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वि० सं० २९८-३१० वर्ष
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
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९-देवपुर के चरड़गो. धरण ने सूर. १०-धनिया के सुघड़गो. मुंमल ११-धोलागढ़ के सुचंतिगो० सांवत १२-जोगनीपुर के मल्लगो० कुम्भा । १३-~-ताबावती के करणाटगो० करमण १४-पाल्हिफा के बलहागो. पुंजा १५-खटकुंप के विचटगो० मूला १६-भवानीपुर के ब्राह्मण शंकर । १७ -अहिछतापुरी के सुथार सारंग। १८-मथुरा के कनोजिया सेजपाल ने १९-वैराटपुर के कुपडगो० मुंजल।
0-सिंहपुर के बोहरागो. नारायण २१-हस्तनापुर के भाद्रगो० नागकेतु २२-लोहाकोट के कुलभद्रगो० फागु २३-श्रीनगर के श्रीश्रीमाल लल्ल २४--तक्षिशाल __के श्रीमालवंश लाखण ने , २५-डिडुपुर के प्राग्वटवंश देसल ने , २६-मेथोली के प्राग्वटवंश दीपा ने २७ -वीरपुर के श्रीमालवंश राणा ने २८-चन्दावती के प्राग्वटवंश चतरा ने , २९--सौपारपटन के लघुष्टि चामु ने ,, ३० - देवपट्टन के मल्लगो० कल्याण ने ,,,, ३१--रानकपुर के लुंगगो० कुराशाह ने , , ३२- हर्षपुर के सुघडगो. भीमदेव ने , ,
इनके अलावे बहुत सी बहिनों ने तथा सूरिजी के शिष्यों ने भी अनेक प्रान्तो में अनेक भव्यों को भगवती जैन दीक्षा देकर उनका उद्धार किया । यहाँ तो केवल थोड़ा सा नाम नमूना के तौर लिख दिया है।
सूरीश्वरजी के शासन में तीर्थों के संघ १-भद्रावती से भाद्रगोत्रीय नरसींग ने श्री शत्रुजय का संघ निकाला २- मादडी से अदित्यनाग गौत्रीय शाह भैरा ने , , , ३ -वीरपुर से चिंचट गौत्रीय शाह दुर्जणने , , ४--वाहोडी से बाप्पनाग गौ० शाह कल्हण ने
५-क्षत्रीपुरा से श्रेष्टि गो , उरजाने ७४६
__ [ सूरिजी के शासन में तीर्थों के संघ
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