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________________ वि० सं० ४४०-४८० वर्षे ] [ भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास मौख्य रोग अपनी भूल स्वीकार नहीं करना ही है । एक तरफ या दोनों तरफ से भूल होने के कारण ही राग द्वेष पैदा होता है यदि अपनी अपनी भूल को स्वीकार कर लेता है तब रागद्वेष चौरों की भांति भाग छुटता है इत्यादि सूरिजी ने अपने विचारों का जनता पर इस कदर प्रमाव डाला कि जिससे सबको संतोष हो गया। कुंकुंदाचार्य और भिन्नमाल के संघ ने कहा पूज्यवर! म्वर्गस्थ श्राचार्य यक्षदेवसूरि ने आपको आचार्य पदापण कर गच्छ का सब भार आपको सुपर्द किया है यह खूब दीर्घ विचार करके ही किया था और आपश्री जी इस पद के पूर्ण योग्य भी है वैद्यराज की दवाई लेते समय भले कटुक लगती हो परन्तु इस प्रकार की कटुक दवाई बिना रोग भी तो नहीं जाता है यदि आप दीर्घ विचार कर यहाँ न पधारते तो न जाने भविष्य में इनके कैसे जेहरीले विष फल लगते पर आपके पधारने से कितना फायदा हुआ है कि भवि क्षेत्र बिलकुल निष्कण्टक बनगया है हमारे विशेष शुभकर्मों का उदय है कि उधर से आचार्य नन्नप्रभसूरि का और इधर से आपका पधारना हो गया। इत्यादि आपसमें विनय व्यवहार करके भगवान महावीर की जयध्वनि के साथ सभा विसर्जन हुई श्रहा-हा-आज भिन्नमाल में जहाँ देखो वहाँ जैनाचार्यों की भूरि भूरि प्रशंसा हो रही है। आज जैनों के हर्ष का पार नहीं है परन्तु बादी लोग दान्तों के तले अंगुलिये दबाकर निराश हो गये है उनके चेहरे फिके पड़गये है उनके दिल में बूरी भावनाए थी जिनको जैनाचार्यों ने मिथ्या साबित करदी है और जहाँ देखो वहाँ जैनधर्म के ही यशोगायन हो रहा है। आचार्य ककसूरिजी महाराज का व्याख्यान हमेशा होता था जिसका जनता पर अच्छा प्रभाव पड़ता था । एक दिन भिन्नमाल के श्रीसंघ ने तीनों प्राचार्यों के चतुर्मास के लिये आचार्य नन्नप्रभसूरि से साग्रह विनती की और कहा कि पूज्यवर! यहाँ के श्रीसंघ की यह अभिलाषा है कि आप तीनों आचार्यों का यह चतुमास भिन्नमाल में ही हो । इसकी मंजुरी फरमा कर यहाँ के श्रीसंघ को मनोरथ पूर्ण करावे । सूरिजी ने कहाँ श्रावकों ! यदि तीनाचार्य तीनक्षेत्र में चतुर्मास करेंगे तो तीनक्षेत्रों का उपकार होगा अतः आपके यहाँ कक्कसूरिजी का चतुर्मास होना अच्छा है । श्रीसंघ ने कहा पूज्यवर ! आप जहाँ विराजे वहाँ उपकार ही है पर यह चतुर्मास तो यहाँ ही होना चाहिए सूरिजी ने दोनों आचार्यों की सम्मति लेकर श्रीसंघ की प्रार्थना को स्वीकार करली बस । फिरतों कहना ही क्या था भिन्नमाल के श्रीसंघ का उत्साह खूब बढ़गया । श्रमणसंघ में सर्वत्र धर्मस्नेह और संघ में शान्ति का सम्राज्य छायाहुआ था कुंकुंदाचार्य का गत चतुर्मास भिन्नमाल में ही था अतः मुनियों को वाचना का काम आपके जुम्मा कर दिया कि तीनों आचार्यों के योग्य साधुओं को आगम वाचना एवं वर्तमान साहित्याका अध्ययन करवाया करे आचार्य नन्नसूरि अवस्था में वृद्ध थे वे मुनियों की सार संभाल एवं अपनी सलेखना में लगरहे थे तब आचार्य कक्कसूरि व्याख्यान दे रहे थे । श्रीमालवंशीय शाह दुर्गा ने महाप्रभाविक पंचमांग श्री भगवतीजी सूत्र को महामहोत्सव पूर्व अपने मकान पर लेजाकर पूजा प्रभावना स्वामिवात्सल्यादि कर हस्ति पर विराजमान कर वरघोड़ा चढ़ाया और हीरा पन्ना माणक मुक्ताफल से पूजा कर सूरिजी के करकमलों में अर्पण किया जिसको सूरिजी ने व्याख्यान में वाचना प्रारम्भ कर दिया जिसकों सुनने के लिये केवल भिन्नमाल के लोग ही नहीं पर आस-पास एवं दूर दूर प्राम नगरों के जैन जैनत्तर लोग आया करते थे सूरिजी महाराज की तात्विक विषय समझाने की शैली इतनी सरल सरस और हृदयग्राही थी कि श्रोताजनों को बड़ा ही आनन्द आरहा था। जिस समय [ तीनों आचार्यों का भिन्नमाल में चतुर्मास Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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