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वि० पू० १२ वर्ष ]
[भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
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उदाहरण यहाँ दर्ज कर दिये जाते हैं जो वंशावलियों एवं पट्टावलियों में आज भी उपलब्ध हैं जैसे कि :
१-उपकेशपुर में श्रेष्ठि गोत्रिय शाह देदा के बनाये आदीश्वर भगवान् के मंदिर की प्रतिष्ठा करवाई जिस महोत्सव में श्रेष्टिवर्य ने एक लक्ष मुद्रा व्यय कर शासन की प्रभावना की।
२- भाभोनी में कुमट गोत्रिय शाह बीरम के बनाये भगवान महावीर के मंदिर की प्रतिष्ठा करवाई। २-चंदेलिया ग्राम में मोरक्षा गोत्रिय शाह भमण के बनाये पार्श्वनाथ के मन्दिर की प्रा। ४-नाबानी नगरी में आदित्यनाग गोत्रिय शाह पेथा चुनड़े के बनाये महावीर के मंदिर की प्र० ५-चन्द्रावती नगरी में मंत्री राजवीर के बनाये महावीर के मंदिर की प्रतिष्ठा कराई। ६-नन्दपुर में प्राग्वट वेसट के बनाये पाश्वनाथ के मंदिर की प्रतिष्ठा करवाई। ७-कीराट कुम्प में प्राग्वट पेथा के बनाये पार्श्वनाथ के मंदिर की प्रतिष्ठा कराई। ८-पटकूप में कुलहट गोत्रिय रामदेव के बनाये वीर के मंदिर की प्रतिष्ठा कगई। ९-- मुग्धपुर ततभट्ट गोत्रिय शा. तोला के श्रादीश्वर के मंदिर की प्रतिष्ठा कराई। १०- नरवर के कर्णाट गोत्रिय खुमाण के बनाये महावीर के मंदिर की प्रतिष्ठा कराई। ११- नेबलग्राम के सुचेति हरदेव के बनाये महावीर के मंदिर की प्रतिष्ठा कराई । १२-- चाटोड के भद्रगोत्रिय शा. सगरा के बनाये पार्श्वनाथ के मंदिर की प्रतिष्ठा कराई। १३- पद्मावती के प्राग्वट रत्लादेदा के बनाये महावीर मंदिर की प्रतिष्ठा करवाई । १४-- बल्लभी बलह गोत्रिय मंत्री कल्हण के बनाये ऋषभदेव के म०प्र०। १५- कठी के श्रीमालवंशी रावण के बनाये शान्तिनाथ के मंदिर की प्रतिष्ठा कराई । १६-सलखणपुर के राव पोमल के बनाये महावीर के मंदिर की प्रतिष्ठा करवाई। १७-- जावलीपुर के श्रेष्ठि भुवड़ के बनाये महावीर के मंदिर की प्रतिष्ठा करवाई। १८-भिन्नमाल के प्राग्वट पेथा के बनाये पार्श्वनाथ के मंदिर की प्रतिष्ठा करवाई। १९--- हर्षपुर के वापनाग गोत्रिय शाह लुने महावीर के मंदिर की प्रतिष्ठा करवाई। २०-कोरंटपुर के श्रीमाल श्रादू के भगवान पार्श्वनाथ के मंदिर की प्रतिष्ठा करवाई। २१–सत्यपुर के प्राग्वट संघपति करमल के बनाये श्रीशान्तिनाथ मन्दिर की प्रतिष्ठा करवाई। २२--सारंगपुर श्रेष्ठिवर्य रत्नश्री के बनाये महाव र मन्दिर की प्रतिष्टा करवाई।
२३- चन्द्रपुरी बाप्पनाग गौत्रीय शाह कानों के बनाये पार्श्वनाथ मन्दिर की प्र० इनके अ सूरिजी ने लाखों मांसभक्षी क्षत्रियों को जैन धर्म में दीक्षित किये अतः जैन समाज पर आपका उपकार हुआ है जिसको समाज भूल नहीं सकता है। पट्ट पन्द्रहवें सिद्ध सूरीश्वर, चिंचट गौत्र कहलाते थे ।
आगम ज्ञानवल विद्या पूर्ण, जैन झण्ड फहराते थे । वल्लभी का भूप शिलादित्य, चरणे शीश झुकाते थे ।
सिद्धाचल का भक्त बनाया, जैनधर्म यश गाते थे । ॥ इति श्री भगवान पार्श्वनाथ के १५ वें पट्टपर प्राचार्य सिद्धसूरि महाप्रभाविक आचार्य हुये।
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