SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 736
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आचार्य यक्षदेवसूरि का जीवन ] [ ओसवाल संवत् ५१५–५५७ चरित्रकार ने इस घटना का समय विक्रम संवतके एकसौ से कुछ अधिक वर्ष व्यतीत होजाने के बाद का बतलाया है । जो ठीक मिलता हुआ है तदनन्तर सरिजीमहागज विहार करते हुते स्थम्भणपुर नगरमें पधारे । वहां के श्रीसंघ ने भगवान् पार्श्वनाथ का मन्दिर बनाया और सर्व धातुमय (पीतल ) भगवान पार्श्वनाथ की विशाल प्रतिमा तैयार कराई थी । श्रीसंघ के आग्रह से सूरिजी ने उस मूर्ति की अंजनसिलाका की एवं प्रतिष्ठा करवाई जिसमें श्रीसंघ ने बहुत द्रव्य व्यय कर जैनधर्म की प्रभावना की। ___ उस समय की विकट परिस्थिति के अन्दरभी आपने अपने दीर्घकालीन शासनमें अनेक प्रान्तों में घूम घूम कर अनेक भव्यों को दीक्षा देकर जैनश्रमण संघ की वृद्धि की क्योंकि आप जानते थे कि धर्म का रक्षण करने वाला श्रमणसंघ ही है। जितनी अधिक संख्या में साधु होंगे उतनेही विशालक्षेत्र में बिहार हो सकेगा। अतः श्रमण संघ में वृद्धि करना खास जरूरी था । दूसरे उस दुष्काल की भयंकरता के कारण सुकाल हो जाने पर भी एक दो एवं थोड़े आदमी एक प्रान्त से दूसरे प्रान्त में जा नहीं सकते थे । अतः इच्छा के होते हुये भी वे दूर प्रदेश में रहे हुये तीर्थों की यात्रा नहीं कर सकते थे। यही कारण था कि सूरिजी महाराज के उपदेश से कई भाग्यशालियों ने बड़े २ संघ निकाल कर तीर्थों की यात्रा की और धर्म को चिरस्थाई बनाने के लिये सूरिजी के उपदेश से कई दानवीरों ने अपनी चंचल लक्ष्मी को अचल बनाने के लिये बड़े २ मंदिरों का निर्माण करवा कर उनकी प्रतिष्ठायें भी सूरिजी से करवाई। इनके अलावा अजैनों को जैन बनाना तो आपके पूर्वजों से ही चला आया था और उस मशीन को भी आपने द्रुतगति से चलाई कि लाखों मांस मदिरा सेवियों को जैनधर्म की दीक्षा शिक्षा देकर जैन बनाये । कई दुष्कालों में जैन धनाढ्यों ने अर्को खबों द्रव्य व्यय कर के दानशालायें खुलवा दी थीं और जहाँ तक अन्न मिला वहाँ तक सुंघामुघा मंगाकर दान दिया इत्यादि आचार्य श्री के शासन में अनेक शुभ कार्य हुये कि जिससे जैनधर्म की प्रभावना एवं वृद्धि हुई। ___ पट्टावलियों वंशावलियों आदि ग्रन्थों में जो आपके शासन समय कार्य हुये शुभ कार्य कि जिन्हों का बहुत उल्लेख मिलता है यदि उन सबको लिखा जाय तो एक स्वतंत्र महाभारत सा ग्रन्थ बन जाता है परन्तु मैं यहां स्थानाभाव के कारण थोड़े से नामों का उल्लेख कर देता हूँ। १ --उपकेशपुर में संचेती गोत्रिय शाह नारायणादि कई मुमुक्षुओं ने दीक्षा ली । २-धनपुर के प्राग्वट सेणा ने सूरिजी के चरणों में दीक्षा ली। ३-मुग्धपुर के तप्तभट गोत्रिय शाह राजा ने सपत्नीक दीक्षा ली। ४-नागपुर के श्रादित्यनाग गोत्रिय मंत्री लाखण ने १८ नरनारियों के साथ दीक्षा ली। ५-कोरंटपुर के श्रीमाल सुजा रामा ने सूरिजी के पास दीक्षा ली। ६-वामनपुर के भाद्रगोत्रीय देवा ने दो पुत्रों के साथ दीक्षा ली। ७-मथुरा के ब्राह्मण शंकरादि २४ ब्राह्मणों ने सूरिजी के पास दीक्षा ली। ८-अरणी ग्राम के कुमट खेमा ने सूरिजी के पास दीक्षा ली। ९-पालाट के क्षत्री बीजल ने सूरिजी पास दीक्षा ली। १०-गाखला ग्राम के बलाह गोत्रिय शाह हंसादि ने दीक्षा ली। ११-माहली ग्राम के चिंचट गोत्रिय मुकन्दादि ९ नरों ने दीक्षा ली। १२-चन्द्रावती के राव संगण ने १८ नरनारियों के साथ दीक्षा ली। Jain Eआचार्य श्री के शासन में ] For Private & Personal Use Only ५०९ www.jarelitnary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy