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________________ आचार्य सिद्धरि का जीवन ] [ ओसवाल सं० ६८२ - ६९८ जिस दिन भगवान महावीर का निर्वाण हुआ उसी दिन उज्जैन में राजा चण्ड प्रद्योत का भी देहान्त हो गया था और उसी दिन उज्जैन के सिंहासन पर चण्ड के पुत्र पालक का राजाभिषेक हुआ । श्राचार्य हेमचन्द्र सूरि ने परिशिष्ट पर्व में पालक का राज ६० वर्ष का लिखा है तब शाह ने ऊपर ६० वर्षों में चार राजा होना लिखा है पर दोनों लेखों में समय का कोई अन्तर नहीं पड़ता है। वीरात् ६० वर्ष के बाद उज्जैन की राजसत्ता नन्दवंशी राजाओं के अधिकार में चली गई उन्होंने आवंती का राज मगद में मिला लिया पर जैनाचार्यों ने कालगणना आवंती के राजाओं से ही की है श्रतः प्रद्योतन वंशी र जा जैन थे वैसे नन्दवंशी राजा भी जैन थे इस विषय में हम नन्दवंशी राजाओं के अधिकार में लिख आये हैं और नन्दवंश की वंशावली भी लिख आये हैं करीबन १०० वर्ष नंदों का राज रहा बाद श्रावंती का अधिकार मौर्य वंश के हाथों में चला गया मौर्य वंश के राजाओं में केवल एक अशोक ही बौद्ध धर्म का मानने वाला हुआ वह भी जब तक वौद्ध धर्म स्वीकार नहीं किया वहां तक तो जैन ही था कारण उसके पिता और पिता महा जैनधर्मी ही थे अतः अशोक जैन ही था अशोक बौद्ध होने पर भी उसका जैन श्रमणों से प्रभाव नहीं हुआ था जो उसके शिलालेखों से प्रगट होता है नन्दवंशी राजाओं के बाद मौर्यवंशी राजाओं का उदय हुआ पर मौर्य वंश के राजाओं के समय में सब का एकमत नहीं है । आचार्य हेमचन्द्र सूरि के मतानुसार मौर्यवंश का राज वीर सं० १५५ से प्रारम्भ होता है तब पन्वासजी श्री कल्याणविजयजी म० मतानुसार वीर नि० सं० २१० वर्षों से मौयों का राज शुरू होता है तब मेरुतुरंगाचार्य की विचार श्रेणी में मौर्य वंश का राज १०८ वर्ष और तित्थोगली पइन्ना में मौयों का राज १६० वर्ष रहा लिखा है तब त्रि• लो० शाह मौर्यों का राज १७८ वर्ष लिखा है मेरे मतानुसार मौर्य वंश का राज वी० नि० स० १५५ में शुरु और १६३ वर्ष राज करमा श्राता है अब इसमें कौनसा मत ठीक है विद्वानों पर ही छोड़ दिया जाता है मौर्य वंश की नामावली भी पहले लिखदी जा चुकी है । मौर्य वंश के पश्चात् शुंगवंशी राजा पुष्पमित्र का राज हुआ उसने अपने स्वामी मौर्य वंश के राजा वृद्रथ को मार कर मौर्य वंश का अन्त कर स्वयं राजा बन गया पुष्प मित्र कट्टर ब्राह्मणधर्म का राजा था । इसने जैन एवं बौद्धधर्म पर बड़ा भारी अत्याचार किया था यहां तक कि जैनधर्म एवं बौद्ध धर्म के साधु का शिर काट कर लाने वाले को इनाम में एकसौ दिनारें दी जायगी पर बह भी ३० वर्ष एवं मतान्तर ३५ वर्ष राज कर खत्म हुआ इनके बाद में राजा बलमित्र भानुमित्र के राज की गिनती की जाती है यद्यपि त्रे भरोंच नगर पर राज करते थे पर उनका राज उज्जैन पर भी रहा था इसलिये इनकी गिनती भी उज्जैन के राजाओं में की गई है इनने ६० वर्ष तक राज किये और ये दोनों बांधव जैनधर्म के परम उपशक थे तथा कालकाचार्य के भानेज भी लगते थे इनके बाद नपवाहन ने उज्जैन के सिंहासन पर ४० बर्ष राज किया था तदनन्तर गन्धर्व भील्ल वंश का राजा गन्धर्व भील और शकों ने १७ वर्ष राज किया इनके पश्चात राजा विक्रमादित्य का राज उज्जैन के सिंहासन पर कायम हुआ राजा विक्रम प्रजावात्सल्य न्यायनिपुण राजा था इसने जैनधर्म को स्वीकार कर अपने राज में अहिंसा धर्म का खूब प्रचार किया इस राजा तीर्थ श्री शत्रुंजय का विराट् संघ निकला था राजा विक्रम के गुरु महान् प्रभाविक आचार्य सिद्धसेन दिवाकर थे जिन्होंने कल्याण मन्दिर स्तोत्र बना कर आवंती पार्श्वनाथ कों प्रगट किये थे इनकी वंशावली( अनुसंधान इसी ग्रन्थ के पृ० ९६१ पर देखो ) आवंति प्रदेश के राजा Jain Education International For Private & Personal Use Only ७३५ (ख) www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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