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वि० सं० ५२ वर्ष
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
यह तो हुआ एक पद, जव श्राचारोग सूत्र के १८००० पद के श्लोक गिने जाय तो ५१९५९२३१८७००० श्लोक तो एक आचारांगसूत्र के होते हैं तब आगे के अंगसूत्र द्विगुणित बतलाये हैं परन्तु उनसे कम होतेहोते श्राज आचारांग सूत्र के कुल २५२५ श्लोक रहे हैं। जिसको हम मूलपद और पदों के श्लोक तथा वर्तमान में रहे हुए श्लोकों के साथ कोष्टक में दे देते हैं नं० आगम नामावली पदसंख्या
पद के श्लोकों की संख्या
वर्तमान श्लोक
१८०००
२५२५
२१००
१५७५२
१ श्री आचारांग
, सूत्रकृतांग , स्थानायांग ., समवायांग
विवाह प्रज्ञप्ति ज्ञाताधर्मका यांग उपासक दशांग अंतगढ़दशांग
अनुत्तरोबाई ,, प्रश्नव्याकरण ,, विपाकसूत्र
१४४००० २८८००० ५७६५०० ११५२००० २३०४.०० ४६०८००० ९२१६००० १८४३२०००
९१९५९२३१८७००० १८३९१८४६३७४००० ३६७८३६९२७४८००० ७३५६७३८५४९६००० १४७१३४७७०९९२००० २९४२६९५४१९८४००० ५८८५३९०८३९६८००० 91७७०७८१६७९३६००० २३५४१५६३३५८७२००० ४७.८३१२६७१७४४००० ९.१६६२५३४३४८०००९
१९२ १२५६ १२१७
उपरोक्त कोष्टक से पाठक जान सकते हैं कि मूल द्वादशांग कितने विस्तार वाले थे और वाचना के समय कितने रह गये फिर भी विशेषता यह है कि सूत्रों के अध्ययन उद्देश था उतना ही रहा है। जैसे आचारांग सूत्र के १६ अध्ययन थे तो आज भी १६ ही हैं। उपासक दशांग सूत्र के दशाध्ययन और दश श्रावकों का वर्णन था आज भी दशाध्ययन में दश प्रावकों का वर्णन है पर श्लोक संख्या कम हो गई। इस श्लोक संख्या कम होने के कारण आर्य्यरक्षित सूरि ने चारों अनुयोग अलग २ किये थे उस समय मूल आगमों की सूरत बदल गई थी और उस समय श्लोक संख्या भी कम कर दी गई थी।
। दूसरा आर्यस्कन्दिल का समय था परन्तु आर्यस्कन्दिल के समय वल्लभी में नागर्जुन द्वारा भी वाचना हुई थी तो इन दोनों की वाचना प्रायः मिलती जुलती थी केवल थोड़ा सा पाठान्तर वाचनान्तर रहा वह टीकाकारों ने वाचनान्तर के नाम से टीका में रख दिया। अतः आर्य स्कन्दिल के समय आगमों को कम किया जाना संभव नहीं होता है । पर यह कार्य आर्यरक्षितसूरि द्वारा ही हुश्रा संभव होता है। जब तक इसका पूरा प्रमाण नहीं मिल जाय वहाँ तक निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता है । इसमें सन्देह नहीं कि मूल आगमों का संक्षिप्त अवश्य हुआ है। एकादशांग तीर्थङ्कर कथित और गणधर प्रथित होने में किसी प्रकार का संदेह नहीं है।
आर्यस्कन्दिलसूरि के समय जो आगमों की वाचना हुई और वे श्रागम पुस्तकों पर लिखे गये जिस आगमों की संख्या ८४ को कही जाती है और उनके नामों का निर्देश प्रार्थ देवद्धिगणि खमासमणजी ने अपने नन्दीसूत्र में कालिक उत्कालिक सूत्रों के नाम से किया है उनको यहाँ उदृत कर देते हैं।
[ श्री वीर परम्परा
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