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वि० सं० १५७-१७४ वर्ष ] [ भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
प्राचार्य कक्कसूरि के कर कमलों से दीक्षाएँ हुई १-कोरंटपुर के दो ब्राह्मण तथा कई श्रावकों ने सूरिजी के पास दीक्षाली २-विजयपुर के करणाटगौत्रिय पेमाने ३-हस्तीपुर के भूरि गोत्रीय नारा ने ४-उपकेशपुर के नागवंशीय वीरा ने ५- बलापुर के अदित्यनागगोत्रिय सलखण ने ६-माडव्यपुर के अदित्य नागगौत्रीय भैरादि ने ७- वर्धमानपुर के तप्तभदृगौत्रीय कल्हण ने ८-करणावती के श्रेष्टिगौत्रिय रघुवीर ने ९-हंसावली के संघपति राणा ने १०- सोपार के क्षत्रीवंशीय काबादि ११-देवपुर के सुघड़ गोत्रिय राहुप ने १२ - भद्दलपुर के सुचंत गौत्रिय पेयादि ने १३-रूणीपाली के चारणगौत्रिय मूलादि १५-वीरपुर के कुलभद्र गोत्रिय पोथा ने १५-बावला के भाद्रगोत्रिय हरदेव ने १६-डमरेल के बलाह गौत्रिय रामा ने १७-शिवनगर के क्षत्रीवंशीय दहड़ ने १८-राजपाली के लघुश्रेष्टि देल्हा ने । १९-- भोजपुर के चिंचट गोत्रिय नारद ने ६०-लोहाकोट के कुंमदगोत्रिय शिवा ने २१-सालीपुर के श्रेष्टिगौत्रिय सुरजण ने २२-मथुरा के सुखागौत्रिय जिनदास ने २३-नंदपुर के भाद्रगोत्रिय नारायण ने २४-उजैन के पापनागगोत्रिय जगमाल ने २५ ---विराट के ब्राह्मण पुरुषोत्तम ने २६-चित्रकुट के विरहट गौत्रीय घरण ने
इनके अलावा पुरुष और बहुत सी बेहनों ने भी वैराग्य प्राप्त हो सूरिजी के हस्ताविन्द से जैन दीक्षा लेकर स्वपर का कल्याण किया है पर ग्रन्थ बढ़ जाने के भय से मैंने वंशावलियों के आधार पर केवल नमूना के तौर पर वहां नामोल्लेख कर दिया है कई एकों की दीक्षा का उल्लेख आचार्य श्री के जीवन में लिखा गया है । उस समय एक तो जैन जनता की संख्या करोड़ की थी दूसरे जैन जनता भारत के चारों ओर प्रसरी हूई थी तीसरा मुख्य कारण उस जमाना के जीव हलुकमी थे कि थोड़ा उपदेश से ही वे संसार
[ सरिजी के कर कमलों से दीक्षाएँ
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