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वि० पू० १८२ वर्ष]
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
'मनिट्टतेगतेष्वब्द-शतेष्वेकोनविंशतौ । चतुर्दशसु चाब्देषु, चैत्र शुक्लाष्टमी दिने ॥ २३१॥ विष्टौम्लेच्छाकुले कल्की, पाटलीपुरपत्तेन । रुद्रश्चतुर्मुखश्चेति धृताऽपराह्ययद्वयः ॥ २३२ ॥ पशोगृहे यशोदायाः कुक्षौस्थित्वा त्रयोदश। मासान् मधौ सिताष्टम्यां,जयश्री वासरे निशि ॥२३३॥ षष्ठेमकरलग्नांशे, वह माने महीसुते । वारे कर्क स्थिते चंद्रे, चंद्रयोगे शुभा वहे ॥ २३४ ॥
प्रथमे पादेऽ श्लेषायाः, कल्कि जन्म भविष्यति ।' ___ वीर निर्वाण के १९१४ वर्ष व्यतीत होंगे तब पाटलिपुत्र में म्लेच्छ कुल में यश की स्त्री यशोदा की इक्षि से चैत्र शुक्ल ८ की रात में कल्कि का जन्म होगा।'xxआगे लिखा है कि वीरात २००० वर्षे न्द्र के हाथों से कल्की ८६ वर्ष की आयु में मर कर नरक में जायगा-इत्यादि ।
जिनसुन्दरसरि कृत दीपालिकल्प पणच्छस्सयवस्स पणमास जुदंगमिय वीरणिव्वुइदो ।। सग राजो तो कक्की, तिच दुण वति महिय सग मासं :
'वीर निर्वाण से ६०५ वर्ष और पांच मास बीतने पर 'शक राजा' होगा और उसके बाद ३९४ वर्ष पौर सात मास में अर्थात निर्वाण संवत १००० में कल्की होगा।'
दि०.- नेमिचंद्रीय त्रिलोक सार तित्थोगाली पइन्ना में तो इस विषय का विस्तृत वर्णन मिलता है।
'शक से १३२३ ( वीर निर्वाण १९२८ ) वर्ष व्यतीत होंगे तब कुसुमपुर ( पाटलिपुत्र ) में दुष्ट बुद्धि वाले कल्की का जन्म होगा।'xx
'कल्की का जन्म होगा तब मथुरा में राम और कृष्ण के मंदिर गिरेंगे और विष्णु के उत्थान कार्तिक सुदी ११ ) के दिन वहां जन संहारक घटना होगी।xx इस जगत्प्रसिद्ध पाटलिपुत्र नगर में ही चतुर्मुख' नाम का राजा होगा। वह इतना अभिमानी होगा कि दूसरे राजात्रों को तृण समान लिनेगा । नगरचर्या में निकला हुआ वह नंदों के पांच स्तूपों को देखेगा और उनके संबंध में पूछताछ करेगा, तब उसे उत्तर में कहा जायगा कि यहां पर बल, रूप, धन और यश से समृद्ध नंद राजा बहुत समय तक राज कर गया है, उसी के बनवाए हुए ये स्तूप हैं। इसमें उन्होंने सुवर्ण गाड़ा है जिसे दूसरा कोई राजा प्रहण नहीं कर सकता । यह सुन कल्की उन स्तूपों को खुदवाएगा और उनमें का समाम सुवर्ण ग्रहण कर लेगा । ( देखो पृष्ट २५६ के श्लोक इस द्रव्य प्राप्ति से उसकी लालच बढ़ेगी और द्रव्य प्राप्ति की आशा से वह सारे नगर को खुदवा देगा । तब जमीन में से एक पत्थर की गौ निकलेगी जो 'लाणदेवी' कहलाएगी।xx लोणदेवी श्राम रास्ते पर खड़ी रहेगी और भिक्षा निमित्त आते जाते साधुओं को मार गिरावेगी, जिससे उनके भिक्षा पात्र टूट जावेंगे, तथा हाथ पैर और सिर भी फूटेंगे और उनको नगर में चलना फिरना मुश्किल हो जावेगा।x तब महत्तर ( साधुओं के मुखिया) कहेंगे---श्रमणों ! यह अनागत दोष की-जिसे भगवान बर्द्धमान स्वामी ने अपने ज्ञान से पहले ही देखा था-अग्र सूचना है। साधुओ ! यह गौ वास्तव में अपनी हितचिंतिका है । भावी संकट की सूचना करती है, इस वास्ते चलिये, जल्दी हम दूसरे देशों में चले जायं ।xगो के उपसर्ग से जिन्होंने जिन-वचन सत्य होने की संभावना की वे पाटलिपुत्र को छोड़कर अन्य देश को चले
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