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________________ आचार्य देवगुप्तमरि का जीवन ] [ ओसवाल संवत् ६६०-६८२ सन्यासीजी ! यह बात किसी साधारण व्यक्ति की कही हुई नहीं है कि जिसमें शंका को स्थान मिले पर इसके कथन करने वाले हैं सर्वज्ञदेव कि जिन्होंने अपने केवल ज्ञान दर्शन द्वारा सम्पूर्ण लोकालोक को हस्तामलक की तरह प्रत्यक्ष देख कर कहीं है । अतः यह बात विश्वास करने काविल है और बड़े २ ऋषियों मुनियों ने इस विषय के अनेक प्रन्थों का निर्माण किया है वह अद्यावधि विद्यमान भी हैं। सूरिजी की समझाने की शैली उत्तम प्रकार की होने से सन्यासीजी अच्छी तरह से समझ गये और सूरिजी के कहने पर आपको विश्वास भी होगया तथा दिल की शंका मिटाने के लिये सन्यासीजी ने पूछा कि महात्माजी ! इस प्रकार सृष्टि की रचना किसने एवं कब की होगी ? यह एक मेरा सवाल है। सूरिजी ने कहा सृष्टि का कोई कर्ता हर्ता नहीं है । सृष्टि द्रव्यापेक्षा शाश्वती है । और पर्यायापेक्षा अशाश्वत है क्योंकि इसकी पर्याय समय २ बदलती है जैसे सुवर्ण द्रव्यापेक्ष नित्य है पर उसकी पर्याय सुरतआकृत बदलती रहती है । चूड़ी का बाजू और बाजू का कंठा बना लिया तथापि सुवर्ण नित्य है वैसे ही ष्टि में जल के स्थान स्थल और स्थल के स्थान जल हो जाता है इस प्रकार सृष्टि की उन्नति अवनीति होती रहती है पर सष्टि सदैव के लिये शाश्वती है । सन्यासीजी-यह भी तो कहा जाता है कि सष्टि ईश्वर ने रची है और इसका कर्ता हर्ता भी ईश्वर हैं ! सूरिजी-सन्यासीजी ! ईश्वर साकार हैं या निराकार सन्यासी-ईश्वर निराकार है सूरिजी-श्राप स्वयं सोच लीजिये कि निराकार ईश्वर ने साकार सृष्टि की रचना कैसे की होगी ! कि जिस ईश्वर के हस्त पैरादि श्राकार ही नहीं है वे आकार वाली सृष्टि की रचना कैसे कर सके । सन्यासी-सष्टि की रचना करने में ईश्वर को हस्त पैरों की क्या आवश्यकता है वे तो इच्छा मात्र से ही सृष्टि की रचना कर डालते हैं ऐसा हमारे शास्त्र में लिखा है। सूरिजी--क्या ईश्वर के भी इच्छा है ? यदि है तो वह जड़ है या चेतन । यदि चेतन है तो, एकोऽहं द्वितीय नास्ति' यह कहना असत्य ठहरेगा । यदि इच्छा जड़ है तो ईश्वर से भिन्न है या अभिन्न ? सन्यासी तो बड़े ही चक्कर में पड़ गये और इसका उत्तर नहीं दे सके इस पर सूरिजी ने कहा कि महात्माजी ! आप स्वयं सोच सकते हो कि इस सृष्टि का कर्ता ईश्वर को माना जाय तो ईश्वर सृष्टि रचने में उपादान कारण है या निमित्त ? यदि उपादान कारण ईश्वर को माना जाय तो सृष्टि की रचना क्या ईश्वर ही सष्टि रूप है और सष्टि के प्रत्येक पदार्थ को ईश्वर ही समझना पड़ेगा । यदि मानो कि ईश्वर सृष्टि रचना में निमित्त कारण है तो ईश्वर उपादान कारण कहाँ से लाये ? यह एक सवाल पैदा होगा । यदि कहो कि उपादान कारण पहिले था तो मानना पड़ेगा कि पहिले सष्टि थी उसको ही ईश्वर ने नयी सष्टि रची इससे सृष्ट का कर्ता ईश्वर नहीं परसष्टि अनादि ही सिद्ध होती है । भला थोड़ी देर के लिये हम मानलें कि ईश्वर ने ही सृष्टि रची है तो सृष्टि के रचना काल में जीव थे वे पहिले किस अवस्था में और कहाँ पर थे कारण आपकी मान्यतानुसार तो पहिले एक ईश्वर ही था फिर सृष्टि के आदि में ईश्वर जीव कहाँ से लाया कि जिन जीवों से सष्टि की रचना की और पहले वे जीव सुखी थे या दुखी या सुखी दुखी दोनों प्रकार के थे । यदि कहा जाय कि जीव सुखी थे तो ईश्वर को क्या जरूरत थी कि उन जीवों से सष्टि की रचना कर उनको दुखी बनाये । यदि वे जीव दुःखी थे तो वह दुःख किस सन्यासीजी का सृष्टिबाद ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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