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आचार्य कक्कमरि का जीवन ]
[ओसवाल संवत् ८४०-८८०
मुनि कल्याणसुन्दर को कुकुदाचार्य के पट्टपर आचार्य बनाकर उनका नाम देवगुप्तसूरि रक्खदिया जब जाकर उनकों संतोष हुआ । वहा रे कलिकाल तुमको भी नमस्कार है एक अपनी बात के लिये धर्म-शासन एवं गन्छ के हिताहित की कुछ भी परवाह नहीं की इतना ही क्यों पर स्वयं कुकुदाचार्य के कहने को भी ठुकरादिया इस शाखा के बीज तो कुकुदाचार्य ने ही बोये थे पर भिन्नमाल श्रीसंघ ने उसमें जॉनडालकर चिरस्थायी बनाने का दुःसाहस करके उपकेशगच्छ के दो टुकड़े करदिये जो परम्परा से चले आरहे थे वे उपकेशपुर की शाखा और कुकुदाचार्य के अनुयायियों की भिन्नमाल शाखा नाम पड़ गये आगे चलकर इन दोनों शाखाओं के प्राचार्यों के नाम कक्कसूरि देवगुप्त सूरि और सिद्धसूरि रखेजाने लगे। जिससे पट्टावली में इतना मिश्रण एवं गड़बड़ हो गई कि जिसका पता लगाना कठिन होगया। कारण पिछले लेखकों ने उपकेशपुर शाखा में भिन्नमाल शाखा के प्राचार्यों की कई घटना लिखदी और कई भिन्तमाल शाखाकी पटावली में उपकेशपुर शाखा के प्राचार्यों की घटना लिखदी है इतना ही क्यों पर आगे चलकर एक सिद्धसूरिजी से खटकूपनगर की और कक्कसूरिजी से चन्द्रावती शाखा निकाली उनके आचार्यों के भी वे ही तीननाम रखा गया कि जिससे मिश्रण की कठिनाइयों और भी बढ़गई जिसकों हम आगे चलकर बतायेंगे कि इस उलझनों को सुलमाने में अनेक प्रकार बारीकी से गवेषना करने पर भी पूर्ण सफलता मिलनी मुश्किल होगई है।
प्राचार्य कक्कसूरिजी महागज पूर्व की यात्रा की जिसमें आपको पांच वर्ष व्यतीत होगया बाद वहां से बनारस हस्तनापुर वगैरह की यात्रा कर पंचाल कुनाल होते हुए सिन्ध में पधारे वहाँ आपको खबर मिली कि कुकुदाचार्य का स्वर्गवास होगया और भिन्नमाल संघ ने आपके पट्ट पर देवगुप्तसूरि नाम का आचार्य बना दिया है इत्यादि जिप्सको सुन कर आचार्यश्री को बहुत रंज हुआ ! पर आपकी पहिले से ही धारणा थी कि कुकुंदाचार्य भले विद्वान हो पर पीछे शायद कोई ऐसा निकल जाय इत्यादि । आखिर आपकी धारणा सत्य ही निकली । सूस्जिी ने भवितव्यता पर ही संतोष किया । आपश्री ने कन्छ भूमि की स्पर्शना करते हुए सौराष्ट्र में पधार कर तीर्थ श्रीशत्रुजय की यात्रा की और वहां से मरुधर में पदार्पण किया और चन्द्रावती के श्रीसंघ की आग्रह से चन्द्रावती में चतुर्मास कर दिया । चन्द्रावती का श्रीसंघ शुरू से ही उपकेशगच्छ का अनुरागी था सूरिजी वहां के श्रीसंघ से परामर्श किया कि उपकेशगच्छ की शाखा दो होगई यह तो एक होने की नहीं है पर भविष्य में जैसा उपकेशगच्छ और कोरंटगच्छ में सम्प ऐक्यता रही इसी माफिक इन दोनों शाखा के आपस में सम्प ऐक्यता रहे तो अच्छी तरह मेल मिलाप से शासन सेवा बन सके इत्यादि। संघ अप्रेश्वरों ने कहा पूज्यवर ! श्राप शासन के हितचिंतक हैं आपकी उदारता का पार नहीं है हम लोग अच्छी तरह से मानते हैं कि श्राप भिन्नमाल पधार के ऐक्यसा बनी रहने के लिये बड़ा प्रयत्न किया पर वह कमि की करता को पसन्द नहीं हुमा पाखिर उसने अपना प्रभाव डाल ही दिया। अब इसके लिए वो वल एक ही मार्ग है कि चतुर्मास के बाद वहां पर एक श्रमण सभा की जाय और श्रमण संघ एकत्र हो उसको भविष्य का हित समझाया जाय इत्यादि । सूरिजी ने स्वीकार कर लियः । सूरिजी का चतुर्मास अच्छी तरह से होगया विशेष उपदेश सम्प ऐक्यता सगठन के विषय का दिया जाता था इधर श्रीसंघ ने संघ संभा की तैयारियों करनी प्रारम्भ करदी । और सामन्त्रण पत्रिकाएँ नजदीक एवं दूर दूर भेजवा दी तथा मुनियों के लिये खास खास श्रावकों को भेजे गये थे वही माघ शुक्ल पूर्णिम का शुभ दिन सभा के लिये मुकर्रर कर दिया जिससे नजदीक एवं दूर दूर प्रान्तों से भी मुनियों के आने में सुविधा रहे। बहुत वर्ष हुए श्राचार्यश्री भ्रमण करने में चन्द्रावती का श्री संघ और श्रमण सभा ]
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