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________________ आचार्य कक्कसूरि का जीवन ] [ ओसवाल संवत् ५५७-१७४ के उपदेश से चार ब्राह्मण तीन क्षत्री और पाँच श्रावक एवं बारह भावुकों ने सूरिजी के वृद्ध हाथों से भग. वती जैन दीक्षा को धारण की जिससे जैन धर्म की खूब ही प्रभावना हुई इस प्रकार प्राचार्य श्री यक्षदेव सूरि ने जैन धर्म का उत्कृष को बढ़ाते हुए अपना आयुष्य को नजदीक जान कर अनशन व्रत धारण कर लिया और २७ दिन के अन्त में समाधिपूर्वक स्वर्गवास किया । आचार्य कक्कसूरि मध्यान्ह के तरुण सूर्य की भांति अपनी ज्ञान किरणों का प्रकाश सर्वत्र डालते हुये और जनता का कल्याण करते हुये भूमि पर विहार करने लगे। आचार्य कक्कसूरिजी महाराज अपने शिष्य मण्डल के साथ विहार करते हुये श्रीपुरनगर की ओर पधार रहे थे । यह खबर वहां के श्रीसंघ को मिली तो उन्होंने सूरिजी का बड़ा ही शानदार स्वागत किया। सूरिजी का प्रभावशाली व्याख्यान हमेशा होता था एक दिन के व्याख्यान में तीथङ्करों के निर्वाण भूमिका अधिकार चलता था। सूरिजी ने श्री सम्मेतसिखर का वर्णन करते हुये फरमाया कि उस पवित्र भूमि पर बीस तीर्थङ्करों का निर्वाण हुआ है और इस तीर्थ की यात्रार्थ पूर्व जमाने में कई भाग्यशालियों ने बड़े २ संघ के साथ यात्रा कर संघपति पदकों प्राप्त कर लाभ उठाया है इत्यादि । खूब विस्तार से वर्णन किया । सूरिजी के व्याख्यान का जनता पर खूब प्रभाव हुआ । उस सभा में श्रेष्ठिगोत्रिय मंत्री राजपाल भी था उसकी इच्छा संघ निकाल कर यात्रा करने की हुई । अतः सूरिजी एवं श्रीसंघ से प्रार्थना की और श्रीसंघ ने आदेश दे दिया। फिर तो था ही क्या, मंत्री राजपाल के सात पुत्र थे और उसके पास लक्ष्मी तो इतनी थी कि जिसकी संख्या लगाने में वृहस्पति भी असमर्थ था । अतः अनेक प्रान्तों में आमंत्रण भेजकर चतुर्विध संघ को बुलाया और लाखों नर नारियों के साथ सूरिजी की अध्यक्षता में संघपति राजपाल ने संघ लेकर पूर्व की यात्रा करते हुये तीर्थ श्रीसम्मेतशिखरजी पर आकर बीस तीर्थंकरों के चरण कमलों को स्पर्श एवं सेवा पूजादि ध्वज महोत्सव कर अपने जीवन को सफल बनाया। तत्पश्चात् पूर्व प्रान्त के तमाम तीर्थों कीयात्रा करवाई बाद मुनियां के साथ संघ लौटकर अपने स्थान को आया और सूरिजी कई अर्सा तक पूर्व की ओर विहार किया तदनन्तर आपश्री कलिंग देशकी ओर पधारे और शत्रुजय गिरनार अवतार रूप खण्डगिरि और उदयगिरी के मन्दिरों के दर्शन किये, वहां से विहार करते हुये मथुरा पधारे उस समय मथुरा जैनों का एक केन्द्र साझा जाता था । उपकेश वंशीय बड़े २ धनाढ्य लोग वहाँ रहते थे। उन्होंने सूरिजी का खूब स्वागत सत्कार किया और श्रीसंघ की आग्रह विनती से सूरीश्वरजी ने वह चतुर्मास मथुरा में करने का निश्चय कर लिया। जिससे जनता का उत्साह खूब बढ़ गया। सूरिजी महाराज के परमभक्त आदित्यनाग गोत्रिय शाहपद्मा ने सूरिजी से प्रार्थना की कि हे प्रभो! यहां के श्री संघ की इच्छा है कि आप श्री के मुखारविन्द से महाप्रभाविक श्री भगवतीजी सूत्र सुनें । अतः हमारी अर्ज को स्वीकार करावें जिससे हम लोगों को सूत्र की भक्ति एवं सूत्र सुनने का लाभ मिले । सूरिजी ने उन ज्ञानपिपासुओं की प्रार्थना को स्वीकार करली । अतः शाह पद्मा ने सवा लक्ष मुद्रिका व्यय करके श्री भगवती सूत्र का बड़ा भारी महोत्सव किया और भगवान् गौतम स्वामी के एक एक प्रश्न की सुवर्ण मुद्रिका से पूजा की। मथुरा नगरी के श्रीसंघ के लिये यह पहिला पहिल ही मौका था कि इस प्रकार सूरिजी के मुखाविन्द से श्रीभगवतीसूत्र का श्रवण किया जाय । जनता में खूब उत्साह था। जैन संघ तो क्या पर श्री भगवती सूत्र को सुनने के लिये अनेक अन्य मतावलम्बी भी आया करते थे। सूरिजी मंत्री राजपाल का तीर्थ संघ ! ५६५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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