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________________ वि० सं० ११५–१५७ वर्ष ] [ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास १३-- चोपणी के मोरख गोत्रिय शाह भैंसा ने दीक्षा ली । ११- विराट नगरे श्रोष्टि गोत्रिय मत्री रणधीर ने दीक्षा ली । १५-- संखपुर के श्रीश्रीमाल नाथा हरषण ने सूरिजी के पास दीक्षा ली। इत्यादि अनेक उदाहरण हैं । आपके शासन समय केवल एक उपकेशगच्छ में ३००० साधु साध्वियां भूमण्डल पर बिहार करते थे पर यह संख्या पहिले से बहुत कम थी। कारण, बारबार दुकाल के कारण साधु संख्या बहुत कम हो गई थी। फिर भी आपश्री ने अनेक प्रान्तों में विहार कर पुनः श्रमण संख्या में खूब वृद्धि की थी अब थोड़े से तीर्थों की यात्रा निमित्त संघ निकालने वालों की भी संख्या लिख देता हूँ। १-चोपावती नगरी से कर्णाट गोत्रिय शाह मालु ने श्रीशत्रुञ्जय का संघ निकाल कर पांच लक्ष द्रव्य व्यय किया आपकी संतान मालु नाम से कहलाई जाने लगी। २-दसारी ग्राम से आदित्यनाग देपाल रामा ने श्रीशत्रुजय गिरनारादि तीर्थों का संघ निकला। स्वर्मियों को सोना मुहर की पहरामणी दी जिसमें ९ लक्ष्य द्रव्य व्यय किया। ३--फेफावती नगरी से श्रेष्ठि गोत्रिय अरजुन ने श्री श@जय का संघ निकाला। ४-भिन्नमाल नगर रो प्राग्वट श्रादू ने श्रीशिखरजी का संघ निकालकर चतुर्विध श्री संघ को पूर्व की तमाम यात्रायें करवाई । स्वधर्मी भाइयों को पहरामणी में एक एक मोतियों की माला दी । इस संघ में सवा करोड़ द्रव्य व्यय किया। ५-सत्यपुरी के श्रीमाल लाखण ने शत्रुञ्जय का संघ निकाल कर यात्रा की। ६-डबरेलपुर के श्रेष्टिगोत्रिय मंत्री नागड़ ने श्रीशिखरजी का संघ निकाला सब तीर्थों की यात्रा की साधर्मी भाइयों को पहरामणी दी जिसमें १९ लक्ष रुपये खर्च किये। ७- उपकेशपुर से सुचंती गोत्रिय शाह जिनदेव ने श्रीशत्रुञ्जयादि तीर्थों का इंध निकाल चतुर्विध श्रीसंघ को यात्रा कराई जिसमें सवा लक्ष द्रव्य व्यय किया। ८-उज्जैन नगरी से आदित्यनाग गोत्रिय शाह सलखण वीरमदें ने श्री शत्रुजयादि तीर्थों का संघ निकाला जिसमें तीन लक्ष द्रव्य व्यय किया । ९-वराडी ग्राम से चरड गोत्रिय शा० लुंबा ने श्रीशत्रुजय का संघ निकाला। १०---खटकुंप नगर से सुघड़ गोत्रिय शाह पीरा ने शत्रुजयादि तीर्थों का संघ निकाला। ११- विजोड़ा से लुंग गोत्रिय शाह भीमा ने श्री शिखरजी का संघ निकाला। १२-उपकेशपुर के भूरि गोत्रिय शाह लिंगा ने श्रीशत्रुजय का संघ निकाला। यह तो केवल नाम मात्र की सूची दी है पर इस प्रकार सूरिजी तथा आपके पदवीधर शिष्यों के उपदेश से पृथक् २ प्रान्तों से अनेक संघ निकलवाकर तीयों की यात्रा कर अनंत पुन्योपार्जन किया है । इसके अलावा सूरिजी ने जैन-मन्दिर मूर्तियों की प्रतिष्ठा करवा कर जैन धर्म को चिरस्थायी बनाया। १-मेदनीपुर के बलाह गोत्रिय शाह मेधा के कराये महावीर मन्दिर की प्रतिष्ठा कराई । २-हर्षपुर के तप्तभट गोत्रिय शाह धना के बनाये पार्श्वनाथ मन्दिर की प्रतिष्ठा कराई। ३-वल्लभी के प्राग्वटवंशीय शाह गोखला के बनाये महावीर मन्दिर की प्रतिष्ठा कराई । ४-नागर नगरे सुघड़ गोत्रिय शाह देवा के बनाये आदीश्वर मन्दिर की प्रतिष्ठा कराई। . Jain Eclip International For Private & Personal use only [ आचार्य श्री यक्षदेव के शासन में... For Private & Personal Use Only Mehrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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