SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 952
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आचार्य सिद्धसूरि का जीवन ] [ोसवाल सं० ६८२-६९८ निकाली । सुबह देखा तो वह राजा ही निकला खैर ! राजा अपने स्थान पर गये और अब तो ठग को पक. ड़ने के लिये सब लोग हताश हो गये । राजा ने एक उपाय सोच कर पानी से भरे कुवे में मुद्रिका डाल दी। और डोड़ी पिटवाई कि अगर कुवे में न उतर कर इस मुद्रिका को निकाल देगा तो राजा अपना महा मंत्री बनावेगा । लोगों ने बहुत उपाय सोचा मगर कोई न निकाल सका तब अभयकुमार ने एक दूसरा कुवां उस कुवे के पास खुदवाया और मुद्रिका वाले कुत्रे के अंदर पैंप जैसा कुछ लगा पानी निकाल नये कुत्रे में भर दिया जब मुद्रीका दीखने लगी तो उस पर गोबर साल दिया कि मुद्रिका उस गोबर में चिपक गई । इस पर जलता हुआ घास डाला कि गोबर सूक गया फिर वह पानी वापिस उसी कुँवा में डलवा दिया कि मुद्रिका वाला गोबर पानी के ऊपर आ गया कुमार ने गोबर को खेंच कर एवं मुद्रिका निकाल कर राजा के सामने रखदी । यद्यपि अभयकुमार वालावस्था में था पर राजा ने अपने वचन के अनुसार उसको मंत्री पद देने को राज सभा में चलने के लिये आग्रह किया तब कुमार ने कहा मैं इकला ही नहीं, परमेरे साथ मेरी माता भी है । जब राजा ने कहा कि अच्छा तुम्हारी माता को भी साथ लेलो । तब अभयकुमार ने अपनी माता के पास जाकर राजा के दिये हुए मुद्रिकादि चिन्ह लाकर राजा को बतलाये। जिससे राजा को ज्ञान हुआ कि यह ठग नहीं बल्कि मेरा ही पुत्र है। बात भी ठीक है । बिना पुत्र मुझे कौन ठग सकता है। राजा ने गज अश्व, रथादि सब सेनाओं के साथ नन्दाराणी को आदर सत्कार के साथ नगर प्रवेश करवाया और अभयकुमार को महामंत्री का पद दिया। बाद जौहरियां का गहनादि सब उनको दे दिया। ___ अभयकुमार ने अपनी बुद्धि से गज्य के क्या क्या कार्य किये, वे सब जैन शास्त्रों में विद्यमान हैं। इतना ही क्या वर्तमान में महाजनलोग दीपमालिका का पूजन करते हैं तब अपनी २ वहियों में अभयकुमार की बुद्धि का भी उल्लेख करते हैं अतः अभयकुमार महान् बुद्धि शाली जैनमन्त्री हुआ और अन्त में मंत्री पद त्याग कर भगवान महावीर के पास दीक्षा लेकर स्वयं अपना कल्याण किया। ऐतिहासिक दृष्टि से भी राजा श्रोणिक का जीवन महत्व पूर्ण है । गजा श्रोणिक ने अपने राज की सीमा बहुत दूर २ तक फैला दी थी । राज्य का प्रवन्ध भी अच्छा था । श्रापके शासन काल में व्यापार की भी अच्छी उन्नति हुई थी ब्यापार की सुविधाओं के लिये सिकाओं का चलन भी आप ही के शासन काल में हुआ था इतना सब कुछ होने पर भी राजा श्रोणिक की मृत्यु बड़ी दुर्घटना के साथ हुई थी। राजा श्रोणिक के अन्तिम समय आपके पुत्र कुणिक ने राज के लोभ के कारण राजा को पिंजरे में बंद कर दिया था और राजा को विष प्रयोग कर मरना पड़ा था। ७- राजा कूणिक-श्रोणिक के बाद मगद का राज मुकुट कूणिक के मस्तक पर चमकने लगा। कूणिक के कई नाम थे जैसे अजातशत्रु, अजितशत्रु, अशोकचन्द, राजा दर्शक इत्यादी। कूणिक का जन्म भी एक विचित्र घटना से हुआ था । जैन शास्त्रों में लिखा है कि जिस समय रानी चेलना गर्भवती थी तब उसको देहलोत्पन्न हुआ कि मैं राजा श्रेणिक के कलेजे का मास खाऊंगी पर गनी बड़ी समझदार थी। रानी ने इस बात को किसी से भी नहीं कही । अतः उसका शरीर छीजने लगा । रानी की यह हालत देख कर राजा ने बहुत प्राग्रह से पूछा इस पर असली बात रानी ने राजा से कइदी। राजा इससे बड़ी चिन्ता में पड़ गया कि या तो मेरा प्राण जायगा या रानी मर जायगी। इतने में अभयकुमार पाया अभयकुमार के मंत्री अभयकुमार की बुद्धि चातुर्य ७२३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy