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________________ [ ६२] तथा अन्य लोगों के विविध प्रश्नों के समाधान पूर्व उत्तर । . २६-छब्बीसवां चतुर्मास भगवान ने नालंदा ( राजगृह ) में व्यतीत किया षाद विहार किया गोतम ने सूर्य के विषय प्रश्न किये प्रभु ने समाधान किया। - २७–सतावीसवां चतुर्मास प्रभु ने मिथिला नगरी में बिताया-बाद वहां से विहार करके अनेक मुमुक्षुओं को प्रवचन के श्रद्धासम्पन्न बनाये कईएकों को श्रमण दीक्षा कई पकों को गृहस्थ धर्म की दीक्षा दी । २८-अठाईसवां चतुर्मास प्रभु ने पुनः मिथिला नगरी में किया बाद चतुर्मास के मगध की ओर विहार-राजगह में पधारे वहां महाशतक अन्तिम अाराधना में लगा हुआ था उसकी स्त्री रेवंती ने उत्पात मचाया महाशतक को अवधि ज्ञान हो पाया रेवंती का भविष्य कहां पर वह कठोर होने से प्रभु गौतम को महाशतक के पास भेज आलोचना करवाई इत्यादि । उष्णजल का होद के प्रश्न आयुष्यकर्म के विषय प्रश्न । अन्य भी बहुत से प्रश्नोत्तर । २९--उन्तीसवां चतुर्मास प्रभु ने राजगह नगरमें व्यतीत किया बादभी प्रभु वहां ठहरे । कई गण घरो की मोक्ष । गोतम ने छटा पारा के लिये पुच्छा बाद पांचवां पारा के विषय पुच्छा प्रभु ने उत्तर दिये इत्यादि । ३०-तीसवा चतुर्मास पावापुरी में हुआ। यह भगवान् के जीवन का अन्तिम चतुर्मास था वहाँ के राजा हस्तपाल की रज्जुग सभा में आपने चतुर्मास किया था चतुर्मास के तीन मास तो व्यतीत होगये थे कार्तिक मास में भगवान् की सेवा में काशी कौशल के अठारह गणशतक राजा उपस्थित थे जब प्रभु का अन्त समय निकट अर्थात् कार्तिक कृष्ण अमावश्य का सूर्योदय हो चुका था भगवान ने अपुट्ठ (विनापुच्छे) गरणा-देशना देना प्रारम्भ किया जिसमें ५५ पाप फल विपाक रूप और ५५ पुन्यफल विपाकरूप अध्ययन कह कर ३६ अध्ययन कहे जो श्राज उत्तराध्ययन सूत्र के नाम से कहालाते है तथा सेतीसवा प्रधान नाम तथा मरुदेवी नाम का अध्ययन प्रारम्भ करते ही श्रायुष्य कर्म की क्षीणता से भगवान् स्थुल शरीर तथा तेजस और कारमण शरीर अनादि काल से जीव के साथ थे उनको भी छोड़कर एक समय का गमन मार्ग अर्थात् उर्व गमन लोकाप्रभाग में अक्षय सुखों का धाम-मोक्ष नगर में पधार गये उस समय के पूर्व ही भगवान ने गौतम को एक देवशर्मा ब्राह्मण को प्रतिबोध के लिये भेज दिये थे जब प्रभु के निर्वाण हुए और देवता कह कह करते हुए जाने आने वाले कह रहे थे कि अन्तिम तीर्थंकर का निर्वाण होने से लोक में अन्धकार हो गया है इन बातों को गोतम ने सुनी तो वे चल कर प्रभु के स्थान पाया और पहले तो धर्म रागानुकूल विलापत किया और स्नेहवस उपालम्ब भी दिया पर बाद में सोचा कि प्रभु निरागी थे इत्यादि शुभ भावना से गोतम को भी कैवल्य ज्ञान उत्पन्न होगया अतः इन्द्रादि देवों ने प्रभु का निर्वाण महोत्सव के अनन्तर गोतम का केवल महोत्सव किया। इस प्रकार भगवान महावीर के तीर्थङ्कर अवस्था के ३० चतुर्मास का सिल सिलेवार संक्षिप्त में हाल लिखा दिया है । विस्तार देखो पन्यासजी म० का प्रन्थ में । इति शुभम् ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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