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________________ आचार्य यक्षदेवमूरि का जीवन ] [ ओसवाल संवत् ६१८-६३५ उपकेशगच्छ के साधुसाध्वियां वहाँ सदैव विहार करते ही थे पर गच्छनायक आचार्य के पधारने से चतुर्विध श्रीसंघ में उत्साह बढ़ जाता था अतः कमसे कम एक बार तो इन क्षेत्रों में वे अवश्य पधारते थे। प्राचार्य यक्षदेवसूरि एक महान प्रभाविक आचार्य हुये । आपके आज्ञावृति हजारों साधु साध्वियां प्रत्येक प्रान्त में विहार कर महाजनसंघ का रक्षण पोषण और वृद्धि करते थे । खूबी यह थी कि इस गच्छ में एक ही प्राचार्य होते थे और वे सब प्रान्तों को सँभाल लेते थे । आचार्य यक्षदेवसूरि मरूधरमें सर्वत्र विहार करते हुए अपनी अन्तिम अवस्था में उपकेशपुर पधारे थे और वहाँ के श्रीसंघ के महामहोत्सव पूर्वक उपाध्याय निधानकलस को अपने पट्टपर स्थापन कर आप अन्तिम सलेखान एवं अनशन और समाधि पूर्वक स्वर्गवास किया पट्टावली कारोंने आपके शासन समय की कई घटनाए लिखी थी जिसमें प्राभा नगरी के जगा शाह सेठ की महत्व पूर्ण घटना का विस्तार से वर्णन किया है जिसकों संक्षिप्तसे यहाँ लिखदी जाती है। आभानगरी में बाप्पनागगोत्रीय शाह देशल बड़ा भारी व्यापारी वसता था जिसने विदेश में जहाजों द्वारा व्यापार कर करोड़ों का द्रव्य पैदा किया था । एक वर्ष बड़ा भारी दुकाल पड़ा था । शाह देसल ने करोड़ों रुपये व्यय कर गरीबों को अन्न और पशुओं को घास देकर उनके प्राण बचाये । भाग्यवशात दूसरे वर्ष भी दुकाल पड़ गया। शाह देशल का पुत्र जगा भी दानेश्वरी था । दूसरे वर्ष के दुकाल में शाह जगाने बीड़ा उठा लिया । जहाँ तक अपने पास में द्रव्य रहा वहाँ तक जहाँ जिस भाव मिला अन्न और घास मँगा कर जनता को देता रहा पर दुकाल के कारण दनियाँ एकदम उलट पड़ी थी। शाह जगाने विदेश से जहाजों द्वारा अन्न मँगाया और अपने पास जो द्रव्य शेष रहा था वह जहाजों के साथ विदेश में भेज दिया था । भाग्यवशात वापिस आते हुये जहाज पानी में डूब गया । यह समाचार मिलते ही शाह जगा निराश होगया उसके पास अब द्रव्य भी नहीं था कि कुछ दूसरा उपाय कर सके पर घर पर आये हुये लोगों को इन्कार करना भी तो जगा अपना कर्त्तव्य नहीं समझता था अर्थात् अपनी मृत्यु ही समझता था। अतः अपनी औरत का जेवर और जायदाद तक को बेच कर आये हुओं को अन्न दिया पर इस प्रकार वह कार्य कितने दिन चलने वाला था आखिर शाह जगा हताश होगया और आये हुये अन्नार्थियों को ना कहने से मर जाना अच्छा समझ कर उसने देवी सच्चायिका को प्रार्थना की कि या तो मुझे शक्ति दो कि मैं रहे हुये शेष दुकाल को निकालू या मुझे मृत्यु ही दे दीजिये । देवी सच्चायिका ने शाह जगा की उदारता सत्यता परोपकारता पर प्रसन्न होकर उसको अखूट निधान बतला दिया जिससे उसने काल का शिर फोड़ डाला । जब दुकाल के अन्त में सुकाल हुआ तो एक विराट संघ लेकर उपकेशपुर आया । जगाशाह का संघ कोई साधारण संघ नहीं था पर इस संघ मैं सैकड़ों साधु साध्वियां लाखों नर नारी और कई राजा महाराजा साथ में थे । संघपति ने उपकेशपुर पहुँच कर भगवान महावीर की यात्रा और देवी सच्चायिका का पूजन किया और याचकों को एक करोड़ रुपयों का दान दिया इत्यादि इस घटना का समय वंशावलियों में वि० सं० २२२ का बतलाया है। इस जगाशाह के विशाल दान की यादगारी में याचक लोगों ने ओसवालों की उत्पत्ति का समय बीयेबावीस लिख दिया है। वास्तव में यह समय ओसवालों की उत्पत्ति का नहीं पर जगाशाह के दान का ही समझना ही चाहिये । Jain आभा नगरी का शाह जगा ] For Private & Personal use Only www.६४७ry.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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