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(१६) जैन धर्म की सार शिक्षा यह है :
१ - इस जगत का सुख, शान्ति और ऐश्वर्य मनुष्य के चरम उद्देश्य नहीं हैं। संसार से जितना बन सके निर्लिप्त रहना चाहिये ।
२ - आत्मा की मंगल कामना करो ।
३ -- तुम जब कभी किसी सत्कार्य के करने में तत्पर हो तब तुम कौन हो और क्या हो यह बात स्मरण रक्खो ।
४ - यह धर्म परलोक, (मोक्ष) विश्वासकारी योगियों का है ।
५- सांसारिक भोग विलास की इच्छायें जैनधर्म की विरोधनी हैं ।
६ - अभिमान त्याग, स्वार्थ त्याग और विषय सुख त्याग इस धर्म की भित्तियां हैं ।
(१७) जैनधर्म मलिन आचरण की समष्टी है, यह बात सत्य नहीं है दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों श्रेणियों के जैन शुद्धाचरणी हैं।
(१८) जैनधर्म ज्ञान और भाव का लिए हुए है और मोक्ष भी इसी पर निर्भर है।
(९९) जैन मुनियों की अवस्था और जिन मूर्तिपूजा उनका प्राचीनत्व सप्रमाण सिद्ध करता है । ३५ रा० रा० वासुदेव गोविन्द आपटे बी. ए., इन्दौर ने बम्बई हिन्दूयूनियन कलब में दिसम्बर १९०३ में दिये व्याख्यान के कुछ वाक्य (१) हिन्दुस्तान के सम्पूर्ण व्यापार का
एक तिहाई भाग जैनियों के हाथ में है ।
(२) बड़े बड़े जैन कार्यालय, भव्य जैन मन्दिर अनेक लोकोपयोगी संस्थाएं हिन्दुस्तान के बहुत से बड़े २ नगरों में हैं।
(३) प्राचीन काल से जैनियों का नाम इतिहास प्रसिद्ध है और जैनधर्म के अनेक राजा होगए हैं।
(४) स्वत: अशोक ही बौद्धधर्म स्वीकार करने से पहले जैन धर्मानुयायी था ।
(५) कर्नल टॉड साहेब के राजस्थानीय इतिहास में उदयपुर के घराने के विषय में ऐसा लिखा है। कि कोई भी जैन यति उक्त स्थानमें जब शुभागमन करता है तो राणाजी साहिब उसे श्रादर पूर्वक लाकर योग्य सत्कार का प्रबन्ध करते हैं। इस विनय प्रबन्ध की प्रथा वहां अब तक जारी है
(६) प्राचीन काल में जैनियों ने उत्कट पराक्रम वा राज्य कार्य भार का + परिचालन किया है। श्राज कल के समय में इनकी राजकीय अवनति मात्र दृष्टिगोचर होती है ।
(७) दक्षिण में तामिल व कनड़ी इन दोनों भाषाओं के जो व्याकरण प्रथम प्रस्तुत हुए हैं वे जैनियों ही ने किये थे ।
(८) प्राचीन काल के भारतवर्षीय इतिहास में जैनियों ने अपना नाम अजर अमर रखा है ।
(९) वर्तमान शान्ति के समय व्यापारवृद्धि के कार्यों में अप्रेसर होकर इन्होंने (जैनियों ने) अपना प्रताप पूर्ण रीति से स्थापित किया है ।
(१०) हमारे जैन बान्धवों के पूर्वज प्राचीन काल में ऐसे २ स्मरणीय कृत्य कर चुके हैं तो भी, जैनी कौन हैं, उनके धर्म के मुख्य तत्व कौन कोनसे हैं, इसका परिचय बहुत ही कम लोगों को होना बड़े श्राचर्य की बात है।
(११) " न गच्छेजैन मंदिरम्” निषेध उस समय कठोरता के साथ पाले
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अर्थात् जैनमंदिर में प्रवेश करने मात्र में भी महा पाप है, ऐसा जाने से जैन मन्दिर की भीत की आड में क्या है, इसकी खोज
+ प्राचीन काल में चक्रवर्ती, अद्ध' चक्री, महा मंडलीक, मंडळीक आदि बढे २ पदाधिकारी जैनधर्मी हए ।
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