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________________ वि० सं० १९९-२१८ वर्ष ] [ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास वीर की यात्रा की और श्रीसंघ को धर्मोपदेश सुनाया । श्राज उपकेशपुर के घरघर में आनन्द मंगल छा रहा हैं क्योंकि उपशपुर वासियों के चिरकाल के मनोरथ सफल होगये इससे बढ़कर आनंद ही क्या होता है। उपकेशपुर का राजघराना महाराज उत्पलदेव से ही जैनधर्मोपासक था और उन्होंने जैनधर्म के प्रचार के लिये खूब प्रयत्न किया और कर भी रहे थे । यही कारण था कि उपकेशपुर जैनों का एक केन्द्र था । सूरिजी का व्याख्यान हमेशा होता था राजा और श्रं संघ ने चतुर्मास की विनती की और लाभालाभ का कारण जानकर सूरिजी ने श्रीसंघ की विनती को स्वीकार कर ली फिर तो था हो क्या । कभी २ देवी संच्चायका भी सूरिजी को वंदन करने को आया करती थी । एक दिन सूरिजी ने देवी से पूछा कि देवी जी ! अनुमान से पाया जाता है कि अब मेरा आयुष्य नजदीक है मैं अपने पट्ट पर आचार्य बनाना चाहता हूँ और इस पद के लिये मैंने धर्ममूर्ति मुनि को योग्य समझा है । इसमें आपकी क्या राय है ? देवी ने कहा का आयुष्य अभी ८ मास २७ दिन का है और मुनि धर्ममूर्ति श्रापके पट्ट पर श्राचार्य होने में सर्वगुण सम्पन्न हैं। विशेष में देवी ने कहा कि पूज्यवर ! आपकी अध्यक्षता में यहाँ एक सभा की जाय तो आपको बहुत लाभ होगा और इस समय ऐसी सभा की आवश्यता भी है आपके पूर्वजों ने भी समय २ पर सभा कर धर्म की जागृति की थी। सूरिजी ने कहा बहुत खुशी की बात है देवी जी ! मैं इस बात का प्रयत्न करूँगा और आपकी सहायता से सफलता भी मिलेगी । देवी सूरिजी को वंदन कर अदृश्य हो गई । दूसरे दिन सूरिजी ने अपने व्याख्यान में पिछले इतिहास को सुनाते हुये अपनी ओजस्वी वाणी द्वारा कहा कि वीरो ! यह वही उपकेशपुर है कि एक दिन यहाँ पर नास्तिकों का साम्राज्य बात रहा था पर आचार्य रत्नप्रभसूरि और राजा उत्पलदेव एवं मंत्री ऊहड़ के प्रयत्न से जनता अपना कल्याण साधन कर रही इतना ही क्यों पर श्राज तो जैनधर्म का सर्वत्र सितारा चमक रहा है । अनेक प्रान्तों में जैन श्रमणों का विहार एवं उपदेश हो रहा है । पूर्वाचार्यों ने समय २ पर सभायें करके जैनधर्म के प्रचार की योजना की और उसमें काफी सफलता भी मिली थी। आज भी ऐसी सभाओं की आवश्यकता प्रतित होती है सज्जनों ! आप जानते हो कि सभाओं के अन्दर चतुर्विध श्रीसंघ एकत्र मिलने से कितने फायदे हैं जैसे चतुर्विध श्रीसंघ का एकत्र होना, आपस में एक दूसरे का परिचय एवं धर्म स्नेह बढ़ना एक ही गच्छ समुदाय के साधु अन्योन्य प्रान्त में विहार करने से वे एक दूसरे को पहिचानते भी नहीं हैं जिन्हों का मिलाप होना, आचार्य को यह ज्ञात हो जाय कि हमारे गच्छ में कौन कौन साधु किस किस प्रकृति के कहाँ कहाँ विहार करते हैं और उनके अन्दर क्या क्या विशेष योग्यता है। सभा में एकत्र होने से संगठन बल मजबूत होता है और उस संगठन शक्ति द्वारा क्या क्या कार्य किया जाय उसका भी निश्चय हो सकता है 'समाज में शिथिलता एवं विकार हो वह निकल सकता है। कुछ समयानुसार परिवर्तन करना हो तो हो सकता है। इतना ही क्यों पर सभाओं से समाज में एक नया जीवन भी प्रकट हो सकता है एवं अनेक फायदे हो सकते हैं इत्यादि सूरिजी ने उपदेश दिया और वहाँ के राजा मूलदेव वगैरह श्रीसंघ ने सूरिजी के अभिप्राय को समझ कर उसी व्याख्यान में खड़े होकर कहां पूज्यवर ! यह लाभ तो उपकेशपुर को ही मिलना चाहिये । हम लोग यहाँ पर सभा करने को तैयार हैं। बस फिर तो था ही क्या सूरिजी ने फरमाया कि आप लोग बड़े ही भाग्यशाली हैं । यही क्यों पर पहिले भी कई बार आपके यहाँ सभाएँ हुई थी इत्यादि भगवान् महावीर और श्राचार्य रत्नप्रभसूरि की जयध्वनि के साथ व्याख्यान समाप्त हुआ । तदनन्तर राजा मूलदेत्र के [ उपकेापर में श्रमगामंत्र Jain Edu International For Private & Personal Use Only rary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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