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आचार्य ककसरि का जीवन ]
[ ओसवाल संवत् ५५७-५७४
का त्याग कर दीक्षा लेने के लिये तैयार हो जाते थे जब ही तो एक एक प्राचार्य सैकड़ों साधुओं के साथ बिहार करते थे और साधुओं की संख्या अधिक होने से ही वे प्रत्येक प्रान्त में विहार कर जैन धर्म का प्रचार किया करते थे यों तो उपकेशगच्छाचार्य और उन्हों के साधु सब प्रान्तों में विहार करते थे पर मरुधर लाट सौराष्ट्र कोकण कच्छ सिन्ध पंचाल सूरसेन श्रावन्ती और मेदपाट इन प्रदेशों में तो आपका विशेष विहार होता था और वहां के निवासी यह भी जानते थे कि हम लोगों पर उपकेशगच्छाचार्यों का महान उपकार हुआ है कारण वहां के निवासियों को सबसे पहले उपकेशगच्छाचार्यों ने ही मांस मदिरादि कुव्यसन छुड़ा कर जैन धर्म में दीक्षित किये थे। यही कारण है कि उस समय उपकेश गच्छ में पांच हजार से भी अधिक साधु साध्वियों थे और वे प्रत्येक प्रान्त में विहार करते थे । श्राचार्य कक्कसूरि के कर कमलों से मन्दिर मूर्तियों की प्रतिष्ठाएँ
श्राचार्य श्री अच्छी तरह जानते थे कि जहां थोड़े बहुत श्रावक बसते हों वहां पर उनके आत्मकल्याण के लिये जैन मन्दिर की परमावश्यकता है दूसरा उपकेशवंश के बहुत लोग प्राय: व्यापारी थे जहां उनकों व्यापार की सुविधा रहती थी वे वहाँ जाकर अपना निवास स्थान बना लेते थे यही कारण है कि मरूधर मैं पैदा हुआ महाजन संघ पांच छ शताब्दियों में तो वह बहुत दूर दूर प्रदेश में प्रसर गया इतना ही क्यों पर पिछले आचार्यों ने उस शुद्धि की मशीन को इतनी द्रुतगति से चलाई की जहां लाखों की संख्या थी वहाँ करोड़ों तक पहुँच गई और उनकी संख्या के प्रमाण में हजारों मन्दिर और लाखों मूर्तियों भी बन गई उस जमाना में हरेक जैन एक दो मन्दिर बनाना तो अपना जीवन का ध्येय ही समझता था उनके अन्दर से कतिपय नाम नमूना के तौर पर वहां उद्धृत कर दिये जाते हैं।
१-पाकोड़ा के राव लाखण के बनाया पार्श्वनाथ के मन्दिर की प्रतिष्ठा करवाई २-हणवंतपुर के सुचंति गोत्रीय शाह निंबा के बनाया महावीर मन्दिर की प्र० क० ३-क्षत्रीपुर के आदित्य नाग० शाह देदा के , महावीर ,, , ४-हर्षपुर के श्रेष्टि गोत्रीय , नाथो के , पार्श्वनाथ ,, , ५-करणोड के श्रेष्टि गोत्रीय ,, सालग के , शान्तिनाथ,, ६-भवानी के बाप्पनाग , कर्मा के , विमलनाथ ,, ७-करीट्कूप के भाद्र गौत्रीय , करणो के , आदीश्वर ,, , ८-सत्यपुर के राव (राजा) , संगण के , महावीर , , ९-पल्हापुरी के करणाट गौ० ., सोमो के , महावीर , , १०-- वाकाणी के भूरि गौ० , देवो के , महावीर ,, , ११-डाबला के मोरख गौ० शाह कानो के बनाया महावीर मन्दिर की प्र. १२- नरवर के श्रीश्रीमाल , दुर्जण के , पार्श्वनाथ , " " १३-बल्लभी के डिडूगौ० , चन्द्रसेन के , नेमिनाथ ,, , , १४-सोपार के लघु अष्टि , माना के , शान्तिनाथ ,, , १५-स्तम्भनपुर मोरख० , धर्मशी के , महावीर , "
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Jain Ede
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