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आचार्य सिद्धसूरि का जीवन ]
[ ओसवाल संवत् ३८८
१६ -- विजयपुर नगर के बालनाग गोत्रिय शाहसारंग ने श्रीउ र केशपुर का संघ निकाल यात्रा करवाई। इनके अलावा सिन्ध पंचालादि प्रान्तों से श्राप तथा आपके योग्य मुनियों के उपदेश एवं अध्यमें कई तीर्थों के संघ निकले ।
सूरीश्वरजी उपदेश से अनेक महानुभावों ने संसार का त्याग कर आत्मकल्याण के हेतु भगती जैन दीक्षा स्वीकार की । थोड़े से नाम यहां दर्ज कर दिये जाते हैं जिनके उल्लेख पट्टावलियों बगैरह में ता से मिलते हैं।
१ -- उपकेशपुर के राव वीरदेव ने अपने पुत्र रामदेवादि के साथ सूरीश्वरजी के चरण कमलों में दीक्षा ग्रहण की।
२ -- नागपुर के बापनाग गोत्रिय सुखा ने दीक्षा ग्रहण की।
३ - मेदनीपुर के कर्णाट गोत्रिय शा० गोरा ने अपनी स्त्री और दो पुत्रियों के साथ दीक्षा ली ।
४ - आशिक नगरी के भद्रगोत्रिय शाह नारायण ने अपने ८ साथियों के साथ दीक्षा ली ।
५ - फेफावती नगरी के भूरि गोत्रिय गोशल ने नौ लक्ष द्रव्य तथा छः मास की वरणी स्त्री के सहित दीक्षा ली जिसके महोत्सव में आपके पिता करत्था ने एक लक्ष द्रव्य व्यय कर जैन शासन की खूब प्रभावना की ।
६ - नारदपुरी के श्रेष्ट गोत्रिय शाह हरपाल देवपाल ने महामहोत्सव पूर्वक दीक्षा ली ।
७- पद्मावती नगरी के पोरवाल वंशीय शाह माना करना ने ११ नरनारियों के साथ दीक्षा ली जिसके महोत्सव में तीन लक्ष द्रव्य व्यय किया ।
८- सत्यपुर नगर के प्राग्वट मंत्री विजयदेव ने अपनी स्त्री कुमारदेवी १७ नरनारियों के साथ दीक्षा इस महोत्सव में मंत्री के पुत्र सोमदेव ने पांच लक्ष द्रव्य व्यय किया था ।
९- चन्द्रावती नगरी के श्रीमाल वंशीय मंत्री धर्मसी ने सूरिजी के चरण कमलों में बड़े ही समारोह के साथ दीक्षा ली ।
१०- कोरंटपुर के आदित्यनाग गोत्रिय शाह रूपणासी ने अपने पुत्र जेतसी के साथ दीक्षा ली । ११ - नरवर के सुचेती महीपाल ने दीक्षा ली ।
१२ - रूप नगर के क्षत्रिय त्रिभुवनपाल ने दीक्षा ली ।
१५ -- बेनातट के जगदेवादि सात ब्राह्मणों ने सूरिजी के उपदेश से भगवती जैनदीक्षा ग्रहण की ।
१४ -- उपकेशपुर के चिंचट गोत्रिय शा० सारंग बिमल ने सूरिजी के उपदेश से दीक्षा ली ।
१५ -- रतनपुर के आदित्यनाग गोत्रिय सुलतान ने दीक्षा ली ।
१६ --- कछोलिया गांव के राव विशल ने दीक्षा ली ।
इनके अलावा और भी अनेक प्रान्तों एवं अनेक छोटे बड़े प्रामों के अनेक भव्यों ने सूरिजी के शासन में जैन दीक्षा ग्रहण कर स्वपर का कल्याण किया। क्योंकि पहिले जमाने के जीत्र ही हलकर्मी थे कि उनपर थोड़ा उपदेश भी अधिक असर कर जाता था। सूरिजी ने अपने दीर्घशासन में कई १५०० नरनारियों को दीक्षा दी थी ऐसा पट्टावलियों से ज्ञात होता है ।
सूरीश्वरजी ने अपने शासन काल में
कई मंदिर मूर्तियों की प्रतिष्ठायें भी करवाई थीं । कतिपय
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