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(१५) लोगों का यह भ्रमपूर्ण विश्वास है कि पार्श्वनाथ जैनधर्म के स्थापक थे। किन्तु इसका प्रथम प्रचार ऋषभदेवने किया था, इसकी पुष्टिके प्रमाणों का अभाव नहीं है । यथाः
(१) बौद्ध लोग महावीर को निर्मन्थ अर्थात् जैनियों का नायक मात्र कहते हैं स्थापक नहीं कहते । (२) जर्मन डाक्टर जैकोवी भी इसी मतके समर्थक हैं ।
(३) हिन्दूशास्त्रों और जैनशास्त्रों का भी इस विषय में एक मत है। भागवत के पांचवें स्कन्ध के अभ्याय २-६ में ऋषभदेव का कथन है जिसका भावार्थ यह है: -
चौदह मनुष्यों में से पहले मनु स्वयंभू के प्रपोत्र नाभिका पुत्र ऋषभदेव हुआ जो इस काल की अपेक्षा जैन सम्प्रदाय का आदि प्रचारक था । इनके जन्मकाल में जगत की बाल्यावस्था थी, इत्यादि ।
भागवत के अध्याय ६ श्लोक ९-११ में लिखा है कि “कों कर्बेक और कुटक का राजा अत् ऋषभ के चरित्र श्रवण करके कलियुग में ब्राह्मण विरोधी एक नवीन धर्म के प्रचार का मानस करेगा किन्तु हमने अन्य किसी भी प्रन्थ में ऐसे किसी राजा का नाम नहीं पाया । अर्हत् को अन्य कोई भी प्रन्थकार कोंकबैंक और कुटक का राजा नहीं कहता ।
अर्हत् का अर्थ (अर्ह धातु से) प्रशंसाई तथा पूज्य है । शिव है किन्तु अर्हत नाम से कोई राजा का नाम नहीं है, ऋषभ ही को जैनधर्म का प्रचारक होता तो वाचस्पत्य ( कोषकार) ने ऋषभ को श्रादि जिनदेव कभी नहीं कहा होता। किसी किसी उपनिषद में भी ऋषभ को श्रत् कहा है ।
पुराण में अर्हत् शब्दका व्यवहार हुआ श्रत् कहते हैं । श्रर्हत राजा कलियुग में जिनदेव वा शब्दार्थ चिंतामणिने उन्हें
भागवत् के रचयिताने क्यों यह बात कही सो कहा नहीं जा सकता ।
(४) महाभारत के सुविख्यात टीकाकार शांतिपर्व, मोक्षधर्म श्रध्याय २६३, श्लोक २० की टीका में
कहते हैं:
त् श्रर्थात् जैन ऋषभ के चरित्र में मुग्ध हो गये थे । यथा:
"
"ॠषभादीनां महायोगिनामाचारे दृष्टाव श्रतादयो मोहिताः "
इस प्रकार जाना जाता है कि हिन्दू शास्त्रों के मत से भी भगवान् ऋषभ ही जैनधर्म के प्रथम प्रचारक थे।
(५) डॉ० फुहरर ने जो मथुरा के शिलालेखों से समस्त इतिवृत्तिका खोज किया है उसके पढ़ने से जाना जाता है कि पूर्व काल में जैनी ऋषभदेव की मूर्तियां बनाते थे । इस विषय का एपिप्रेफिया इंडिका नामका प्रन्थ अनुवाद सहित मुद्रित हुआ है । यह शिलालेख दो हजार वर्ष पूर्व कनिष्क, हुवष्क बासुदेवादि राजाओं के राजत्व काल में खोदे गये हैं ।
(देखो उपरोक्त प्रन्थ का भाग १, पृष्ट ३८९, नं० ८ व १४ और भाग २, पृष्ठ २०६, २०७, नं० १८ इत्यादि) ।
अतएव देखा जाता है कि दो हजार वर्ष पूर्व ऋषभदेव प्रथम जैन तीर्थंकर कह कर स्वीकार किये गये । महावीर का मोक्षकाल ईसवी सन् से ५२६ वर्ष पहिले और पार्श्वनाथ का ७७६ वर्ष पहिले निश्चित है । यदि ये जैनधर्म के प्रथम प्रचारक होते तो दो हजार वर्ष पहिले के लोग ऋषभदेव की मूर्ति की पूजा नहीं
।
* इनके निर्माण को आजसे २७०५ वर्ष होचुके । यह जैनियों के तेईसवें तीर्थंकर थे जो चोवीसर्वे भन्तिम तीर्थङ्कर हावीर स्वामी से २५० वर्ष पूर्व हुए।
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