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________________ वि० सं० २१८-२३५ वर्ष । [ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास रोग कौन मिटाना नहीं चाहता था नगर के तमाम बीमार सुदर्शन के वहां आने लगे इससे घबरा कर सुदर्शन ने सुबह की टाइम मुकर्रर करदी कि सब लोग सुबह आकर मकान के नीचे खड़े हो जायं तब सुदर्शन दरवाजा खोल सबकी ओर दृष्टि प्रसार करे कि सबका रोग चला जाय ज्यों ज्यों इस बात की मालुम होती गई त्यों त्यों बीमारों की संख्या बढ़ती गई। केवल चन्द्रपुर ही नहीं पर आस पास के ग्रामों के बीमार भी आने लगे । नगर में जहां देखो वहां सुदर्शन की प्रशंसा हो रही थी अच्छे २ आदमी कह रहे थे कि ब्रह्म चारी पुरुषों की देवता सेवा कर रहे हैं तब सुदर्शन तो ब्रह्मचारी के साथ सत्य व्यक्ता है इसके लिये तो कहना ही क्या है ? इस प्रकार सब नगर वालों को इस बात की खुशी थी परन्तु नगर के वैद्य हकीम कि जिन्हों की आजीविका केवल बीमारों की चिकित्सा पर ही थी उन्हों की आमद बन्द हो जाने से वे सख्त नाराज थे उन्होंने ऐसा उपाय सोचा कि इस सुदर्शनका ब्रह्मचर्य व्रत नष्ट हो जाय तो अपना रुजगार खुला हो जाय । अहा-हा दुष्ट मनुष्य अपने स्वल्प स्थार्थ के लिये कहां तक अनर्थ करने को तैयार हो जाते हैं यदि वे वैद्य वगैरह अन्य प्रकार से उद्यम करते तो भी उन लोगों का गुजारा हो सकता पर उन लोगों को अन्य कोई उपाय नहीं सूझा । अतः उन्होंने अपनी दुर्बुद्धिसे कई उपाय सोचा आखिर उन्होंने किसी अन्य नगर से एक धूर्त वैश्या को लाकर उसको लोभ देकर कहा कि तुम इस सुदर्शन का ब्रह्मचर्य नष्ट कर दे तो तुमको पुष्कल द्रव्य दिया जायगा । लोभ जगत में बुरी बलाय हुआ करता है संसार में ऐसा कौनसा अनर्थ है कि लोभी नहीं करा सके ? वैश्या ने स्वीकार कर लिया और उसके उपाय सोचने लगी कि सुदर्शन से मिलाप कैसे हो सके और यह किस पर विश्वास रखता है तलाश करने पर मालूम हुआ कि धर्मी पुरुषों के साथ इसका विश्वास है वैश्या कपट बुद्धि से धार्मिक विधान का अभ्यास कर धार्मिक उपकरण वगैरह पास में रखने लगी । एक दिन वैश्या खूब जेवर सुन्दर वस्त्र पहन कर सवारी करके सेठजी के मकान पर मुसाफिर की तौर आई सेठ पुरंदर ने उसका स्वागत करके पूछा कि आप कौन हैं कहां से और किस प्रयोजन से यहाँ आये हैं ? कपटी धर्मण ने उत्तर दिया कि मैं शंखपुर नगर के दत्त सेठ की लड़की बाल विधवा श्रीमति नाम की श्राविका हूँ। तीर्थ यात्रार्थ गई थी रास्ते में सुना कि एक महान धर्मीष्ट बाल ब्रह्मचारी सुदर्शन सेठ है कि जिसके दर्शन मात्र से रोगियों का रोग चला जाता है अतः दर्शन की गर्ज से मैं आई हूँ मुझे जल्दी से दर्शन करवा दें मेरे नौकर चाकर सब नगर के बाहर बगीचे में ठहरे हुए हैं और मुझे जल्दी से जाना है ? सेठजी ने बड़े सेठ की पुत्री तथा धर्मीष्ट जानकर एक कमरे में उसे ठहरादी और भोजन के लिये कहा उत्तर में धूर्त वैश्या ने कहा कि आज मेरा व्रत है अतः मैं भोजन नहीं करूँगी कृपा कर कुँवर साहब का दर्शन करवा दीजिये । सेठजी ने जाकर सुदर्शन से कहा कि एक धर्मीष्ट बहिन तेरा दर्शन करना चाहती है और उसको वापिस जाने की बहुत जल्दी है अतः तुम दर्शन दे दो। सुदर्शन ने कहा पिताजी मैं किसी औरत को देखना नहीं चाहता हूँ । पिता ने जाकर कह दिया कि अभी दर्शन न होगा इस पर धूर्त वैश्या ने रोना शुरू कर दिया कि मैं कैसी अभाग्यनी हूँ कि एक उत्तम पुरुष का दर्शन तक नहीं कर सकी इत्यादि इस पर सेठजी को रहम आगया और जाकर बेटा को जोर देकर कहा कि मैं पास में खड़ा हूँ मेरे कहने से ही तुम इस धर्मण बहिन को दर्शन दे दें । बस पिताजी उस कुपात्र को ले आये उसने दर्शन करते ही ऐसा कटाक्ष का वाण चलाया कि सुदर्शन पर उसका बुरा असर हुआ जब दर्शन कर वैश्या जाने लगी तो सुदर्शन ने कहा कि तुम ठहरो कुछ तीर्थ की बातें करनी हैं । बस फिर तो था ही था पिताजी Jain E६३८. International For Private & Personal use only [ सेठ सुदर्शन का ब्रह्मचर्य .... GU For Private & Personal Use Only ahelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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