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________________ वि० सं० २८२-२९८ वर्ष ] [ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास rana . . . चित थे। लोगों को ज्ञात हुआ कि आचार्य तो वही हैं जो सुवर्ण सिद्धि वाले सारंग थे पर लोगों को आश्चर्य इस बात का हुआ कि सुवर्ण सिद्धि छोड़ कर सारंग ने दीक्षा क्यों ली होगी ? सूरिजी ने एक दिन अपने व्याख्यान में यह बतलाया कि संसार में लोभ एक ऐसी बुरी बलाय है कि जीव को अधोगति में ले जाता है। लोभ के कोई मर्यादा भी नहीं होती है कि वह कभी संतोष पाकर क्षण भर सुख से रहता है । शास्त्रों में कहा है किः-- जहाँ लाभो तहाँ लोभो लाभ लोभो प बड्डई । दो मासा कणयं कर्ज कोड़ी एवि न निट्टिई ॥ श्रोताओ ? ज्यों २ लाभ बढ़ता है त्यों २ लोभ भी बढ़ता जाता है । जैसे एक कपिल नामक ब्राह्मण दो मासा सोने के लिये राजा के पास गया था पर उसके लाभ बढ़ने से इतना लोभ बढ़ गया कि जिसकी कुछ हद ही नहीं रही जिसका शास्त्रों में उल्लेख किया है किः कोसंबी नगरी में जयशत्रु राजा राज करता था। चौदह विद्या निधान कासप नामक उसके माननीय पुरोहित था। उस पुरोहित के जसा नाम की स्त्री थी और उसके कपिल नाम का एक पुत्र भी था । कपिल बाल्यावस्था में था तब उसका पिता गुजर गया था। अतः राजा ने पुरोहित पद किसी दूसरे ब्राह्मण को दे दिया। उसने पद की खुशी में एक जुलूस निकाला। जिसको देख जसा दिलगीर हुई । कपील ने दिलगीरी का कारण पूछा तो माता ने कहा बेटा तेरा पिता विद्यावान् था और राजपुरोहित पद पर रह कर इस प्रकार जुलूस निकालता था। बेटा ने कहा माता मैं विद्या पढ़ कर इस पद का अधिकारी बनूंगा। माता ने कहा कि यहाँ तो नये पुरोहित के मनाई कर देने के कारण कोई तुझे विद्या पढ़ावेगा नहीं । यदि तू विद्या पढ़ना चाहे तो सावत्थी नगरी में इन्द्रदत्त नाम का अध्यापक तेरे पिता का दोस्त है वहां चला जा वह तुमको विद्या पढ़ावेगा। कपील चलकर सावत्थी आया, इन्द्रदत्त से मिला। उसने कहा कि विद्या तो मैं पढ़ा दूंगा पर तेरे भोजन का क्या इन्तजाम है ? कपिल ने कहा मैं ब्राह्मण हूँ भिक्षा मांग कर ले आऊंगा । अध्यापक ने कहा मांगी हुई भिक्षा से पढ़ाई नहीं होगी कारण पढ़ाई के लिये अच्छा पौष्टिक भोजन होना चाहिये । खैर, इन्द्र दत्त कपिल को साथ लेकर एक शालीभद्र नाम के इब्भ श्रेष्ठि के पास गया और आशीर्वाद देकर प्रार्थना की कि यहाँ एक ब्राह्मण का लड़का कौसंवी से विद्या पढ़ने के लिये आया है । विद्या तो मैं फ्री पढ़ा दूंगा पर इसके भोजन का इन्तजाम नहीं है । यदि आप भोजन का इन्तजाम करदें तो आपको बड़ा पुण्य होगा श्रेष्टिवर्य ने स्वीकार कर लिया और एक तरुण दासी इसके लिये नियत करदी कि जिस समय कपिल विद्याध्ययन करके आवे तो गरमागरम भोजन करके खिलादे । ठीक कपिल विद्याध्ययन करने लगा और भोजन के समय सेठजी के यहाँ श्राकर भोजन कर लेता था परन्तु इधर तो दासी तरुणवस्था में उधर कपिल भी जवान था । हाँसी मस्करी और कामदेव के वाणों से कपिल और दासी के आपस में प्रेम-प्रीती लग गई। जिससे दासी के गर्भ रह गया । सेठजी को खबर होते ही उन दोनों को घर से निकाल दिया। बस, कपिल का विद्याध्ययन छुट गया और वह दोनों की उदर पूर्ति के प्रपंच में फंस गया। इतना ही क्यों पर दासी के गर्भ की वृद्धि हो रही थी उसके प्रसूत समय के लिये भी तो कुछ सामान की आवश्यकता थी जिसकी भी कपिल को फिक्र ही थी । कपिल ऐसा भाग्यहीन था कि कई दानेश्वरों के पास याचना की पर कुछ भी प्राप्ती नहीं हुई। दासी ने कहा रे दुर्भागी ? मेरा स्थान भी छुड़ाया और जीवन भी भ्रष्ट कर दिया। क्यों तेरे से इतना भी काम नहीं बनता है ? खैर, यहाँ का राजा ब्राह्मणों को दो मासा सोना हमेशा देता है । वहाँ जाकर दो ६९० [ कपिल केवली का उदाहरण antra... -- - -- Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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