धर्मस्नेह और ऐक्यता इस प्रकार की रही कि अन्य लोगों को यह बात नहीं हुआ कि ये दो पार्टि एवं दो गच्छ-समुदाय के साधु है। यही कारण है कि वे वाममार्गियों के अ तोड़ दिये शास्त्रार्थ में बोद्धों को एवं यज्ञादियो को नतमस्तक कर दिये और लाखों करोड़ो जैनेत्तरों को जैनधर्म में दीक्षित कर चारों और जैनधर्म का झंडा फहरा दिया । प्यारे आत्मबन्धु श्रमण श्रमणियों यह आपकी कसोटी का समय है कलिकाल आपकी कई प्रकार की परीक्षा करें के कई ऐसे कारण भी उपस्थित करेंगे जो आपस में फूट डालने के अग्रेश्वर होंगे । पर आपकी नसों में भगवान महावीर का खून है तो तुम एक की परवाह मत करो और कलिकाल के शिरपर लात मार कर बतला दो कि हम सब जैन एक है हमारा कर्तव्य है कि हम किसी प्रकार की कठनई की परवाह न करके प्राणप्रण से धर्मप्रचार में लग जावेंगे। इतना ही क्यों पर धर्म के लिये हम हमारे प्राणों की भी परवाह नहीं करेंगे । हमारे अन्दर गच्छ समुदाप शाखा भले नाममात्र से पृथक्पृथक हो पर हम सबका ध्येय एक है !लक्ष एक है !! कार्य एक है !!! हम भगवान वीर की सन्तान एक है इत्यादि अतः हम सब एक सुतर में प्रन्थित रहेंगे तब ही शासन की सेवा कर सकेंगे। प्यारे मुनि पुंगओं । पूर्व जमाना के अनेक जनसंहारक दुकाल और विधर्मियों के संगठित अक्रमण एवं विदेशियों के कठोर अत्याचार का इतिहास पढ़ने से रूवाटा कापने लग जाता है पर धन्न है उन शासन संरक्षकों को कि उस विकट समय में भी वे कटिवद्ध तैयार रहते थे इतना ही क्यों पर उन्होंने जैनधर्म को जीवित रखा है अतः आप के लिये तो समयानुकुल है सब साधन मौजूद है जहाँ देखो वहाँ आपका ही झंडा फहराह रहा है अतः आप लोगों को शीघ्रतिशीघ्र कमर कस कर तैयार हो जाना चाहिये मझे आशा ही नहीं पर दृढ़ विश्ववास है कि जैनधर्म का प्रचार के लिये आप एक कदम भी पीच्छे न हटकर उत्साह पूर्वक आगे बढ़ने की कोशिश करेंगे। वस सूरिजी की औजस्वी बाणी का चतुर्विध श्रीसंघ और विशेष श्रमणसंघ पर इस कदर का प्रभाव पड़ा कि उनकी अन्तरात्मा में एक नयी विजली का ही संचार हो ८७२ सूरिजी का ऐक्यता के विषय उपदेश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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