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आचार्य सिद्धसरि का जीवन ]
[ओसवाल संवत् ६८२-६९८
में हुए हैं और उनका निम्रन्थपना के कारण शायद दिगम्बर अपने आचार्य मानते हों खैर कुछ भी हो सामन्तभद्राचार्य महा प्रभाविक बन में बिहार करने वाले एक श्राचार्य हुए और आपके बनवास के कारण ही आपके सन्तान का नाम बनवासी गच्छ हुआ है, इनके पूर्व निर्गन्थ एवं कोटीगण कहलाता था।
१७-आचार्यवृद्धदेवसूरि-आपका नाम तो देवमूरि था पर आप प्राचार्य पद के समय वृद्धावस्था में होने के कारण आपको बृद्धदेव सूरि कहा जाता था पदावलिकारों ने आपके चरित्र विषय में विशेष वर्णन नहीं किया है पर प्रभाविक चरित्र में प्राचार्य मानदेवसूरि के प्रबन्ध में आप श्री के विषय में भी कुछ उल्लेख किया हुआ मिलता है तथाच
तत्र कोरंटकं नामपुर मस्त्युन्नताश्रयम् ! द्वि जिव्हा विमुखा यत्र विनता नदंना जनाः !! ५ तत्रास्ति श्रीमहावीर चैत्यं चैत्यं दध दृटम ! कैलासशैल वनाति सर्वाश्रयतया नया !! ६ उपाध्यायोस्ति तत्र श्री देवचन्द्र इति श्रु द्वद्वन्द शिरो रत्न तमस्त तिहरो जने !! ७ आरण्यकतपस्यायां नमस्यायां जगत्यपि ! सक्त' शक्तां तरंगारिविजये भवतीरभूः!! ८ सर्वदेवप्रभुः सर्वदेव सद्ध्यान सिद्धिभृत् ! सिद्धक्षेत्रे यियासुः श्री वाराणस्या समागमत् !! ९ बहु श्रु त परिवारो विश्रांत रतत्र वासरान् ! कांश्चित्प्रबोध्य तं चैत्यव्यवहार ममोचयत् !! १० स पारमार्थिकं तीव्र धत्ते द्वादशधा तपः ! उपाध्यायस्ततः सूरि पदै पूज्यैः प्रतिष्टितः !! ११ श्री देवसूरिरित्याख्या तस्य ख्यातिं ययौ किल ! श्रूयतेऽद्यापि वृद्ध भ्यो वृद्धास्ते देव सूरयः !! १२
श्री सर्वदेव सूरिशः श्री मच्छत्रुजयें गिरौ ! आत्मार्थ साधयामास श्रीनाभेधैकवासन !! १३ प्र०च०
"सप्तशतिदेश ( सिरोही और मारवाड़ की सरहद ) में कोरंटपुर नाम का एक समृद्धशाली नगर है वहाँ के लोग बड़े ही धनाड्य और धर्म कर्म करने में सदैव तत्पर रहते हैं उस नगर में धर्म की दृढ़ नींव एवं धर्म मर्यादा को नव, प्लवित करने वाला भगवान महावीर' का मन्दिर जो कैलाश पर्वत के सदृश
१- कोरंटपुर का नाम प्राचीन पटटावलियों में के.लापुर पट्टन के नाम से लिखा है आचार्य रत्नप्रभसूरि ५०० मुनियों के साथ जब उपकेशपुर पधारे थे वहां सब साधुओं का निर्वाह होता नहीं देखा तो सूरिजी महाराज ने साधुओं की बिहार की आज्ञा दे दी थी ४६५ साधु बिहार कर कोरंटपुर नगर में चर्तुथमास कर दिया। कोरंटपुर में इतने साधुओं का निर्वाह कैसे हो गया ? आचार्य स्वयंप्रभसूरि ने भीन्नमाल-पद्मावती में हजारों घरों वालों को जैन बनाने के बाद कोरंटपुरादि आसपास के प्रदेश में बिहार का वहाँ भी हजारों लाखों लोगों को जैन बनाये वे लोग वहाँ बसते थे और उनकी संख्या इतना प्रमाग में थी कि ४६५ मुनियों का सुख पूर्वक निर्वाह हो सका।
२-कोरंटपुर में महावीर का मंदिर है उसकी प्रतिष्ठा आचार्य रत्नप्रभसूरि ने करवाई थी जिसका समय वीर निवार्ण के पश्चात् ७० वर्ष का है पटावलि में उल्लेख मिलता है कि--
उपकेश च कोरंटे ! तुल्यं श्री बीर बिम्बयो । प्रतिष्ठा निर्मित शक्त्या, श्री रत्नप्रभसूरिभि ॥ १॥
३-आचार्य रत्प्रभसूरि के लघु गुरु भाई कनकप्रभ को कोरंट संघ की ओर से आचार्य पद प्रदान किया गया और उनका अधिक बिहार कोरंटपुर के आस पास होने से आपके समुदाय का नाम कोरंटगच्छ पड़ गया इस गच्छ के आचार्यों ने लाखों नूतन श्रावक बनाये थे जैसे बोथरा, धाडीवाल, रातडीया, मीनी, रवीवसरादि कई जातियां आज भी विद्यमान हैं। अतः कोरंटपुर नगर महावीर मन्दिर और कोरंटगच्छ ये बहुत प्राचीन हैं।
४-पट्टावलियादि ग्रन्थों में चैत्यवास का समय वीरात् ८८२ का लिखा है शायद यह समय चैत्यवासियों की प्रबल सता का होगा परन्तु उपाध्याय देवभद्र के पूर्व ही चैत्यवास प्रारम्भ हो गया था जिसके लिये उपर दिए हुए प्रमाण से साबित होता है और हम आगे चल कर एक चेत्यवास करण अलग एवं स्वतन्त्र ही लिखेंगे।
उपाध्याय देवचन्द्र और चैत्यवास )
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