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आचार्य यक्षदेवसरि का जीवन ]
[ ओसवाल संवत् ५१५-५५७
एक दिन सज्जनकुँवर ने सुना कि उत्तर दिशा में ब्राह्मणों ने एक यज्ञ करना प्रारम्भ किया है अतः उसे आश्चर्य के साथ बड़ा ही दुःख हुआ कि दरबार ने मुझे तो उत्तर दिशा में जाने की मनाई कर रखी है
और ब्राह्मण लोग घोर हिंसा रूप वहां यज्ञ प्रारम्भ किया है यह कैसा अन्याय यह कैसा अत्याचार, मेरे मनाई करने पर भी ब्राह्मणों ने गैद्र हिंसामय यज्ञ शुरू कर दिया ! बस ! राजकुँवर से रहा नहीं गया अपने बहत्तर उमरावों को साथ लेकर उत्तर दिशा में चला गया जहां कि यज्ञ हो रहा था सूर्यकुण्ड के पास जाकर गजकुँवर क्या देखता है कि एक ओर यज्ञमण्डप और अग्निकुण्ड बना हुआ है दूसरी ओर बहुत से पशु एकत्र किये हुए दीन स्वर से रूदन एवं पुकारें कर रहे हैं तब तीसरी तरफ बड़े-बड़े जटाधारी गले में जनेऊ और रुद्राक्ष की माला पड़ी हुई कपाल पर तिलक लगे हुए ऋषि एवं ब्राह्मण वेदध्वनी का उच्चारण कर रहे थे इस प्रकार दृश्य देख सजन को बड़ा ही गुस्सा आया और उसने अपने उमरावों को हुक्म दिया कि यज्ञ मण्डप उखेड़ दो अग्निकुण्ड को नष्ट करदो पशुओं को छोड़दो और यज्ञ सामग्री छीन लो अर्थात् यज्ञ विध्वंश कर डालो। बस, फिर तो देरी ही क्या थी उन लोगों ने सब यज्ञ को ध्वंश कर दिया । जिसको देख उन ब्रह्म महर्षियों को बड़ा भारी दुःख हुआ उन्होंने गुस्से में आकर उनको ऐसा श्राप दिया कि बहुतर उमरावों के साथ राजकुँवर जड़ पाषण की तरह अचेतन हो गये। इस बात की खबर नगर में हुई तो राजा और कई नागरिक लोग चलकर उत्तर दिशा में आये कि जहां यज्ञ विध्वंश किया था और राजकुवरादि सब जड़ पाषणवत हुए पड़े थे उनको देख राजा को इतना दुःख हुआ कि वह दुःख के मारे वहीं मर गया उनकी सोलह रानियां तो गजा के साथ सतियें होकर जल गई और शेष आठ रानियां जाकर ब्राह्मणों का शरण लिया । इस वीतिकार को आसपास के राजाओं ने सुना कि खंडेला नगर का राजा तो मर गया है और कुँवर एवं उमराव जड़पाषाण सदृश हुये पड़ा है अतः उन्होंने सेना सहित आकर राज को अपने प्राधीन में कर लिया बात भी ठीक है कि बिना राजा के राज को कौन छोड़ता है।
इधर राजकुँवर साजन की पत्नी ( कुँवर रानी ) वगैरह ने सुना की बहोत्तर उमरावों के साथ राज कुँबर जड़ पाषाणवत् अचेतन हो गया है तो उनको बहुत दुःख हुआ वह भी बहोत्तर उमराओं की औरतों को लेकर उत्तर दिशा में आई और सबों ने अपने पतियों की हालत देख रोने एवं आक्रन्द करने लगीं पर अब रोना से क्या होने वाला था वे सब चल कर भूर्षियों के पास गई और उनसे प्रार्थना करने लगी कि आप इनके अपराध की क्षमा कर इन सबको सचेतन करावे इत्यादि । इस पर ब्राह्मणों ने कहा कि यदि आप को यह कार्य करना ही है तो यह पास में गुफा है वहाँ जाकर शिव पार्वती की आराधना करो ब्राह्मणों ने एक अष्टाक्षरी मंत्र भी दे दिया था कि तुम सब इसमंत्र का जाप करो । बस दुखी मनुष्य क्या नहीं कर सकता है कुँवरानी वगैरह सब गुफा में जाकर तपस्या के साथ उस मंत्र का जाप किया कि कितने दिनों के बाद साक्षात् शिव-पार्वती आये उनको देख कर उन ७३ औरतें जाकर पार्वती के पैरों में गिर गई तब पार्वती ने उनको आशीर्वाद के साथ कहा कि तुम धन धानपुत्र और पति से सुखी रहो तुम्हारा सुहाग कुशल और पति चिरंजीवी हो इस पर उन औरतों ने कहा माता आप बरदान तो दिया है पर हमारे पति तो सब जड़ पाषाणवत् अचेतन पड़े हैं फिर हमारा शोभाग्य कैसे रहेगा इस पर पार्वती ने जाकर शिवजी को कहा कि
आप इन सब को सचेतन करो कारण मैंने इनको वरदान दे दिया है वह अन्यथा हो नहीं सकता है अतः पार्वती के अत्याह से शिवजी ने उन सब को सचेतन कर दिये और वे सब आकर शिवजी के चारों ओर खड़े महेश्वरी जाति की उत्पत्ति ] For Private & Personal Use Only
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