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आचार्य यक्षदेवसूरि का जीवन ]
[ ओसवाल संवत् २१८
ये । पर बहुतेरे नहीं भी गये। गंगाशोण के उपद्रव विषयक जिन-वचन को जिन्होंने सुना वे वहां से अन्य श को चले गए और कई एक नहीं भी गए। ४ भिक्षा यथेच्छ मिल रही है, फिर हमें भागने की क्या जरूरत है ? यह कहते हुए कई साधु वहां से नहीं गए Ixx
वह दुर्मुख और अधर्म्य मुख राजा चतुर्मुख ( कल्की ) साधुओं को इकट्ठा करके उनसे कर मांगेगा और न देने पर श्रमण संघ तथा अन्य मत के साधुओं को कैद करेगा। तब जो सोना चांदी आदि परिप्रह रखने वाले साधु होंगे वे सब 'कर' देकर छूटेंगे । कल्की उन पाखंडियों का जबरन वेष छिनवा लेगा।xx 'लोभग्रस्त होकर वह साधुओं को भी तंग करेगा। तब साधुओं का मुखिया कहेगा-'हे राजन् ! हम अकिंचन हैं, हमारे पास क्या चीज है जो तुझे कर स्वरूप दी जाय ? इस पर भी कल्की उन्हें नहीं छोड़ेगा और श्रमण संघ कई दिनों तक वैसे ही रोका हुआ रहेगा। तब नगर देवता आकर कहेगा-अरे निर्दय राजन् ! तू श्रमण संघ को हैरान कर क्यों मरने की जल्दी तय्यारी करता है, जरा सबर कर । तेरी इस अनीति का आखरी परिणाम तय्यार है। नगर देवता की इस धमकी से कल्की घबरा जायगा और आई. वन पहिन कर श्रमण संघ के पैरों में पड़कर कहेगा 'हे भगवन् ! कोप देख लिया अब प्रसाद चाहता हूँ। इस प्रकार कल्की का उत्पात मिट जाने पर भी अधिकतर साधु वहां रहना नहीं चाहेंगे, क्योंकि उन्हें मालूम हो जायगा कि यहां पर निरंतर घोर वृष्टि से जल प्रलय होने वाला है।
तब वहां नगर के नाश की सूचना करने वाले दिव्य आंतरिक्ष और भौम उत्पात होने शुरू होंगे कि जिनसे साधु साध्वियों को पीड़ा होगी। इन उत्पातों से और अतिशायी ज्ञान से यह जानकर कि 'सांवत्सरिक पारणा के दिन भयंकर उपद्रव होने वाला है'-साधु वहाँ से विहार कर चले जायेंगे । पर उपकरण मकानों और भावकों का प्रतिबंध रखने वाले तथा भविष्य पर भरोसा रखने वाले साधु वहां से जा नहीं सकेंगे।
तब सत्रह रात दिन तक निरंतर वृष्टि होगी जिससे गंगा और शोण में बाढ़ आएगी । गंगा की बाढ़ और शोण के दुर्धर वेग से यह रमणीय पाटलिपुत्र नगर चारों ओर से बह जायगा। साधु जो धीर होंगे वे आलोचना प्रायश्चित करते हुए और जो श्रावक तथा वसति के मोह में फंसे हुए होंगे वे सकरुण दृष्टि से देखते हुए मकानों के साथ ही गंगा के प्रवाह में बह जायंगे। जल में बहते हुए वे कहेंगे-'हे स्वामी सनत्कुमार ! तू श्रमण संघ का शरण हो, यह वैयावृत्य करने का समय है।' इसी प्रकार साध्वियां भी सनत्कुमार की सहायता मांगती हुई मकानों के साथ बह जायँगी । इनमें कोई कोई आचार्य और साधु साध्वियां फलक आदि के सहारे तैरते हुए गंगा के दूसरे तट पर उतर जायेंगे । यही दशा नगर निवासियों की भी होगी। जिनको नाव फलक आदि की मदद मिलेगी वे बच जायंगे, बाकी मर जायंगे । राजा का खजाना पाडिवत आचार्य और कल्की राजा आदि किसी तरह बचेंगे पर अधिकतर बह जायेंगे । अन्य दर्शन के साधु भी इस प्रलय में बह कर मर जायँगे । बहुत कम मनुष्य ही इस प्रलय से बचने पायेंगे।
इस प्रकार पाटलिपुत्र के बह जाने पर धन और कीर्ति का लोभी कल्की दूसरा नगर बसाएगा और बाग बगीचे लगवा कर उसे देवनगर तुल्य रमणीय बना देगा। फिर वहां देव मंदिर बनेंगे और साधुओं का विहार शुरू होगा। अनुकूल वृष्टि होगी और अनाज वगैरह इतना उपजेंगा कि उसे खरीदने वाला नहीं मिलेगा। इस प्रकार ५० वर्ष सुभिक्ष से प्रजा अमनपैन में रहेगी।
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