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आचार्य यक्षदेवसूरि का जीवन ]
[ ओसवाल संवत् ५१५ - ५५७
हुआ इस पन्थ में भट्टरकों का थोड़ा भी मान सन्मान नहीं है इतना कि क्यों पर परमेश्वर की मूर्तिकों प्रश्चाल केसर चन्दन की पूजा तथा पुष्पफल आदि का भी निषेध है ।
३ - वीस पन्थी - जो लोग भट्टारकों की पक्ष में रहे वह वीसपन्थी कहलाये इस पन्थ में परमेश्वर की मूर्ति का पूजन प्रक्षाल जल चन्द्रन धूप दीप पुष्पफल से पूजा करते हैं । ४ - गुमान पन्थी - इस पन्थ की उत्पति 'मोक्ष मार्ग प्रकाश' ग्रन्थ के कर्ता पं० टोडरमलजी के पुत्र गुमानीरामजी द्वारा हुई है इस पन्थ में जिनमन्दिरों में रात्रि में दीपक करने की तथा प्रक्षलादि करने की बिलकुल मनाई करते हैं अर्थात मूर्ति के दर्शन करते हैं इस मत की उत्पति का समय वि० सं० १८१८ के आसपास का बतलाया जाता है ।
५ - तोतापन्थी - दिगम्बर श्रनय में एक तोतापन्थ नाम का भी पंथ है ।
६ - साढ़ सोलह पन्थी वीसपन्थी और तेरहपन्थी दोनों मिल कर एक साढ़ा सोलह पन्थ का पन्थ निकाला है पर यह अभी नागोर से आगे नहीं बढ़ सका
इनके अलावा वर्तमान में भी कई मत भेद हैं परन्तु उनको संघ पन्थ न कहकर दल एवं पार्टियें कहते हैं शास्त्र छपाने के विषय में एक छपाने वाला दल दूसरा नहीं छपाने वाला दल । पुराणी रूढ़ियों को मानने वाली बाबू पार्टी और नया जमाना के सुधारक पंडित पार्टी इत्यादि ।
जैसे श्वेताम्बर समुदाय में सवाल पोरवाल श्रीमालादि बहुत सी जातियाँ हैं इसी तरह दिगम्बर समुदाय में भी खंडेलवाल, बघेरवाल, नरसिंहपुरादि कई जातियें हैं जिनमें मुख्य जाति खंडेलवाल है। इसको सरावगी भी कहते है प्रसंगोपात दिगम्बर जातियों की उत्पति संक्षिप्त यहाँ लिख दी जाती है ।
मत्सदेश में खंडेला नाम का एक नगर था वहाँ पर सूर्यवंशी खंडेलगिर राजा राज करता था एक समय देश भर में मरकी का भयंकर रोग उत्पन्न हुआ जिससे कई आदमी मर गये कई बीमार हो गये जिसको देख राजा को बहुत फिक्र हुआ अतः राजा ने बहुत से उपाय किये पर शान्ति नहीं हुई । तब राजा ने ब्राह्मणों को बुला कर पूछा कि भूदेवों ! देश भर में रोग बढ़ता जा रहा है मनुष्य एवं पशु मर रहे हैं अतः इसकी शान्ति के लिये कुछ उपाय करना चाहिये” यह तो हम पहले ही लिख आये हैं कि ब्राह्मण लोग कोई भी छोटा बड़ा कार्य क्यों न हो सिवाय यज्ञ के उनके पास कोई उपाय ही नहीं था अतः भूर्षियों ने राजा को कहा कि हे राजन् ! नास्तिक जैनों ने यज्ञ करना निषेध करने से नगर एवं ग्राम रक्षक देव को पायमान होने से ही रोगोत्पति हुई हैं इसलिए यदि आप जनता की शान्ति करनी चाहें तो एक वृहद् यज्ञ करवा कर बत्तीस लक्षण संयुक्त पुरुष की बली देकर सब देवताओं को संतुष्ट करें ताकि वह शान्त हो कर दुनिया में शान्ति कर देगा । हे नरेन्द्र ! केवल एक आप ही यज्ञ नहीं करवाते हो पर पूर्व जमाना में बहुत से गजा महाराजाओं ने यज्ञ करवा कर जनता की शान्ति की है शास्त्रों में अनेक प्रकार के यज्ञों का विधान है जैसे गोमेधयज्ञ गजमेधयज्ञ श्रश्वमेधयज्ञ अजामेधयज्ञ नरमेधयज्ञ इत्यादि आप अपनी एवं जनता की शान्ति चाहते हो तो बिना विलम्ब नरमेधयज्ञ करवाइये ? राजा अपने भद्रिक परिणामों एवं जनता की शान्ति के लिए ब्राह्मणों के कहने को स्वीकार कर नरमेधयज्ञ करवाने का निश्चय कर लिया बस फिर तो था ही क्या ब्राह्मणों के घर-घर में खुशियें मनाई जाने लगी कारण इस कार्य में ब्राह्मणों का खूब स्वार्थ एवं जिन्दगी की अजीविका थी ।
Jain Eduदिगम्बर मत के संघ भेद ]
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