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________________ आचार्य रत्नप्रभसूरि का जीवन ] [ ओसवाल संवत् ५९९-६१८ उस देश के वीरों को साधु बनाना चाहिये कि वे अपने देश के रीतिरिवाज रहन सहन आचार व्यवहार के मज्ञ होने से थोड़े परिश्रम से भी जनता का कल्याण कर सकते हैं । सूरिजी के चतुर्मास करने से केवल एक नगर में ही नहीं पर आस पास के प्रामों के लोगों पर भी जैनधर्म का काफी प्रभाव पड़ा था और कई जैनेतरों ने जैनधर्म भी स्वीकार किया था। जिस समय आचार्य रत्नप्रभसूरि महाराष्ट्रीय प्रान्त में भ्रमण कर जैन धर्म का प्रचार कर रहे थे उस समय बौद्ध भिक्षु भी वहाँ अपने धर्म का प्रचार में लगे हुए थे परन्तु सूरिजी के आज्ञावृति कई साधु पहले से ही वहाँ विचरते थे उस देवभद्र और वीरभद्र नाम के दो साधु शास्त्रार्थ में बड़े ही निपुण थे कई राजा महाराजाओं की सभा में वेदान्तियों एवं बौद्धों का पराजय कर वादियों पर पूरी धाक जमा दी थी फिर सूरीश्वरीजी का पधारना हो गया तब तो कहना ही क्या ? प्रायः करके सूरिजी का व्याख्यान राजसभाओं में ही हुआ करता था। इस प्रकार सूरिजी ने दो वर्ष तक महाराष्ट्रीय प्रान्त में सर्वत्र घूम घूम कर जैनधर्म का प्रचार बढ़ाया था । यों तो महाराष्ट्रीय प्रान्त में प्राचार्य लोहित्य ने जैनधर्म की नींव डाली थी पिछले श्राचार्यों ने उसका सिंचन कर मजबूत बनाया था पर सूरिजी महाराज के पधारने और २ वर्ष तक सर्वत्र विहार करने से जैनधर्म और भी उन्नति पर पहुँच गया था सूरिजी ने कई योग्य साधुओं को पद प्रतिष्ठित बना कर उनके उत्साह में वृद्धि की और उसी प्रान्त में विहार करने की आज्ञा देकर आप वहाँ से वापिस लौटकर क्रमशः बिहार करते हुये श्रावती प्रदेश में पदार्पण किया और घूमते २ उज्जैन नगरी की ओर पधार रहे थे वहाँ के श्रीसंघ के साथ श्रेष्ठिगोत्रिय मंत्री रघुवीर ने सूरिजी का नगर प्रवेश महोत्सव किया जिसमें सवा लक्ष रुपये शुभ कार्य में व्यय किये। __ श्रीसंघ के आग्रह से वह चतुर्मास सूरिजी ने उज्जैन में करना निश्चय कर लिया बस फिर तो था ही क्या जनता का उत्साह कई गुणा बढ़ गया। भद्रगोत्रीय शाह माला ने बड़े ही महोत्सव के साथ सूरिजी से महाप्रभाविक श्रीभगवतीसूत्र बचाया जिसमें शाह माला ने हीरा पन्ना मणि : मोतियों से ज्ञान की पूजा की और प्रत्येक प्रश्न की सुवर्ण मुद्रिका से पूजाकर शास्त्रजी को बड़ी रूची से सुना । अहा ! उस जमाने में जैन श्रीसंघ की धर्म पर एवं श्रागमों पर कैसी भक्ति एवं श्रद्धा थी कि एक एक धर्म कार्यों में लाखों करोड़ों द्रव्य खर्च कर देते थे : चतुर्विध श्रीसंघ ने सूरिजी के मुखाविन्द से श्रीभगतीसूत्र सुनकर अपने जीवन को सफल बनाया। और द्रव्य की आमन्द से आगम लिखा कर उनको चिरस्थायी बनाये । चतर्मा के बापनागोत्रीय शाहमेघा के बनाये पार्श्वनाथ भगवान के मन्दिर की प्रतिष्ठा बड़े ही धूमधाम से करवाई और इस सुअवसर पर ८ पुरुष और १३ बहिनों को सूरिजी ने भगवती जैनदीक्षा देकर उनका उद्धार किया एवं सूरिजी के विराजने से आवंती देश में जैनधर्म की खूब ही प्रभावना हुई। उज्जैन से विहार कर सूरिजी आवंती प्रदेश में घूम रहे थे वहाँ मथुरा के संघ अप्रेश्वर सूरिजी की सेवा में उपस्थिति हुये और प्रार्थना की कि पूज्यवर ! इस समय मथुरा में बौद्धाचार्य बुद्धकीर्ति आया हुमा है और वह व्यान्तरिक बल से जैनों को उपद्रव कर धर्म से पतित बनाने की कोशिश कर रहा है । अतः आप शीत्र मथुरा पधारकर जैन संघ की रक्षा करें हम इसीलिये आये हैं कि आप सब प्रकार से समर्थ हैं। आपके पूर्वजों ने भी अनेक स्थानों पर संघ रक्षा की है । अतः आप मथुरा जल्दी पधारें ? सूरिजी ने फरमाया कि महानुभावो ! आपके इतने आग्रह की आवश्यकता नहीं है यह तो हमारा Jain E आचार्य रत्नपभरि का महाराष्ट्र में ] For Private & Personal use Only ६२३ www.jaanarary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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